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जी-20 में अफ़्रीकी यूनियन बना गेम चेंजर

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- डॉ. ब्रह्मदीप अलूने
भारत में आयोजित जी-20 दुनिया के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है। दरअसल 55 देशों के संगठन अफ़्रीकी यूनियन के इसमें शामिल होने से वैश्विक स्तर पर बड़े बदलाव आ सकते हैं। जी-20 के सदस्य देशों के पास अब तक दुनिया की 85 फ़ीसदी जीडीपी, 75 फ़ीसदी ग्लोबल ट्रेड और दुनिया की दो तिहाई आबादी थी। अब अफ़्रीकी यूनियन को पूर्ण सदस्यता मिलने के साथ ही यह आंकड़े बदल जाएंगे अर्थात् जी-20 अब ऐसा वैश्विक मंच बन गया है, जो दुनिया के व्यापार की दशा और दिशा तय करेगा।

अर्थव्यवस्था ही राजनीति के उद्देश्य तय करती है। अत: वैश्विक राजनीति भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती। अफ़्रीकी यूनियन की सदस्यता दिलाने को लेकर चीन, रूस और भारत में कड़ी प्रतिस्पर्धा थी और अंतत: बाज़ी भारत के हाथ लगी। ऐसे में यह समझना बेहद जरूरी है कि अफ़्रीकी यूनियन को जी-20 में शामिल करने के लिए भारत ने अभूतपूर्व प्रयास क्यों किए और भारत के इसमें क्या हित दिखाई पड़ते हैं। दरअसल अफ़्रीकी महाद्वीप गरीबी,पिछड़ेपन,राजनीतिक अस्थायित्व और गृहयुद्ध से अभिशिप्त रहा है। इसके अधिकांश देश यूरोप के उपनिवेश रहे हैं।

यूरोपियन देशों से अफ्रीका आज़ाद तो हुआ लेकिन विकास की दौड़ में वह पिछड़ता चला गया। हालात इतने खराब हैं कि अफ़्रीकी देश भारत,चीन और रूस पर यूरोपियन देशों से ज्यादा भरोसा करने लगे। चीन ने इस भरोसे का फायदा उठाकर एशिया प्रशांत क्षेत्र, अफ्रीका और पूर्वी यूरोप में संभावित आर्थिक विकास को गति देने के नाम पर अफ़्रीकी देशों को ढांचागत निर्माण के लिए बेतहाशा कर्ज दिया और उन्हें जाल में फंसा लिया।
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चीन का दावा है कि उसने अफ्रीका में बड़ी संख्या में महत्वपूर्ण परियोजनाओं को लगातार बढ़ाया है,जिसने अफ्रीकी देशों के आर्थिक व सामाजिक विकास को प्रभावी ढंग से बढ़ाया है। वहीं कई एजेंसियों का दावा है कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत बीजिंग की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से अफ्रीका को लाभ तो हुआ है लेकिन उनके प्रतिकूल प्रभाव देश के पर्यावरण के साथ-साथ अर्थव्यवस्था पर भी देखे जा सकते हैं।

अफ्रीकी संघ का एजेंडा 2063 है, जिसके अनुसार वह पूरे अफ़्रीकी महाद्वीप में खुशहाली,लोकतंत्र,मानवाधिकारों की सुरक्षा और राजनीतिक स्थिरता की बात कहता है। अफ़्रीकी यूनियन का प्रमुख उद्देश्य एकल मुद्रा और एकीकृत प्रतीक्षा बल की स्थापना करना है। यूनियन चाहता है कि उसके सदस्य देशों में लोकतंत्र और मानवाधिकार सुरक्षित रहे जिससे अर्थव्यवस्था मजबूत हो सके।  जी-20 के प्रमुख विषय टिकाऊ विकास, स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा,पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और भ्रष्टाचार को खत्म करना है।

वहीं चीन पूरी दुनिया में सड़कों,रेलवे लाइनों और समुद्री रास्तों का जाल बुनना चाहता है,जिसके ज़रिए वो पूरी दुनिया से आसानी से कारोबार कर सके। इन सबके बीच चीन को लोकतंत्र और मानवाधिकारों की कोई चिंता नहीं है और वह अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए किसी भी देश की चुनी हुई सरकार को अस्थिर कर सकता है,जैसा उसने म्यांमार में किया। अफ़्रीकी देश इससे आशंकित हैं,उनका सहयोग और विश्वास भारत पर ज्यादा नजर आता है। वहीं भारत की विविधता और लोकतांत्रिक स्थायित्व उसे ग्लोबल साउथ का नेतृत्व करने को प्रेरित करता है।

जी-20 में अफ़्रीकी यूनियन के शामिल होने के दूरगामी परिणाम न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए, बल्कि सामरिक सुरक्षा के लिए भी क्रांतिकारी हो सकते हैं। नवंबर 2016 में एक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के दौरानतत्कालीन जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफ्रीका में भारत-जापानी सहयोग को बढ़ावा देने और इस महाद्वीप में विशिष्ट संयुक्त परियोजनाओं का पता लगाने के उद्देश्य के महत्व को रेखांकित किया था। जापान और भारत की चीन से कड़ी सामरिक प्रतिद्वंदिता रही है। यह जापान की स्वतंत्र और खुली इंडो-पैसिफिक रणनीति और भारत की एक्ट ईस्ट नीति में भी प्रतिबिंबित होती है।

भारत और जापान अफ्रीका में रणनीतिक साझेदारी बढ़ाकर चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट को संभावित संतुलन प्रदान कर सकते हैं। भारत में काम करने वाली जापानी कंपनियों की अफ्रीकी बाजार में महत्वपूर्ण रुचि है और वे भारत के सहयोग से अफ्रीकी बाजार में प्रवेश करने को लालायित रहे हैं। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि भारत भौगोलिक रूप से जापान की तुलना में अफ्रीका के करीब है।

भारत अपने व्यापार और प्रवासी नेटवर्क के कारण अफ़्रीकी महाद्वीप के साथ मजबूत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध रखता है और समान बाजार विशेषताओं और उत्पाद आवश्यकताओं को साझा करता है। जाहिर है इसका फायदा भारतीय कंपनियों को भी मिल सकता है और वे अफ़्रीकी देशों में बेहतर तरीके से काम कर सकती हैं। शिक्षा,स्वास्थ्य सेवाओं,डिजिटल और अंतरिक्ष में भारत की विशिष्टता से अफ्रीका के कई देश खासे प्रभावित हैं और वे भारत से सहयोग बढ़ाना चाहते हैं। कोरोना काल में अफ्रीका के कई देशों में भारत की वैक्सीन कूटनीति का बेहद सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

भारत में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शामिल न होकर यह संदेश दिया है कि चीन उन्हीं वैश्विक मंचों को गंभीरता से लेता है, जहां चीन के व्यापक हित सुरक्षित होते हों। जाहिर है भारत ने ग्लोबल साउथ का नेतृत्व करने का बड़ा अवसर जी-20 के विशाल आयोजन में ढूंढा और अफ्रीकी यूनियन को इसकी स्थाई सदस्यता दिलवाकर अपना दावा भी पुख्ता कर लिया। भविष्य में अफ्रीकी महाद्वीप में अमेरिका,भारत,जापान,ब्रिटेन,ऑस्ट्रेलिया और फ़्रांस की नई साझेदारियां देखने को मिल सकती हैं।

इससे चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के जरिए सड़कों, रेल मार्गों,बंदरगाहों, पाइपलाइनों और अन्य बुनियादी सुविधाओं के माध्यम से मध्य एशिया से लेकर यूरोप और अफ्रीका तक कनेक्टिविटी तैयार कर आर्थिक महाशक्ति बनने का ख्वाब धराशायी हो सकता है। भूराजनैतिक दृष्टि से भारत के लिए चीन बड़ी चुनौती है,ऐसे में नई दिल्ली में आयोजित जी-20 की सफलता से चीन निश्चित ही आशंकित होगा।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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