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स्वात घाटी में अपने घर पहुंचकर छलकीं मलाला की आंखें

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पेशावर , शनिवार, 31 मार्च 2018 (14:52 IST)
पेशावर। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मलाला यूसुफजयी शनिवार को पाकिस्तान के स्वात घाटी में अपने पैतृक नगर पहुंचकर रो पड़ीं। लड़कियों की शिक्षा की वकालत करने वाली मलाला को साल 2012 में तालिबान के आतंकवादियों ने सिर में गोली मार दी थी। वे इस घटना के बाद पहली बार पाकिस्तान आई हैं।
 
 
सूत्रों ने बताया कि कड़ी सुरक्षा के बीच 20 वर्षीय मलाला अपने माता-पिता के साथ खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के स्वात जिले में शनिवार को 1 दिन के दौरे पर पहुंची हैं। पाकिस्तान की सूचना राज्यमंत्री मरियम औरंगजेब यात्रा के दौरान मलाला के साथ थीं। अपने पैतृक नगर में मलाला अपने बचपन के दोस्तों और शिक्षकों से 5 साल बाद मिलीं।
 
सूत्रों ने बताया कि अपने लोगों से मिलकर मलाला की आंखों से आंसू छलक पड़े। वे अपने घर जाने और दोस्तों से मिलने के दौरान एकदम भावुक हो उठी थीं। उन्होंने बताया कि मलाला थोड़ी देर तक अपने घर पर रुकने के बाद हवाई रास्ते से स्वात कैडेट कॉलेज गईं, जहां वे एक समारोह को संबोधित करने वाली हैं। इसके अलावा वे सांगला जिले में लड़कियों के एक स्कूल का उद्घाटन करेंगी।
 
जियो न्यूज को शुक्रवार को दिए एक साक्षात्कार में मलाला ने बताया था कि जैसे ही वे अपनी पढ़ाई पूरी कर लेंगी, वे स्थायी तौर पर पाकिस्तान वापस लौट आएंगी। मलाला ने कहा कि मेरी योजना पाकिस्तान लौटने की है, क्योंकि यह मेरा देश है। जैसे किसी अन्य पाकिस्तानी नागरिक का अधिकार पाकिस्तान पर है, वैसे ही मेरा भी है। उन्होंने पाकिस्तान आने पर खुशी जाहिर की और लड़कियों को शिक्षा मुहैया कराने के अपने मिशन पर जोर दिया।
 
मलाला को साल 2012 में पाकिस्तान के स्वात घाटी में लड़कियों की शिक्षा के लिए प्रचार करने के दौरान एक आतंकवादी ने गोली मार दी थी। इस घटना में वे गंभीर रूप से घायल हो गई थीं। घायल मलाला को हेलीकॉप्टर की मदद से पाकिस्तान के एक सैन्य अस्पताल से दूसरे सैन्य अस्पताल ले जाया गया था, जहां डॉक्टरों ने उसे चिकित्सीय कोमा में भेज दिया ताकि उसे एयर एम्बुलेंस के माध्यम से इलाज के लिए ब्रिटेन ले जाया जा सके।
 
मलाला पर हमला करने के बाद तालिबान ने यह कहते हुए एक बयान जारी किया कि अगर मलाला जीवित बचती है तो वह उस पर दोबारा हमले करेंगे। मलाला को लड़कियों की शिक्षा की वकालत करने के लिए साल 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। उन्हें भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी के साथ यह पुरस्कार दिया गया था। अब मलाला 20 साल की हो चुकी हैं। मात्र 17 साल की उम्र में वे नोबेल पुरस्कार हासिल करने वाली सबसे कम उम्र की कार्यकर्ता हैं।
 
पूरी तरह से ठीक होने के बाद भी मलाला पाकिस्तान नहीं लौट पाई थीं। वे ब्रिटेन में रहती हैं और वहां मलाला फंड की स्थापना करके पाकिस्तान, नाइजीरिया, सीरिया और केन्या की लड़कियों की शिक्षा के लिए वहां के स्थानीय समूहों की मदद करती हैं। वे फिलहाल ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रही हैं।
 
मलाला ने लड़कियों की शिक्षा के लिए अपना अभियान 11 साल की उम्र में शुरू किया था। उन्होंने साल 2009 में बीबीसी उर्दू सेवा के लिए ब्लॉग लिखना शुरू किया था। इसमें वे तालिबान के साये में स्वात घाटी के जीवन के बारे में लिखती थीं, जहां लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध था। लड़कियों की शिक्षा के विरोधी तालिबान ने पाकिस्तान में सैकड़ों स्कूल नष्ट कर दिए हैं। (भाषा)

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