लंदन। कई दिन के युद्ध के बाद इसराइल और हमास ने अंतत: संघर्षविराम की घोषणा कर दी, लेकिन इस संबंध में कोई विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। दोनों पक्षों के बीच संघर्षविराम की खबर अच्छी है। इससे लोगों के मारे जाने का सिलसिला थमने तथा कम से कम फिलहाल के लिए और विनाश रुकने की उम्मीद है। मौजूदा स्थिति में दोनों पक्ष अपनी-अपनी जीत का दावा कर सकते हैं।
हमास यरुशलम में फिलीस्तीनियों के हितों की रक्षा करने का दावा कर सकता है, जबकि इसराइल के संकटग्रस्त प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू इसे बड़ी सैन्य एवं राजनीतिक उपलब्धि करार दे सकते हैं, लेकिन धुंध छंटने और गाजा में हुई व्यापक तबाही स्पष्ट होने के बाद वहां पुनर्निर्माण की धीमी और निराशाजनक प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। गाजा की अर्थव्यवस्था ने इसराइली अवरोधकों के कारण काफी कुछ सहा है और वह 2014 में दोनों पक्षों के बीच हुए युद्ध के बाद से पुनर्निर्माण के लिए संघर्ष कर रही है।
ऐसे में हालिया इसराइली हवाई हमलों के कारण हुए विनाश ने गाजा की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। गाजा को अब बड़ी विदेशी सहायता की आवश्यकता होगी, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इसके लिए धन आखिर कौन देगा। खाड़ी देश, विशेषकर कतर मदद मुहैया करा सकते हैं, लेकिन यूरोपीय संघ और अन्य स्थानों से मदद मिलने में समस्या होगी।
शांति प्रक्रिया में गतिरोध : 1990 के दशक में अमेरिका में तत्कालीन क्लिंटन प्रशासन के बाद से रुकी पड़ी शांति प्रक्रिया को फिर से शुरू करने में किसी की रुचि दिखाई नहीं देती। इस युद्ध के बाद इसराइल या अमेरिका समेत उसके किसी सहयोगी ने इस पुरानी समस्या के समाधान के लिए शांति प्रक्रिया शुरू करने की इच्छा नहीं जताई। अमेरिका का बाइडन प्रशासन अपने पूर्ववर्ती प्रशासनों की तरह ही विवाद के समाधान को बढ़ावा देने की हर कोशिश को नियंत्रित करना चाहता है और उसका लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समेत अन्य संस्थाओं को इसराइल और फिलीस्तीन के बीच शांति स्थापित करने का आधार बनाने में मदद करने से रोकना है।
पश्चिम एशिया में रूस और चीन की तुलना में अमेरिका को अब भी महत्वपूर्ण सैन्य, आर्थिक और राजनीतिक बढ़त हासिल है, लेकिन हाल के वर्षों में इसकी स्थिति में गिरावट आई है। इसराइल अन्य देशों के इरादों को लेकर संदेह करता है, ऐसे में अमेरिका ही एकमात्र ऐसी शक्ति है, जो मौजूदा गतिरोध को दूर सकती है।
हमास की स्थिति मजबूत होने की संभावना : यह बात याद रखी जानी चाहिए कि गाजा पर हमले से पहले यरुशलम समेत वेस्ट बैंक में हफ्तों से हिंसा हो रही थी। ऐसा प्रतीत होता है कि संघर्षविराम में मौजूदा संकट के इस पहलू को नजरअंदाज किया गया और यरुशलम के शेख जर्राह में फिलीस्तीनियों को उनके घरों से निकाले जाने को लेकर इसराइली सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने पर फिर स्थिति बिगड़ सकती है।
अमेरिका ने हमास को भले ही आतंकवादी संगठन घोषित किया है, लेकिन इसे फिलीस्तीन में अलग नजरों से देखा जाता है। उसने फिलीस्तीन में 2006 में आखिरी बार हुआ चुनाव आसानी से जीता था और इस महीने होने वाले चुनाव में उसके फिर से जीतने की संभावना थी, लेकिन फिलीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने ये चुनाव रद्द कर दिए।
हमास ने फिलीस्तीनियों के बीच ऐसी छवि बनाई है कि वह उनकी चिंताओं को समझने वाला समूह है और उनके हितों की रक्षा के लिए तैयार है। यह बदलाव लाने की युवा फिलीस्तीनियों की इच्छा और अब्बास एवं उनके दल फतह के प्रति निराशा को दर्शाता है।
संघर्षविराम- लेकिन कितने समय के लिए? : इसराइल में पिछले सप्ताह हुए प्रदर्शन रेखांकित करते हैं कि इसराइली फिलीस्तीनी भी अपने दर्जे को लेकर समान रूप से चिंतित हैं। नेतन्याहू ने इसराइल में यहूदी विचारधारा को बढ़ावा दिया है जिससे इसराइली फिलीस्तीनियों की चिंता बढ़ गई है। इसराइली यहूदियों और इसराइली फिलीस्तीनियों के बीच हुई हिंसा की घटना इस आवश्यकता को दर्शाती हैं कि सभी पक्षों को साथ आकर फिलीस्तीनियों एवं यहूदियों के संबंधों के लिए समाधान खोजना चाहिए।
हालांकि शांति प्रक्रिया शुरू होने की आस अब भी की जा सकती है, लेकिन इसकी संभावनाएं बहुत कम नजर आती है। पहले की तरह इसराइल और हमास के बीच यह संषर्घविराम इस बार भी तब तक ही कायम रहेगा, जब तक यह दोनों पक्षों के अनुकूल है। संषर्घविराम समझौते में ऐसी कोई ठोस बात नहीं दिखती, जो इस संघर्ष के समाधान की आस बंधाती हो। 2014 में लागू संघर्षविराम सात साल चला था, लेकिन उस समय उसे आगे बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया गया और इस बार भी कोई कदम न उठाने की अनिच्छा नजर आती है। (दि कन्वर्सेशन)