Apple and Foxconn will invest in India : हर चीज़ के सदा दो पहलू होते हैं। यूक्रेन पर रूसी आक्रमण कतई उचित नहीं है, किंतु रूसी आक्रमण का एक दूसरा पहलू यह है कि पश्चिमी देशों की जिन कंपनियों ने चीन में धुंआधार निवेश कर रखा है, वे रूस के प्रति चीन की निकटता से अब वहां से सरकने लगी हैं। पिछले एक दशक में भारत की अपूर्व आर्थिक प्रगति अब उन्हें भारत की तरफ खींच रही है।
अपने महंगे स्मार्ट फ़ोनों के लिए प्रसिद्ध अमेरिका की एपल कंपनी की भी अब समझ में आ गया है कि चीन पर उसकी निर्भरता उसके लिए हितकारी नहीं है। भारत में पिछले कुछ ही वर्षों में ही हुई तेज़ आर्थिक प्रगति की एपल की इस समझ में निर्णायक भूमिका रही है। एपल की आपूर्तिकर्ता फॉक्सकॉन द्वारा भारत में ऩए संयंत्रों के निर्माण के बारे में पश्चिमी मीडिया रिपोर्टें यही साबित करती हैं।
पिछले अप्रैल महीने के अंत में संयुक्त राष्ट्र की ओर से जब यह कहा गया कि भारत की जनसंख्या अब अनुमानतः 1 अरब 42 करोड़ 50 लाख हो गई है, चीन पीछे छूट गया है, तब से पश्चिमी देशों की उन कंपनियों के लिए भारत का आकर्षण और भी बढ़ गया है, जो अब तक चीन का गुणगान किया करती थीं।
पश्चिमी मीडिया का बदलता रुख : पश्चिमी मीडिया में भारत के बारें में ख़बरें भी अचानक न केवल बढ़ गई हैं, वे नकारात्मक से सकारात्मक होती दिख रही हैं। राजनीतिक दृष्टि से भी भारत को एक अपेक्षाकृत टिकाऊ, भरोसेमंद और जीवंत लोकतंत्र माना जाने लगा है। जिन अख़बारों में भारतीय शेयर बाज़ार की कभी चर्चा ही नहीं होती थी, वे अब हर दिन मुंबई शेयर बाज़ार का सेंसेक्स सूचकांक भी बताने लगे हैं। सेंसेक्स की एक से एक नई रिकॉर्ड ऊंचाई भी पश्चिमी निवेशकों का ध्यान खींचने लगी है।
इससे पहले इसी पश्चिमी मीडिया में लगभग हमेशा भारत में गरीबी, पिछडेपन, भ्रष्टाचार, बलात्कार, भाजपा के कथित 'हिंदू राष्ट्रवाद' और आरएसएस के 'हिंदू फ़ासीवाद' जैसी उन बातों का ही बोलबाला रहा करता था, जिन्हें भारत का वामपंथी अंग्रेज़ी मीडिया भी खूब उछालता रहता है। उल्लेखनीय है कि 'राष्ट्रवाद' पश्चिमी देशों में देशप्रेम या देशभक्ति नहीं, अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ समझने के अहंकार का घृणित पर्याय बन गया है। भारत के पुनः 'जगत गुरु' बनने जैसी बतों को भी पसंद नहीं किया जाता। पश्चिमवासियों को लगता है, मानो वे अनपढ़ बचकाने लोग हैं और भारतीय इतने महान कि वे उन्हें पढ़ाएंगे।
भारत में एपल की उपस्थिति : अप्रैल 2023 में इस अमेरिकी कंपनी ने मुंबई में अपना पहला भारतीय Apple स्टोर खोला, यह जानते हुए भी कि भारतीय उपभोक्ता अभी भी कीमतों के प्रति बहुत संवेदनशील है। गूगल का एंड्रायड सिस्टम अभी भी भारत में कहीं अधिक चलता है, पर एपल के उत्पाद भी तेजी से बढ़ते भारतीय मध्य वर्ग के बीच प्रतिष्ठा प्रतीक (स्टैटस सिंबॉल) के रूप में काफ़ी लोकप्रिय हो रहे हैं। लगातार बढ़ती मांग को देखते हुए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि एपल, भारत में अपने स्टोर बढ़ाने की योजना बना रहा है।
एपल के मुख्य कार्यकारी (सीईओ) टिम कुक ने पहले ही भविष्यवाणी की थी कि आईग्रुप के लिए भारत में विशाल बाजार क्षमता होगी। एक नए अध्ययन में मॉर्गन स्टेनली कंपनी के विश्लेषक एरिक वुड्रिंग ने भविष्यवाणी की है कि भारत 2028 तक एपल की आय में लगभग 15 प्रतिशत की वृद्धि करेगा। अगले दशक में 17 करोड़ से अधिक भारतीय आई-उपयोगकर्ता एपल की दुनिया में शामिल होंगे। वुड्रिंग को यह भी उम्मीद है कि अगले दशक में भारतीय बाजार में एपल की बिक्री सात गुना बढ़ जाएगी और अंततः 40 अरब डॉलर वार्षिक तक पहुंच जाएगी। तुलना के लिए : 2022 में एपल ने भारत में छह अरब अमेरिकी डॉलर की कमाई की।
उत्पादन का भारत में स्थानांतरण : एपल समूह की दिलचस्पी भारत के केवल बढ़ते हुए घरेलू बाज़ार में ही नहीं है। भारत उसके लिए उत्पादन स्थान के रूप में भी महत्वपूर्ण होने की क्षमता रखता है। एपल समूह कई महीनों से चीन पर अपनी भारी निर्भरता को कम करने के लक्ष्य पर काम कर रहा है। भारत में विनिर्माण बढ़ाने का निर्णय मुख्य रूप से चीनी और ताइवानी विनिर्माण सुविधाओं में उत्पन्न होने वाली समस्याओं का जवाब देने और अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने की एपल की इच्छा में निहित है।
चीन में उसे जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, वे चीनी सरकार की लंबे समय से चली आ रही शून्य-कोविड नीति और कर्मचारियों के विरोध के कारण और बढ़ गई हैं। इस कारण चीनी आपूर्तिकर्ताओं द्वारा एपल की जरूरतों को समय पर और पूर्णतः पूरा करने की क्षमता सीमित हो गई है। इसके अलावा एपल का मुख्य आपूर्तिकर्ता फॉक्सकॉन उस ताइवान में स्थित है, जिसे चीन अपनी संप्रभुता का क्षेत्र बताकर हर समय हड़पने की फ़िराक में रहता है। हाल के महीनों में चीन के पूर्वी तट के पास स्थित ताइवान को लेकर भू-राजनीतिक तनाव बढ़ने से स्थिति और भी जटिल हो गई है। अमेरिकी सरकार भी चीन में प्रौद्योगिकी से जुड़े उद्योगों पर वहां से जाने का दबाव बढ़ा रही है।
भारत में निवेश आकर्षक दिख रहा है : एपल ने कथित तौर पर वित्तीय वर्ष 2022 में भारत में लगभग 7 अरब डॉलर मूल्य के बराबर iPhone का उत्पादन किया- एक साल पहले की अपेक्षा तीन गुना अधिक, जो भारत में विनिर्माण पर बढ़ते फोकस का संकेत है। 2025 तक सभी iPhone का एक चौथाई भारत में बनाया जाएगा। एपल के अन्य आपूर्तिकर्ता, जिनमें विस्ट्रॉन, पेगाट्रॉन, सनवोडा, एवरी और सैलकॉम्प शामिल हैं, एपल उत्पादों के लिए उत्पादन कार्य को भारत में स्थानांतरित करने में निर्णायक भूमिका निभाएंगे।
ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन, एपल के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस साल मार्च की शुरुआत में ज्ञात हुआ कि फॉक्सकॉन तेलंगाना में एक बड़ी उत्पादन सुविधा के निर्माण की योजना बना रही है। दस साल के भीतर वहां 100,000 नौकरियां पैदा की जानी हैं। फॉक्सकॉन का तेलंगाना में एक ही संयंत्र बनाकर रुक जाने का इरादा नहीं है। जुलाई के अंत में, ब्लूमबर्ग ने भरोसेमंद स्रोतों का हवाला देते हुए बताया कि फॉक्सकॉन की तमिलनाडु में भी दो और संयंत्र बनाने की मंशा है। समझा जाता है कि दो उत्पादन सुविधाओं में से कम से कम एक iPhone सहित एपल के अन्य उत्पादों के भी काम आयेगी। निवेश की मात्रा लगभग 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर बताई जा रही है।
कर्नाटक में निवेश : कर्नाटक ने पिछले मार्च में फॉक्सकॉन की ही एक शाखा कंपनी द्वारा अपने यहां लगभग एक अरब डॉलर के निवेश को मंजूरी दी है। तेलंगाना और तमिलनाडु के बाद कर्नाटक फॉक्सकॉन की उत्पादन सुविधाओं को मंजूरी देने वाला तीसरा दक्षिण भारतीय राज्य बन गया है। भारत में अपने निवेशों द्वारा ताइवान की यह कंपनी भारत को चीन का एक भरोसेमंद विकल्प बनाना चाहती है। उसने तमिलनाडु के साथ इलेक्ट्रॉनिक घटकों के विनिर्माण की एक नई सुविधा में निवेश करने के समझौते पर भी हस्ताक्षर किए हैं। इस निवेश से 6000 नौकरियां सृजित होने की आशा है।
ये निवेश योजनाएं यही बताती हैं कि फॉक्सकॉन और अप्रत्यक्ष रूप से एपल भी अपनी उत्पादन गतिविधियों के भारत में स्थानांतरण को तेज़ी से आगे बढ़ा रही हैं। उनकी देखादेखी चीन में कार्यरत कई दूसरी विदेशी कंपनियां भी भारत को एक नया विकल्प मानने के लिए प्रेरित होंगी, पर भारत और प्रधानमंत्री मोदी के चिर आलोचक देशी-विदेशी विश्लेषक भी इस ताक में अवश्य रहेंगे कि भारत में कुछ न कुछ गड़बड़ और उथल-पुथल भी होती रहनी चाहिए, ताकि विदेशी निवेशक विचलित हों और भारत के बदले कोई दूसरा विकल्प ढूंढें। भारत के उत्थान से जलने और बिफरने वालों की कमी नहीं है।