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तालिबान, पाकिस्‍तान और चीन की ‘त्रयी’ में कैसा होगा ‘भविष्‍य का भारत’?

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नवीन रांगियाल

अफगानिस्‍तान में तालिबान के कब्‍जे के बाद यह तय है कि दुनिया के नक्‍शे पर तालिबान, पाकिस्‍तान और चीन की त्रयीबन जाएगी, ऐसे में इन तीनों देशों की आपस में भारत के लिए क्‍या भुमिका होगी और भारत का इस त्रयीसे निपटने का क्‍या प्‍लान होगा, यह तो भविष्‍य ही बताएगा, लेकिन भारत की मुश्‍किलें बढ़ेगीं यह तो तय है।

अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा कर लिया है, तालिबान के आतंकी अब काबुल में घुस चुके हैं। अफगानिस्तान के मौजूदा हालात का असर भारत समेत दुनिया के तमाम देशों पर पड़ने वाला है। भारत से अफगानिस्तान को मिलने वाली मदद की तारीफ करने वाले इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन तालिबान ने साथ में चेतावनी भी दी है कि अगर भारतीय सेना वहां जाती है तो यह 'अच्छा नहीं होगा।'

अब यह जानना बेहद अहम हो गया है कि तालिबान की मौजूदा स्थिति का भारत पर क्या असर होने वाला है।
अफगानिस्तान में तालिबान के आने से यकीनन उसके संबंध भारत से खराब हो सकते हैं, लेकिन पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और डॉ. अब्दुल्ला के आने से अच्छे रिश्तों की खबरें भी सामने आ रहीं हैं। हालांकि, अब पाकिस्तान और तालिबान के बीच रिश्ते मजबूत होंगे और पाकिस्‍तान को भारत को आंख दिखाने की ताकत मिलेगी, ऐसे में पाकिस्‍तान से भी भारत के रिश्‍ते और ज्‍यादा खराब हो सकते हैं। क्‍योंकि हाल ही में इमरान खान ने तालिबान की अफगानिस्‍तान पर जीत को गुलामी की जंजीरों का टूटना बताया है।

जाहिर है कि पाकिस्‍तान अब कश्‍मीर के मामलों में दखलअंदाजी करेगा। अतीत में वो तालि‍बान समेत जैश ए मोहम्‍मद, लश्‍कर ए तैयबा  और अन्‍य दूसरे आतंकी संगठनों का न सिर्फ हिमायती रहा है, बल्‍कि उन्‍हें अप्रत्‍यक्ष तौर पर मदद भी करता रहा है।

हालांकि तालिबान की तरफ ये यह बयान आते रहें हैं कि वो भारत से बेहतर संबंध चाहता है, कश्‍मीर मामले को भी कभी तालिबान ने भारत का आंतरिक मामला बताया था, ऐसे में तालिबान भले ही सीधे तौर पर भारत के सामने न आए, लेकिन वो पाकिस्‍तान के साथ मिलकर भारत के साथ भीतरघात नहीं करेगा, इसकी उम्‍मीद कम ही है।

इसकी आशंका इसलिए भी ज्‍यादा नजर आती है, क्‍योंकि अफगानिस्‍तान पाकिस्तान का पड़ोसी मुल्क है और यह किसी ने छुपा नहीं है कि पाकिस्‍तान तालिबानियों के लिए दूसरे घर की तरह है। ऐसे में जब पाकिस्‍तान और तालिबान के संबंध अच्‍छे होंगे तो वो भारत के साथ बेहतर संबंधों का दावा कैसे कर सकता है।

दूसरी तरफ अफगानिस्‍तान में जो हुआ है उसके लिए अमेरिका की भूमिका पूरी तरह से संदिग्‍ध नजर आती है। 20 सालों से अफगानिस्‍तान में तैनात अमरीकी सेना को हटा लेने का मतलब है कि  जो बि‍डेन दुनिया के सबसे मासूम राष्‍ट्रपति हैं। अगर ऐसा नहीं है तो फि‍र सेना हटाने के चौबीस घंटों में तालिबान का अफगानिस्‍तान पर कब्‍जा जमा लेना क्‍या इतना आसान था, वो भी उस अफगानिस्‍तान में जहां 20 सालों से अमरीका का सुरक्षा घेरा था।

जाहिर है कहीं न कहीं जो बि‍डेन का अमेरिका भी नहीं चाहेगा कि भारत के साथ पाकिस्‍तान और चीन के संबंध अच्‍छे हो, वो चाहेगा कि भारत चीन, पाकिस्‍तान और कश्‍मीर जैसे मामलों में उलझा रहे। भारत चीन मसले में सभी को पता है कि पाकिस्‍तान पूरी तरह से चीन के साथ है।

जब तालिबान के नहीं रहते ही पाकिस्‍तान और चीन के साथ भारत के संबंध में इतनी कटुता है तो तालिबान के रहते पाकिस्‍तान और दूसरे देशों से भारत के रिश्‍ते क्‍या और कैसे होंगे, इसका अंदाजा लगाना बेहद ज्‍यादा मुश्‍किल नहीं है।

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