जर्मनी के खगोलविदों की एक टीम को हमारे सौरमंडल से बाहर एक ऐसे ग्रह का पता चला है, जहां तरल पानी और जीवन पनपने के उपयुक्त तापमान होने के अच्छे संकेत मिले हैं।
ज़रूरी नहीं कि किसी उड़न तश्तरी (UFO) में बैठकर कोई परग्रही (एलियन) हमारी धरती पर आए और हमें बताए कि वह कहां से आया है, तभी हम मानें कि हां, दूर अंतरिक्ष में हमारी पृथ्वी के अलवा भी ऐसे ग्रह हैं, जहां जीवन संभव है। इस बीच धरती के वैज्ञानिकों के पास भी ऐसी उच्चकोटि की तकनीकें हैं, जिनकी सहायता से वे जान सकते हैं कि अंतरिक्ष में कहां और कैसे जीवन की उत्पत्ति लायक परिस्थितियों का सही सुराग मिल सकता है।
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति का इतिहास यही बताता है कि किसी भी ग्रह पर जीवन पनपने के लिए हवा, पानी, और मध्यम दर्जे के तापमान के साथ-साथ पराबैंगनी (अल्ट्रवायोलेट) किरणों से बचाव वाला परिवेश होना भी ज़रूरी है। जर्मनी में हाइडेलबेर्ग शहर के खगोल विज्ञान संबंधी माक्स प्लांक संस्थान के वैज्ञानिकों की एक टीम, समसामयिक तकनीक की सहायता से, सौरमंडल से बहुत दूर के ऐसे ही बाह्य ग्रहों का पता लगाने में जुटी हुई थी। सुश्री डायाना कोसाकोव्स्की के नेतृत्व वाली इस टीम ने अपनी खोज के परिणाम, विज्ञान पत्रिका 'एस्ट्रोनॉमी ऐन्ड एस्ट्रोफ़िज़िक्स' में इन्हीं दिनों प्रकाशित किए हैं।
पृथ्वी से 31 प्रकाशवर्ष दूर : इस टीम को पृथ्वी से 31 प्रकाशवर्ष दूर एक ऐसा बाह्य ग्रह मिला है, जो 'वोल्फ़ 1069 ' नाम वाले फ़ीकी चमक के एक लघु तारे की परिक्रमा कर रहा है। इस बाह्य ग्रह को 'Wolf 1069 b' नाम दिया गया है। एक प्रकाशवर्ष 94,60,73,04,72,580.8 किलोमीटर दूरी के बराबर होता है। संक्षेप में कहें, तो लगभग 94 खरब 60 अरब किलोमीटर के बराबर। इस में 31 का गुणा करने पर वह दूरी मिलेगी, जो हमारी पृथ्वी और 'Wolf 1069 b' के बीच है। यानी, वहां किसी मनुष्य के पहुंच सकने का प्रश्न ही नहीं उठता। हमारे इस समय के अंतरिक्ष यानों को वहां तक पहुंचने में कम से कम 6 लाख वर्ष लग जाएंगे।
हमारे सूर्य की परिक्रमा करने वाले ग्रहों से बने सौरमंडल के अलावा भी हमारी आकाशगंगा में अनगिनत सौरमंडल हैं। उनके भी अपने ग्रह और उपग्रह हैं। इन दूसरे सौरमंडलों के ग्रहों को बाह्य ग्रह (एक्सोप्लैनेट) कहा जाता है। स्विट्ज़रलैंड के दो खगोलविदों ने, 1995 में पहली बार, हमारे सौरमंडल से बाहर एक ऐसे बाह्य ग्रह का पता लगाया था, जो 'पेगासी51' नाम के एक तारे की परिक्रमा कर रहा था। इसके बाद के पिछले लगभग तीन दशकों में 5000 से अधिक बाह्य ग्रह मिल चुके हैं। उनमें से के केवल 1.5 प्रतिशत ही ऐसे हैं, जिनकी द्रव्यराशि (मास/भार) हमारी पृथ्वी की द्रव्यराशि के दोगुने से कुछ कम है, इसलिए वे पृथ्वी के किसी हद तक बराबर कहे जा सकते हैं।
क़रीब एक दर्जन बाह्य ग्रह अनुकूल दूरी पर : इन डेढ़ प्रतिशत में से भी केवल क़रीब एक दर्जन बाह्य ग्रह ही अपने सूर्य से ऐसी अनुकूल दूरी पर रह कर उसकी परिक्रमा कर रहे हैं, जिसे 'पर्यावासीय कटिबंध' (हैबिटेबल ज़ोन) कहा जा सकता है; यानी जिस दूरी वाले दायरे के भीतर जीवन का पनपना संभव हो सकता है। ऐसे किसी दायरे में ही जीवन के लिए परम आवश्यक तरल पानी भी मिल सकता है। सूर्य से बहुत निकटता होने पर पानी भाप बनकर उड़ जाएगा और बहुत अधिक दूरी होने पर जमकर कठोर बर्फ बन जाएगा।
जर्मन वैज्ञानिकों की टीम को यह पता लगाने के लिए, कि आकार में छोटे और चमक में फ़ीके 'वोल्फ़ 1069' तारे के पास अपना कोई ग्रह है भी या नहीं, एक तरकीब भिड़ानी पड़ी। तरकीब यह थी कि अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति से तारे अपने ग्रहों को अपनी तरफ़ तो खींचते ही हैं, उनके ग्रह भी अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति से उन्हें थोड़ा-सा हिलाते-डुलाते हैं। जर्मन टीम ने पाया कि 'वोल्फ़1069' कभी थोड़ा लाल तो कभी थोड़ा नीला दिखता है। इसका अर्थ यही था कि वह हिल-डुल रहा है, यानी अकेला नहीं है।
तारे का हिलना-डुलना ग्रह होने का संकेत : यह रंग परिवर्तन आंखों से नहीं देखा जा सकता। उसे एक वर्णक्रमलेखी (स्पेक्टोग्राफ़) की सहायता से केवल मापा जा सकता है। भौतिकी में प्रचलित तथाकथित 'डॉप्लर स्पेक्ट्रोस्कोपी' पर आधारित इस मापन विधि को खगोल भौतिकी में RV मेथड (रैडियल वेलॉसिटी मेथड) के नाम से जाना जाता है। जब किसी तारे की परिक्रमा कर रहे ग्रह, बहुत अच्छे दूरदर्शी से भी दिखाई नहीं पड़ते, तो तारे के हिलने-डुलने को जानने की इस विधि से ऐसे ग्रहों के अस्तित्व का भी पता चल जाता है।
RV विधि से ही यह पता चला कि 'वोल्फ़1069' का अपना एक ग्रह भी है। यही नहीं, यह भी अनुमान लगाया जा सका कि उसके ग्रह 'Wolf 1069 b' की द्रव्य राशि कितनी है। उसकी द्रव्य राशि हमारी पृथ्वी के लगभग बराबर है, लेकिन वह केवल 15.6 दिनों में ही अपने सूर्य की एक परिक्रमा पूरी कर लेता है। हमारी पृथ्वी को तो हमारे सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में 365 दिन लग जाते हैं। कुछ और भी अंतर हैं। 'Wolf 1069 b' पर दिन-रात नहीं होते; उसका एक अर्धभाग हमेशा सूर्य-सम्मुख और दूसरा अर्धभाग सूर्य-विमुख रहता है। जो अर्धभाग हमेशा सूर्य-सम्मुखी है, वहां कभी रात होती ही नहीं और जो आर्धभाग सूर्यविमुख है, वहां कभी दिन नहीं होता।
औसत तापमान 13 डिग्री सेल्सियस : 'Wolf 1069 b' अपने सूर्य के बहुत निकट भी है। इसलिए सामान्य तौर पर उस पर तापमान इतना अधिक होना चाहिए कि वहां जीवन पनप ही नहीं सके। लेकिन, आश्चर्य की बात यह है कि उसकी ऊपरी सतह का तापमान काफ़ी कुछ ठंडा है और वह बहुत अधिक धूप भी परावर्तित नहीं करता। जीवन के अनुकूल उसका 'पर्यावासीय कटिबंध' भी उसके सूर्य से कुछ अधिक ही निकट लगता है। इसलिए उसे खोज निकालने वाले वैज्ञानिक उस पर किसी न किसी प्रकार का जीवन होने को और अधिक संभव मानते हैं।
डायाना कोसाकोव्स्की का कहना है कि इन्हीं सब कारणों से इस बाह्य ग्रह को प़ृथ्वी से परे जीवन की सबसे अधिक संभावना वाले 20 उम्मीदवारों की सूची में तुरंत शामिल कर लिया जाना चाहिये। इसका एक और बड़ा कारण वे यह बताती हैं कि हमारी पृथ्वी की तरह ही 'Wolf 1069 b' के पास भी अपना एक चुंबकीय बलक्षेत्र है, जो उसके सूर्य के हानिकारक विकिरण से हर संभावित जीवन की रक्षा कर सकता है। इस चुंबकीय बलक्षेत्र के कारण उस पर एक ऐसा वायुमंडल भी हो सकता है, जिसका औसत तापमान 13 डिग्री सेल्सियस के आस-पास होना चाहिये। डायाना कोसाकोव्स्की 'Wolf 1069 b' को 'प्रॉक्सीमा सेन्टाउरी बी' और 'ट्रैपिस्ट-1-ई' (TRAPPIST-1 e) जैसे उन बाह्य ग्रंहों की श्रेणी में रखना चाहती हैं, जिन्हें किसी संभावित जीवन के सबसे प्रबल दावेदारों के तौर पर देखा जाता है।
बहुत छोटे परिक्रमाकाल : 'प्रॉक्सीमा सेन्टाउरी बी' की खोज भी 'रैडियल वेलॉसिटी मेथड' से अगस्त 2016 में हुई थी। वह पृथ्वी से 4.2 प्रकाशवर्ष दूर है और केवल 11 दिनों में अपने सूर्य की एक परिक्रमा पूरी कर लेता है। TRAPPIST-1e की खोज फ़रवरी 2017 में हुई थी। वह हमारी पृथ्वी से क़रीब 40 प्रकाशवर्ष दूर है। अपने सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में उसे मात्र 6 दिन लगते हैं। वह पृथ्वी की अपेक्षा 30 प्रतिशत हल्का है।
पृथ्वी से दूरी और छोटे आकार के कारण 'Wolf 1069 b' पर के परिदृश्य के बारे में अच्छे से अच्छे टेलिस्कोप भी सब कुछ बता नहीं सकते। सबसे नया और अब तक का सबसे शक्तिशाली 'जेम्स वेब टेलिस्कोप' वैसे तो एक दूसरे बाह्य ग्रह के वायुमंडल की बनावट तक बताने में सफल रहा है, पर कोई नहीं जानता कि उसकी नज़र 'Wolf 1069 b' भी कभी पड़ेगी या नहीं। वास्तव में, एक लाख प्रकाशवर्ष व्यास वाली हमारी आकाशगंगा में ऐसे असंख्य सौरमंडल और बाह्य ग्रह हो सकते हैं, जिनका हमें कोई अता-पता नहीं है और जहां किसी न किसी रूप में जीवन भी हो सकता है। डायाना कोसाकोव्स्की का मानना है कि समय के साथ तकनीकी विकास भी होता रहेगा, इसलिए हो सकता है कि 10-20 साल बाद हम जान सकें कि 'Wolf 1069 b' पर या कहीं और जीवन है या नहीं।
किसी दूसरे ग्रह पर जीवन के होने या न होने का यह अर्थ नहीं है कि वहां मनुष्य रहते हैं या नहीं रहते। अतिसूक्ष्म बैक्टीरिया और काई-फफूंद से लेकर पेड़-पौधों, समुद्री व जंगली जानवारों तथा मनुष्यों तक सब कुछ जीवन की अभिव्यक्ति है। अनुकूल परिस्थितियां मिलते ही जीवन हर जगह असंख्य रूपों में अपने आप अंकुरित एवं प्रस्फुटित होने लगता है।