यूक्रेन पर रूस के हमले के बीच एक और युद्ध की आहट सुनाई देने लगी है। ...और यह युद्ध लड़ा जाएगा चीन और ताइवान के बीच। लंबे से चीन की मंशा ताइवान पर कब्जा करने की रही है। यदि रूस के हमले को नहीं रोका गया अथवा दूसरे देशों ने इस मामले में दखल नहीं दिया तो आने वाले समय में ताइवान पर चीन हमला कर सकता है।
चीन अभी से इस बात संकेत भी देना शुरू कर दिए हैं। यूक्रेन पर रूसी हमले को लेकर चीन द्वारा दिया गया बयान तो इसी ओर इशारा कर रहा है। चीन ने कहा है कि यूक्रेन पर रूस के हमले को कब्जा नहीं माना जाएगा। सोशल मीडिया पर भी ताइवान पर चीनी हमले को लेकर तरह-तरह की बातें चल रही हैं। दूसरी ओर, नाटो देशों की 'उदासीनता' यूक्रेन को तबाही की ओर धकेल रही है।
क्या है चीन-ताइवान तनाव की वजह : दरअसल, चीन ने ताइवान को हमेशा ही ऐसे प्रांत के रूप में देखा है जो उससे अलग हो गया है। चीन की मंशा है कि ताइवान एक बार फिर उसके कब्जे में आ जाए। वहीं, ताइवान के लोग अपने आपको एक अलग देश के रूप में देखना चाहते हैं।
हालांकि लंबे समय तक संबंधों में तल्खी के बाद 1980 के दशक में दोनों के रिश्ते सुधरना भी शुरू हुए थे। तब चीन ने ताइवान के सामने प्रस्ताव रखा कि अगर वो खुद को चीन का हिस्सा मान लेता है तो उसे स्वायत्तता प्रदान की जाएगी।
साल 2000 में चेन श्वाय बियान ताइवान के राष्ट्रपति बनने के बाद दोनों के बीच दूरियां और बढ़ गईं। बियान ने खुले तौर पर ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन किया। यही बात चीन को हजम नहीं हुई। तब से चीन और ताइवान के संबंध और ज्यादा तनावपूर्ण हो गए, लेकिन बीच-बीच में ताइवान ने चीन के साथ व्यापारिक संबंध बेहतर बनाने की कोशिशें की।
क्या कहता है इतिहास : तांग राजवंश (618-907 ई.) के समय से ही चीनी लोग मुख्य भूमि से बाहर निकलकर ताइवान में बसने लगे थे। वर्ष 1642 से 1661 तक चीन डच (वर्तमान में नीदरलैंड) उपनिवेश था। तब ताइवान नीदरलैंड्स की कॉलोनी था। उसके बाद चीन का चिंग राजवंश वर्ष 1683 से 1895 तक ताइवान पर शासन करता रहा।
वर्ष 1894 में चीन के चिंग राजवंश और जापान के साम्राज्य के बीच पहला चीन-जापान युद्ध लड़ा गया था। करीब एक वर्ष तक चलने वाले इस युद्ध में जापान की जीत हुई। उस समय जापान ने कोरिया और दक्षिण चीन सागर में अधिकांश भूमि पर कब्जा कर लिया। इसमें ताइवान भी शामिल था।
इस हार के बाद चीन में राजनीतिक विद्रोह की शुरुआत हो गई। 12 फरवरी, 1912 को चीन में साम्राज्यवाद समाप्त कर दिया गया। इस तरह चीन में राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी की सरकार बनी और जितने क्षेत्र चिंग राजवंश के अधीन थे वे सभी चीन की नई सरकार के क्षेत्राधिकार में आ गए। इस दौरान चीन का आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना कर दिया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय के बाद ताइवान पर भी फिर से राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी का अधिकार मान लिया गया।
वर्ष 1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्त्व में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने चिआंग काई शेक के नेतृत्त्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को सैन्य संघर्ष में हरा दिया और चीन पर कम्युनिस्ट पार्टी का शासन स्थापित हो गया। शेक राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी के सदस्यों के साथ ताइवान चले गए और वहां उन्होंने अपनी सरकार बनाई।
ताइवान की भौगोलिक स्थिति : ताइवान पूर्वी एशिया का एक द्वीप है, जिसे चीन एक विद्रोही क्षेत्र के रूप में देखता है। करीब 36 हजार 197 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस द्वीप की आबादी 2.36 करोड़ के आसपास है। ताइवान की राजधानी ताइपे है, जो कि ताइवान के उत्तरी भाग में स्थित है। ताइवान में बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था है। यहां के लोग अमाय (Amoy), स्वातोव (Swatow) और हक्का (Hakka) भाषाएं बोलते हैं। चीनी मंदारिन यहां राजकाज की भाषा है।
ताइवान की राष्ट्रपति की चेतावनी : अक्टूबर 2021 में ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने अपने एक लेख में चीन की बढ़ती आक्रामकता पर चेतावनी भरे अंदाज में कहा था कि अगर चीन ने ताइवान को अपने नियंत्रण में ले लिया तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे।
उस समय चीन के 38 लड़ाकू विमान ताइवान के हवाई क्षेत्र में घुस गए थे। ताइवान के प्रधानमंत्री सु सेंग-चांग ने चीन की इस हरकत को क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा बताया था। अक्टूबर 2021 में चीन ने पहले चार दिनों में 150 के करीब लड़ाकू विमान ताइवान के हवाई क्षेत्र में भेजे थे। उस समय दुनिया के कई देशों ने इसे चीन की आक्रामकता के तौर पर लिया था।
साई इंग वेन ने अपने लेख में कहा था कि हम शांति चाहते हैं, लेकिन हमारे लोकतंत्र और जीवन शैली को खतरा पहुंचता है तो ताइवान अपनी रक्षा के लिए जो भी आवश्यक होगा करने के लिए पूरी तरह तैयार है।