बर्लिन। जर्मनी में आम चुनाव के मतदान में 63 वर्षीय चांसलर एंगेला मर्केल को चौथी बार देश की कमान मिल गई है। इस जीत से खुश मर्केल ने माना है कि पहली बार पार्टी के लिए तय किए गए 40 प्रतिशत वोट के लक्ष्य को पाने में असफल रहे हैं। इस चुनाव में 60 साल में पहली बार धुर दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) पार्टी भी संसद में अपनी पहली सीट जीतकर इतिहास रचा है।
मतदान बाद हुए एग्जिट पोल के मुताबिक मर्केल के कंजर्वेटिव क्रिश्चियन यूनियन सीडीयू-सीएसयू गठबंधन को 33 प्रतिशत वोट मिले हैं और उसने अपने करीबी प्रतिद्वंद्वी मार्टिन शुल्ज के नेतृत्व वाली मध्य वाम सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) से दोहरे अंकों की बढ़त बना ली थी।
एएफडी का भी संसद में प्रवेश
जर्मन की व्यवस्था में सबसे बड़ा धमाका इस्लाम विरोधी, प्रवासी विरोधी और मात्र चार साल पुरानी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) ने किया है। उसे करीब 13 प्रतिशत वोट मिले हैं और वह देश की तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभरी है।
एएफडी के सीटें जीतने की संभावना महीनों से थी लेकिन विश्लेषक इसे जर्मनी के इतिहास में ऐतिहासिक पल बता रहे हैं। बर्लिन में पार्टी मुख्यालय में समर्थक एकत्र हुए और जश्न मनाया। जैसे ही टीवी पर नतीजे आए, कई समर्थक जर्मनी का राष्ट्रगान गाने लगे।
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद से पहली बार बुंडेसटैग में असली नाजियों के प्रवेश से सतर्क नेताओं ने चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में मतदाताओं से अनुरोध किया कि वे दक्षिणपंथी एएफडी को खारिज कर दें। बर्लिन स्थित ग्लोबल पब्लिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट के निदेशक थॉस्टर्न बेनर ने कहा कि यदि एएफडी प्रमुख विपक्षी पार्टी बनती है तो वे लोग मुख्य विषयों को चुनौती देंगे। यह संसद में चर्चा के सुर को बहुत ज्यादा बदल देगा।
मर्केल की लंबी पारी: मर्केल 12 साल से सत्ता में हैं। उन्होंने प्रचार अभियान में अपने शासनकाल में देश में निम्न बेरोजगारी, मजबूत आर्थिक वृद्धि, संतुलित बजट और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते महत्व जैसी उपलब्धियों पर जोर दिया। इसका चुनाव पूर्व कराए गए जनमत संग्रहों में भी असर देखने को मिला था। जिनमें मर्केल के गठबंधन को प्रतिद्वंद्वी मार्टिन शुल्ज और उनकी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी पर बढ़त दिखाई गई थी। सरकार बनाने में लगेगा वक्तजर्मनी की संघीय संसद के निचले सदन बुंडेसटैग में प्रवेश के लिए चार पार्टियों के पांच फीसदी की सीमा पार करने का अनुमान है। ऐसे में अगली सरकार के गठन में महीनों लग सकते हैं।