ब्रूम (ऑस्ट्रेलिया)। संयुक्त राष्ट्र महासचिव, एंतोनियो गुतारेस की मानें तो दुनिया 'जलवायु नरक के राजमार्ग पर है' और हम उस पर काफी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। यह न केवल मानव जीवन और जलवायु अव्यवस्था के बीच खोई हुई प्रजातियों का नरक है, बल्कि मानसिक अस्वस्थता का भी नरक है जिसे विश्व स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. लिन फ्रीडली ने 'सामाजिक मंदी की कीमत पर आर्थिक विकास' के रूप में वर्णित किया है। बहुत सी परिस्थितियों में हम वित्तीय लाभ को समुदायों और प्रकृति से आगे रख रहे हैं।
स्थानीय (मूल निवासी) नेता पुरजोर तरीके से आवाज उठाने वाले उन लोगों में सबसे आगे हैं जो यह स्पष्ट रूप से यह देख रहे हैं कि ऐसा लंबे समय तक नहीं चल सकता। वो डटे हुए हैं, ऐसे हालात में जब पश्चिमी कानून जलवायु परिवर्तन को रोकने और स्थानीय पवित्र स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और इन अद्वितीय स्थानों के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, पर्यावरणीय, सामाजिक और विश्व विरासत मूल्यों को सुनिश्चित करने के कार्य के लिए अपर्याप्त हैं।
समाधान हालांकि हमारी आंखों के ठीक सामने हैं। यदि हमें जीवित रहना है तो हमें यह समझना होगा कि विभिन्न प्रणालियां एक साथ कैसे काम करती हैं और एकीकृत प्रणालियों में प्रतिभागियों की सापेक्ष भूमिकाएं और जिम्मेदारियां क्या होंगी। इनमें जैविक प्रणालियां जैसे कि पारिस्थितिक तंत्र के साथ ही मानव प्रणालियां जैसे कानून भी शामिल हैं।
धन की राजनीति में सुधार किए बिना जलवायु परिवर्तन का समाधान असंभव है। अगर हम स्थानीय लोगों और प्रकृति के साथ शांति बनाना चाहते हैं तो यह महत्वपूर्ण है। स्थानीय दर्शन और प्रथम (स्थानीय स्तर पर) कानून सभी के लिए बेहतर कानूनी और संस्थागत व्यवस्था बनाने में मदद कर सकते हैं।
जैसा कि कानून के विद्वान क्रिस्टीन ब्लैक ने लिखा है, पहला कानून या प्रथागत नियम कहता है कि कानून भूमि से आता है न कि मनुष्य से। यह प्रकृति थी जिसने ये कानून प्रदान किए। प्राचीन (लेकिन अब भी जारी) प्रथागत कानून की कहानियां, निष्पक्षता बनाने के लिए जानवरों, पक्षियों, हवा, चंद्रमा और सितारों का उपयोग करते हुए लोगों को एक-दूसरे के लिए न सिर्फ अच्छा और सभ्य इंसान बनना सिखाती हैं, बल्कि अपने शिक्षकों का सम्मान करना भी सिखाती हैं।
समूची पृथ्वी के स्वदेशी नेता प्रथम ऑस्ट्रेलियाई लोगों को ग्रह पर सबसे पुरानी जीवित संस्कृति के रूप में पहचानते हैं। प्रथम ऑस्ट्रेलियाई कहते हैं कि जलवायु समस्या के समाधान के लिए हमें एक ऐसी प्रणाली पर लौटना चाहिए जो लगभग 60000 साल या उससे अधिक वक्त से समय की कसौटी पर खरी उतरी हो : एक बायोरीजनल गवर्नेंस मॉडल।
यह तय करता है कि क्षेत्राधिकार को मानचित्र पर मनमानी रेखाओं से नहीं बनाया जाता है बल्कि जीव विज्ञान और भूगोल द्वारा निर्धारित किया जाता है। जैव क्षेत्रों के लिए शासन स्थानीय अधिकारों, पर्यावरण अधिकारों को जोड़ता है।
कानूनी विद्वान कबीर बाविकाटे और टॉम बेनेट ने जैव-सांस्कृतिक अधिकारों का वर्णन किया है- जो कि प्रथागत कानूनों के अनुसार, इसकी भूमि, जल और संसाधनों को बचाने के लिए समुदाय का लंबे समय से स्थापित अधिकार है। अधिकारों के एक अलग क्रम के रूप में, जैव-सांस्कृतिक अधिकार कानूनी व्यवस्थाओं को एक साथ लाने का एक तरीका प्रदान करते हैं।
जैव-सांस्कृतिक अधिकार दायित्व के नैतिक कानून पर आधारित हैं। पश्चिमी कानूनी अर्थों में जैव-सांस्कृतिक अधिकार 'स्वामित्व' नहीं हैं, बल्कि देखभाल और सुरक्षा का कर्तव्य है। कॉर्पोरेट गवर्नेंस के अग्रदूत शान टर्नबुल, इन अधिकारों और जिम्मेदारियों को स्वामित्व के बजाय स्वामित्व के साथ आने वाले दायित्व के रूप में समझाते हैं।
ऑस्ट्रेलिया के किम्बरली क्षेत्र में स्वदेशी राज्यों के लिए एक जैव-सांस्कृतिक दृष्टिकोण स्वदेशी कानूनों पर भरोसा करता है। ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पश्चिम के मूल निवासी सहस्राब्दियों से रह रहे हैं और उन्होंने एक सतत ज्ञान प्रणाली बनाई है।
मानवता को एक नए युग में ले जाने के लिए ज्ञान को अधिक व्यापक रूप से लागू किया जा सकता है जहां अर्थव्यवस्था एक दोहन प्रणाली पर आधारित नहीं है, बल्कि उस सामूहिक ज्ञान और गैर-स्थानीय और स्थानीय लोगों के बीच संसाधनों को साझा करने पर आधारित है। जैसा कि किम्बरली के लोग कहते हैं, हमें उस ज्ञान के 'सांप को जगाने' की आवश्यकता है। सांप को जगाना सबको साथ ले आता है।
Edited By : Chetan Gour