नई दिल्ली। चांद पर मौजूद खनिजों को लेकर चीन और अमेरिका आमने सामने नजर आ रहे हैं। दोनों ही देशों की नजर चांद पर मौजूद खनीजों पर है।
इंडियन एक्सप्रेस ने ब्लूमबर्ग के हवाले से इस मामले पर एक शोधपूर्ण रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसमें कहा गया है कि करीब आधी सदी से भी पहले स्पुतनिक और अपोलो के युग की तरह एक बार फिर दुनिया के बड़े नेता फिर अंतरिक्ष में प्रभुत्व हासिल करने के लिए दौड़ लगाना शुरू कर चुके हैं। हालांकि काफी पहले अमेरिका और सोवियत संघ ने इस पर संयुक्त राष्ट्र में नियमों का एक सेट तैयार किया है लेकिन महाशक्तियों की अगली पीढ़ी अब शायद इससे आगे निकल चुकी हैं।
अंतरिक्ष शोध पर अमेरिका और चीन के बीच होड़ शुरू हो चुकी है और यह चीन के तेजी से उभार के बाद हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एलन मस्क और जेफ बेजोस जैसे अरबपति डिजिटल और वाणिज्यिक अवसरों का पता लगाने के लिए अधिक से अधिक उपग्रह लॉन्च कर रहे हैं। लेकिन जब अमेरिका और चीन की बात आती है तो दांव और भी अधिक हो जाते हैं। यह वैचारिक विभाजन चंद्रमा और अन्य जगहों पर संभावित रूप से सैकड़ों अरबों डॉलर के संसाधनों को निकालने तक पहुंच जाता है।
एक अनुमान के मुताबिक चांद पर बड़े पैमाने पर हीलियम 3 छिपी हुई है और इसीलिए दुनियाभर के देश इसके पीछे भाग रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि 3 चम्मच हीलियम-3 धरती के 5000 टन कोयले के बराबर है।
अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगी देश चीन और रूस के साथ चल रही प्रतिस्पर्द्धा को अंतरिक्ष तक लेकर पहुंच गए हैं। चीन और रूस का आरोप है कि अमेरिका यूक्रेन और ताइवान में तनाव को बढ़ा रहा है। चीन के सरकारी मीडिया ने चेतावनी दी है कि अमेरिका अब 'अंतरिक्ष में नाटो' बनाना चाहता है।
राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन को एक स्पेस पावर बनाना चाहते हैं। यह देश रोबोट से लैस लूनर मिशन साल 2025 में रवाना करने जा रहा है। साल 2030 तक चीन की अंतरिक्षयात्री चांद पर भेजने की योजना है।