लंबे वक्त से ये चर्चा और बहस का विषय रहा है कि भूत होते हैं या नहीं। इसे लेकर हर आदमी का अपना मत और विश्वास है। कई संस्कृतियों में लोग आत्माओं और मृत्यु के बाद दूसरी दुनिया में रहने वाले लोगों पर भरोसा करते हैं। तो वहीं कई लोग इस बारे में वैज्ञानिक तर्कों के साथ सोचते हैं।
भूतों को लेकर कई अध्ययन हुए और किताबें लिखी गईं। आइए जानते हैं क्या है उनके तर्क।
साल 2019 में Ipsos Poll में ये बात सामने आई थी कि 46 फीसदी अमेरिकी लोगों भूतों में भरोसा करते हैं। इस सर्वे में 7 फीसदी लोगों ने यह भी माना था कि वो वैंपायर्स में भी विश्वास करते हैं। बहुत से लोग पैरानॉर्मल बातों पर भरोसा करते हैं। कई लोग सदियों से भूतों और आत्माओं से बातें करने का दावा करते आ रहे हैं। कैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड जैसी प्रसिद्ध यूनिवर्सिटीज में घोस्ट क्लब बने हैं।
भूतों और आत्माओं पर अध्ययन करने के लिए 1882 में सोसाइटी फॉर फिजिकल रिसर्च बनाई गई थी। इस सोसाइटी की प्रेसीडेंट और इन्वेस्टिगेटर इलेनॉर सिडविक नाम की महिला थीं। इन्हें असली फीमेल घोस्टबस्टर कहा जाता था। अमेरिका में 1800 के अंत में भूतों पर काफी रिसर्च की गई।
सोशियोलॉजिस्ट डेनिस एंड मिशेल वासकुल ने साल 2016 में एक किताब लिखी। किताब का नाम था Ghostly Encounters: The Hauntings of Everyday Life.
इस किताब में यह बात सामने आई कि बहुत से लोग इस बात को लेकर पुख्ता नहीं थे कि उन्होंने सच में भूत ही देखा है। या यह पैरानॉर्मल यानी परालौकिक प्रक्रिया हुई भी है या नहीं। क्योंकि जिस तरह की चीजें उन्होंने देखी वो परंपरागत भूत की इमेज से मिलती नहीं है।
लोग अपने हिसाब से भूतों को नाम देते हैं, जैसे- पोल्टरजिस्ट्स डरने वाला भूत, रेसीड्यूल हॉटिंग्स अवशिष्ट भूतिया, इंटेलिजेंट स्पिरिट्स बुद्धिमान आत्माएं और शैडो पीपुल यानी परछाइयों की तरह दिखने वाले लोग। इन नामों से ऐसा लगता है कि इंसानों ने भूतों की कई प्रजातियां बना दी हैं। जिनकी कोई तय संख्या नहीं है। ये अलग-अलग इंसान के हिसाब से बनती-बिगड़ती रहती हैं।
विज्ञान की भाषा में जब भूतों के बारे में सोचा जाता है तो सबसे पहले ये बात सामने आती है कि क्या ये वस्तु हैं या नहीं? यानी क्या ये ठोस पदार्थ के बीच में से निकल सकते हैं, बिना उन्हें बिगाड़े। या वो दरवाजों को खुद खोल या बंद कर सकते हैं। या एक कमरे से कोई चीज दूसरी जगह पर फेंक सकते हैं। इन चीजों को लेकर कई विवाद हैं। अगर तार्किक तौर पर फिजिक्स के फॉर्मूले से देखें तो सवाल उठता है कि अगर भूत इंसानी आत्माएं हैं तो वो कपड़ों में क्यों दिखती हैं। उनके हाथों में डंडे, टोपी और कपड़ें क्यों रहते हैं।
जिन लोगों की हत्या हो जाती है, कई बार उनकी आत्माएं बदला लेने के लिए किसी को माध्यम बनाकर मामले की जांच करवाती हैं। हत्यारें की पहचान करवाती हैं। लेकिन ये सच है या नहीं। इस पर सवाल हैं। क्योंकि भूतों को लेकर कोई तार्किक वजह नहीं है। भूतों को पकड़ने या मारने वाले यानी घोस्ट हंटर्स अलग-अलग तरीके अपनाते हैं। ताकि भूतों, आत्माओं की मौजूदगी का पता कर सके। ज्यादातर तरीके वैज्ञानिक होते हैं। भूतों को देखने और उनकी मौजूदगी जांचने के लिए अत्याधुनिक मशीनों का सहारा लिया जाता है।