बुधवार, 7 दिसंबर का दिन जर्मनी में अपने ढंग का एक बहुत ही अनोखा दिन रहा। सुबह 4 बजे से पहले ही देश के 16 में से 11 रज्यों में तीन हज़ार पुलिस और अर्धसैनिक बलों के 150 से अधिक घरों, आवासों और कार्यालयों पर छापे पड़ने शुरू हो गए। संदेह था कि घोर दक्षिणपंथी राष्ट्रवादियों के एक खेमे ने सत्ता हथियाने का ख़ूनी षड्यंत्र रचा है।
जर्मन जनता का एक वर्ग है, जो आज के जर्मनी को एक विधिसम्मत सार्वभौमिक देश नहीं मानता। किसी भी जर्मन सरकार, देश में लोकतंत्र या देश की क़ानून-वयवस्था को स्वीकार नहीं करता। 'राइशब्युर्गर' नाम से प्रसिद्ध इस विद्रोही वर्ग का तर्क है कि भूतपूर्व जर्मन सम्राटों वाला जर्मन राइश – अर्थात साम्राज्य – और उसके बाद के हिटलरकालीन 1937 तक की सीमाओें वाले जर्मन राइश का अस्तित्व मिट नहीं गया है, बल्कि आज भी जीवंत है। जर्मन राइश का 1919 में वाइमार शहर में अपनाया गया संविधान भी कभी रद्द घोषित नहीं किया गया, इसलिए आज भी वैध है।
जर्मनी एक अमान्य व्यवस्था है : इस वर्ग का दावा है कि आज का जर्मनी अतीत के जर्मनी का उत्ताराधिकारी नहीं है, बल्कि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों द्वारा थोपी गई एक अमान्य व्यवस्था है। अपने इन्हीं तर्कों एवं दावों की आड़ लेकर यह वर्ग आयकर इत्यादि देने से भी मना कर देता है। जर्मनी की आंतरिक सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार गुप्तचर सेवा के अनुसार, अपने आप को 'राइशब्युर्गर' कहने वाले इस वर्ग के लोगों की संख्या 20 हज़ार से अधिक है।
कम से कम एक हज़ार लोग ऐसे हैं, जिन्हें घोर दक्षिणपंथी भी कहा जा सकता है। ऐसे बहुत से दूसरे लोग भी हैं, जो कोरोना से बचाव के टीकों या नियमों के प्रति अपने विरोध जैसे बिल्कुल निजी कारणों से भी 'राइशब्युर्गर' आन्दोलन के साथ जुड़ गए हैं या उसका समर्थन करते हैं ।
इस बीच ऐसी कई घटनाएं भी हुई हैं, जिनमें 'राइशब्युर्गर' आंदोलन से जुड़े अपराधी वृत्ति के लोगों और पुलिस के बीच मुठभेड़ें हुई हैं। लोग मरे हैं। अधिकारियों का कहना है कि समय के साथ इस आंदोलन ने अपने ताने-बाने का एक ख़तरनाक जाल बुन लिया है। वह एक आतंकवादी नेटवर्क जैसा बनता जा रहा है। उसने क़ानून-व्यवस्था को बलपूर्वक उखाड़ फेंकने और हथियारों के बल पर सत्ता हथिया लेने की योजनाएं बनाई हैं।
तख्ता पलट की दुरभिसंधि : तख्तापलट की ऐसी ही एक दुरभिसंधि में एक पुराने राजघराने के एक राजकुमार, 'जर्मनी के लिए विकल्प' (AfD) पार्टी का एक भूतपूर्व सांसद, बर्लिन शहर की एक महिला जज, जर्मन सेना के कई भूतपूर्व सैनिक, आतंकवादियों से लड़ने के लिए विशेष कमान्डो दस्ते KSK के पुराने सदस्य, पैराशूट वाले कुछेक छाता-सैनिक, डॉक्टर, वकील और कुछेक उद्योगपति भी शामिल हो गए हैं। इन सब का सुराग सुरक्षा अधिकारियों की 2022 के दौरान हुए जांचों से मिला है। इसे संघीय जर्मनी के इतिहास में सबसे बड़ी खोज और 7 दिसंबर की धरपकड़ को सबसे बड़ा अभियान बताया जा रहा है।
राजकुमार महोदय का नाम है हाइनरिश 13वें, प्रिंस फ़ॉन रॉएस। आयु है 71 वर्ष और रहते हैं फ्रैंकफर्ट में। वे रियल एस्टेट, यानी अचल संपत्ति उद्यमी हैं। जर्मनी के थ्युरिंगिया राज्य में उनकी एक ज़मींदारी और शिकारियों के लिए एक लॉज भी है। प्रिंस रॉएस कुछ समय से गुप्तचर सेवाओं की निगरानी में थे। उन्हें हिरासत में ले लिया गया है। तख्ता पलटने पर शायद वे ही नए राजा बनते। 'राइशब्युर्गर' बिरादरी में वे एक पूजनीय व्यक्ति हैं। अपने भक्तों से कहा करते थे की आज का संघीय गणराज्य जर्मनी कोई संप्रभु राज्य नहीं है। उसका कथित 'बेसिक लॉ' भी कोई संविधान नहीं है। द्वितीय विश्वयुद्ध के विजेता मित्र राष्ट्रों ने 'बेसिक लॉ' को ज़बरदस्ती लिखवाया था।
'बेसिक लॉ' संविधान नहीं है : वैसे, सच्चाई यह भी है कि 1991 में पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी का एकीकरण होने तक हमेशा यही कहा जाता था कि 'बेसिक लॉ' संविधान नहीं है। संविंधान बनेगा विभाजित जर्मनी के एकीकरण के बाद दोनों भागों की जनता की इच्छा के अनुसार। य़ह भी कहा जाता था कि नए संविधान का अनुमोदन जनमत संग्रह द्वारा होगा। पर, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। एकीकरण-संधि में कामचलाऊ 'बेसिक लॉ' को ही संविधान मान लिया गया।
जर्मनी की आंतरिक गुप्तचर सेवा (संघीय संविधान-रक्षा कार्यालय) ने मार्च 2022 में पाया कि 'राइशब्युर्गर' परिवेश के कई लोग नेटवर्किंग कर रहे थे और देश की सुरक्षा की दृष्टि से बहुत ख़तरनाक़ योजनाएँ बना रहे थे। कुछ के बारे में अब कहा जा रहा है कि उन्होंने इसे केवल तख्तापलट की कल्पनाओं तक ही सीमित नहीं रखा था, बल्कि वे उग्रवादी कार्रवाइयों के लिए भी तत्पर थे।
यह भी कहा जा रहा है कि तख्तापलट के लिए प्रतिबद्धता की घोषणाओं पर नेटवर्क के सदस्यों के हस्ताक्षर भी लिए गए हैं। जांचकर्ताओं के निष्कर्षों के अनुसार, षड्यंत्र यदि सफल हो जाता, तो अन्य बातों के अलावा, जर्मनी के संसद भवन बुंडेस्टाग' पर सशस्त्र हमला होता। मार्शल लॉ और एक नई सरकार की घोषणा तथा एक नई जर्मन सेना की स्थापना होती।
टैप की गई टेलीफोन वार्ताएं : जर्मन सुरक्षा अधिकारी कह रहे हैं कि टैप की गई टेलीफोन वार्ताओं से पता चला कि भावी तख्तापलट के प्रयास के पीछे न केवल हाइनरिश प्रिंस फ़ॉन रॉएस ही था, बल्कि 'एलायंस' नाम का एक और शक्तिशाली संगठन भी था। इन वार्ताओं में कहते सुना गया कि सब कुछ तैयार है। सैटेलाइट फ़ोन पहले ही खरीदे जा चुके हैं और सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ियों को वितरित किए जा चुके हैं। इसके अलावा, नई सेना के लिए वर्दी बन गई है। एक नई सरकार के लिए कुछ नाम भी तय हो गए हैं। घोर दक्षिणपंथी पार्टी AfD के सैक्सनी राज्य के एक पूर्व नगर पार्षद को, जो एक निशानेबाज़ और बंदूक का लाइसेंस-धारी है, तख्तालट के अभियान के लिए 'सामग्री' की खरीद करनी थी।
जांचकर्ताओं का मानना है कि हथियार इत्यादि भी जमा कर लिए गए थे। जर्मन सेना के पूर्व सैनिकों के साथ मिलकर एक कमांडो दस्ते को जर्मन संसद पर धावा बोलना था और सांसदों को हथकड़ी लगाकर ले जाना था। एक कोड शब्द तब रेडियो पर प्रसारित किया जाना था, जिसके बाद सब जगह 'ब्लैकआउट' कर दिया जाता। इस प्रकार अंतत: सरकार को उखाड़ फेंकना था। यह कथित 'डे-एक्स' पहले मार्च में होने वाला था, लेकिन बाद में सितंबर की शुरुआत में होना तय हुआ।
सुरक्षा अधिकारियों की चिंता : सुरक्षा अधिकारियों को चिंता होने लगी कि कुछ संदिग्ध 'राइशब्युर्गर' इतने कट्टरपंथी भी हो सकते हैं, कि वे अपनी समझ से किसी भी समय संसद भवन पर हमला कर सकते हैं। जर्मनी के 'संघीय अपराध कार्यालय' (BKA) के अधिकारी, जिन्हें गर्मियों के अंत में संघीय लोक अभियोजक द्वारा जांच के लिए नियुक्त किया गया था, विशेष रूप से चिंतित थे। वे सोच रहे थे कि संसद भवन पर हमले की योजना बनाने वालों में निश्चित रूप से जर्मन सेना 'बुंडेसवेयर' के पूर्व सैनिक और बंदूकों के लाइसेंस-धारी मालिक भी हो सकते हैं।
ऐसा ही एक नाम 'बुंडेसवेयर' के एक पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल का था, जो कभी जर्मनी की 'पैराशूट बटालियन 251' का कमांडर था। वह भूतपूर्व पूर्वी जर्मनी की सेना में एक उच्च पदस्थ अधिकारी रह चुका था। 1991 में दोनों जर्मनी के एकीकरण के बाद उसे 'बुंडेसवेयर' में ले लिया गया था, पर बाद में हथियारों संबंधी अधिनियम के उल्लंघन और ग़बन का दोषी ठहराया जाने पर उसे 'बुंडेसवेयर' को छोडना पड़ा।
संसद भवन की 'सफाई' कर दें : 'राइशब्युर्गर' बिरादरी से निकटता रखने वालों में एक नाम, विशेष कमान्डो दस्ते KSK के एक पूर्व कर्नल का भी है। वह 2021 में पश्चिमी जर्मनी की सुरम्य आर घाटी में आई अपूर्व बाढ़ के समय बाढ़ पीड़ितों की सहायता करता देखा गया था। उसके खिलाफ भी जांच की जा रही थी। वह भी संसद भवन पर हमला करने वालों के नेटवर्क से संबंधित है। उसके बारे में कहा जाता है कि वह पर्दे के पीछे रहने वाला एक विचारक और वक्ता है। अपने एक भाषण में उसने मांग की थी कि KSK वाले बर्लिन जाएं और वहां के संसद भवन की 'सफाई' कर दें। कौन सोच सकता था कि जर्मनी-जैसे धनी, खुशहाल और पक्के लोकतांत्रिक देश में ऐसे सिरफिरे भी हो सकते हैं, जो राजशाही लाने के लिए तख्तापलट पर उतारू हों।
दुनिया की चौथी और यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यववस्था वाले जर्मनी में, 7 दिसंबर को हुई देशव्यापी छापेमारी और धरपकड़, यही दिखाती है कि लोकतंत्र भी ऐसे स्थायित्व की कोई गारंटी नहीं है कि उसके अपने लोग ही उसकी ईंट से ईंट नहीं बजा देंगे।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala