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एक गलती ने बना दिया ‘पाकि‍स्‍तान का जासूस’, 29 साल की सजा काटकर 3 दशक बाद ऐसे वतन लौटा ‘भारत का कुलदीप’

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नवीन रांगियाल

दुश्‍मन देश की सीमा में अगर कोई एक बार गलती से एंट्री कर ले तो उसकी वापसी नामुमकिन ही मानी जाती है। दुश्‍मने देश के बाशिंदे उसे जासूस करार देकर उस पर तमाम तरह के अत्‍याचार करते हैं, उसे बुरी तरह से प्रताड़ि‍त करते हैं।

लेकिन कुलदीप नाम के इस शख्‍स के साथ शायद उसकी कि‍स्‍मत थी, कि वो करीब 29 साल बाद अपने वतन लौट सका। लेकिन यह वापसी इतनी आसान नहीं थी। करीब 3 दशकों के बाद उसकी पाकिस्‍तान से वतन वापसी की चर्चा आज पूरे देश में है।

कैसे हुआ लापता, कैसे पहुंचा पाकिस्‍तान?
यह 10 दिसंबर 1992 की बात है। सर्द मौसम के यही दिन थे। सब अपनी ठि‍ठुरती हुई जिंदगी में व्‍यस्‍त थे, लेकिन रामकोट का मकवाल निवासी कुलदीप कहीं नजर नहीं आ रहा था। खबर आई कि वो कहीं गुम हो गया है। कई दिन हो गए, कुलदीप नहीं लौटा। तो घरवालों में फि‍र पूछताछ शुरू की। कहीं से कोई क्‍लू नहीं मिल रहा था। जहां उसके होने की खबर मिलती, घरवाले वहां पहुंच जाते। लेकिन कुलदीप का कोई अता पता नहीं था। चार साल गुजर गए, और 1996 का साल आ गया।

ये है पूरी कहानी
कठुआ जिला की बिलावर तहसील के गांव चिंजी मकवाल निवासी 53 वर्षीय कुलदीप 1992 में गलती से सीमा पार कर पाकिस्तानी क्षेत्र में चले गए थे, जहां उन्हें पकड़कर जासूसी के आरोप में बंद कर लिया गया। कुलदीप सिंह के गलती से सीमा पार चले जाने पर पाकिस्तान की सरकार ने उन्हें 25 साल की सजा सुनाई थी। उसके पहले तीन साल तक प्रताड़ना का दौर चला और पूछताछ के नाम पर टार्चर किया गया।

सजा पूरी होने के बाद भी वतन लौटाने के लिए औपचारिकताएं पूरी करने में पाकिस्‍तान ने एक साल लगा दिए। इसी वर्ष पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त ने उनकी रिहाई के लिए गत 17 जनवरी को हस्ताक्षर किए थे, जिसकी एक साल की अवधि 16 मार्च 2022 में पूरी होनी थी। उससे पहले रिहाई हो गई। बता दें उस समय कुलदीप की उम्र 24 वर्ष और उर्मिला की महज 21 वर्ष थी। तब उनका बेटा सिर्फ तीन माह का था। अब वह 29 वर्ष का हो गया है।

बैरक नंबर 4 में है कुलदीप
साल 1996 में कुलदीप का पहला संदेश मिला। परिवार की टूटती आस को जैसे कोई डोर मिल गई हो। संदेशा मिला कि कुलदीप सिंह पाकिस्तान के लाहौर में कोट लखपत सेंट्रल जेल की बैरक नंबर 4 में कैद है। बस, यही पता था जहां से घरवालों को उसके जिंदा होने की खबर मिली थी। बेटे के बारे में सुनकर मां की आंखें छलक आई।

29 साल में पत्थर हो चुकी मां की आंखों में आस जाग गई थी। कुलदीप सिंह की मां कृष्णा देवी का कहना है कि उन्हें उम्मीद थी कि उनकी सांसों की डोर छूटने से पहले वो अपने बेटे से जरूर मिल पाएंगी और यही उम्‍मीद काम आई।

मां ने मीडिया को बताया कि उनका बेटा बहुत दिलेर है। वो पाकिस्तान कैसे पहुंच गया, यह तो उन्हें नहीं पता, लेकिन उन्हें यह जरूर उम्मीद थी कि एक दिन उनका बेटा लौट आएगा। तीन दशक बाद ही सही भगवान ने उनकी प्रार्थना को सुन ली।

ऐसे घर लौटा कुल का दीपक
परिवार के नजदीकी लोगों ने बताया कि वाघा बॉर्डर से भारत पहुंचे कुलदीप को अमृतसर में जांच के बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस को सौंप दिया गया है। प्रोटोकॉल के अनुसार ही उसे जेआईसी जम्मू ले जाया जाएगा, जिसके बाद उसे कठुआ पुलिस और फिर परिजनों को सौंप दिया जाएगा।

कुलदीप बन गया था जावेद भाई
पाकिस्तान से अपने परिवार के नाम लिखी चिट्ठी में कुलदीप सिंह ने अपने नाम के साथ एक नाम और इस्तेमाल किया था। पाकिस्तान में कैद के दौरान कुलदीप सिंह का नाम जावेद भाई बन गया था। 29 वर्ष तक कुलदीप की यही पहचान पाकिस्तान में रही, लेकिन अब वतन वापसी के साथ ही जावेद भाई की जगह कठुआ के बेटे को उसका असली नाम वापस मिल गया है।

सोमवार को पाकिस्तान से वाघा बार्डर के रास्ते कुलदीप सिंह भारत में तो दाखिल हो गए, लेकिन अब तक वे घर नहीं पहुंचे हैं। बुधवार के दिन भी उनका परिवार उनके घर आने का इंतजार करता रहा।

हालांकि घरवालों को जानकारी दी गई कि जम्मू-कश्मीर से टीम लेने आएगी जिसके साथ ही उन्हें भेजा जाएगा। कुलदीप सिंह के बेटे मनमोहन सिंह ने बताया कि देर शाम तक वे जम्मू-कश्मीर पुलिस टीम के पहुंचने का इंतजार करते रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई जानकारी नहीं मिल रही है।

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