Shree Sundarkand

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

17 सितंबर : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 67वें जन्म दिवस पर विशेष

Advertiesment
हमें फॉलो करें Narendra Modi Birthday
webdunia

ललि‍त गर्ग

*नरेन्द्र मोदीरूपी युगयात्रा की आवाज को सुनें
 
एक दीया लाखों दीयों को उजाला बांट सकता है, यदि दीये से दीया जलाने का साहसिक  प्रयत्न कोई शुरू करे। अंधेरों से संघर्ष करने की एक सार्थक मुहिम हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र  मोदी के नेतृत्व में शुरू हो चुकी है और उसकी सुखद प्रतिध्वनियां हमें पिछले 3 वर्षों में  बार-बार सुनाई देती रही है। 
 
यों तो उनका 67 वर्षों का संपूर्ण जीवन एक प्रेरक कहानी है। उनका जीवन त्याग, समर्पण,  प्रबुद्धता, करुणा, भारतीयता से ओतप्रोत है, जो भारत के अस्तित्व एवं अस्मिता की सुरक्षा  के लिए सतत प्रयासरत है। एक चाय वाले से प्रधानमंत्री तक का सफर सचमुच अद्भुत सफर  है, एक युगयात्रा है, एक आह्वान है।
 
नरेन्द्र मोदी का गुजरात के मेहसाणा जिले के वडनगर में 17 सितंबर 1950 को जन्म  हुआ। वैसे तो वे किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं लेकिन उन्हें असल में कई ‘सफेद कामों’  और साहसिक निर्णयों के लिए जाना जाता है। गुजरात में मुख्यमंत्री की 2001 में गद्दी  संभालने वाले मोदी सबसे अधिक दिनों तक पद पर बने रहने वाले मुख्यमंत्री हैं। 
 
उन्होंने भारत के विकसित राज्यों में गुजरात को पहली पंक्ति पर ला खड़ा किया है और  अब वे भारत को दुनिया के विकसित देशों में अग्रिम पंक्ति पर खड़ा करने के लिए जुटे हुए  हैं। ऐसे चमत्कारी एवं करिश्माई व्यक्ति को उनके 67वें जन्मदिन पर संपूर्ण राष्ट्र  शुभकामनाएं देते हुए गर्व का अनुभव कर रहा है।
 
नरेन्द्र मोदी दूरदर्शी एवं इन्द्रधनुषी बहुआयामी व्यक्तित्व हैं। कभी वे स्वतंत्रता दिवस के  लाल किले के भाषण में स्कूलों में शौचालय की बात करते हैं तो कभी गांधी जयंती के  अवसर पर स्वयं झाडू लेकर स्वच्छता अभियान का शुभारंभ करते हैं। कभी विदेश की धरती  पर हिन्दी में भाषण देकर राष्ट्रभाषा को गौरवान्वित करते हैं तो कभी 'मेक इन इंडिया' का  शंखनाद कर देश को न केवल शक्तिशाली बल्कि आत्मनिर्भर बनाने की ओर अग्रसर करते  हैं। नई खोजों, दक्षता, कौशल विकास, बौद्धिक संपदा की रक्षा, रक्षा क्षेत्र में उत्पादन, श्रेष्ठ  का निर्माण- ये और ऐसे अनेको सपनों को आकार देकर सचमुच मोदीजी भारत को लंबे दौर  के बाद सार्थक अर्थ दे रहे हैं।
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नया भारत बनाने की बात कर रहे हैं। वे भारत को भौतिक दृष्टि से  ही नहीं बल्कि नैतिक दृष्टि से भी सशक्त बनाना चाहते हैं। स्वतंत्रता के 7वें दशक में  पहुंचकर पहली बार ऐसा आधुनिक भारत खड़ा करने की बात हो रही है जिसमें नए शहर  बनाने, नई सड़कें बनाने, नए कल-कारखाने खोलने, नई तकनीक लाने, नई शासन-व्यवस्था  बनाने के साथ-साथ नया इंसान गढ़ने का प्रयत्न हो रहा है। एक शुभ एवं श्रेयस्कर भारत  निर्मित हो रहा है।
 
मोदीजी का जन्मदिन मनाते हुए हम महसूस कर रहे हैं कि निराशाओं के बीच आशाओं के  दीप जलने लगे हैं, ये शुभ संकेत हैं। एक नई सभ्यता और एक नई संस्कृति करवट ले रही  है। नए राजनीतिक मूल्यों, नए विचारों, नए इंसानी रिश्तों, नए सामाजिक संगठनों, नए  रीति-रिवाजों और नई जिंदगी की हवाएं लिए हुए आजाद मुल्क की एक ऐसी गाथा लिखी  जा रही है जिसमें राष्ट्रीय चरित्र बनने लगा है, राष्ट्र सशक्त होने लगा है, न केवल भीतरी  परिवेश में बल्कि दुनिया की नजरों में भारत अपनी एक स्वतंत्र हस्ती और पहचान लेकर  उपस्थित है। 
 
चीन की दादागिरी और पाकिस्तान की दकियानूसी हरकतों को मुंहतोड़ जवाब पहली बार  मिला है। चीन ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि सीमा विवाद को लेकर डोकलाम में  उसे भारत के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। यह सब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के  करिश्माई व्यक्तित्व का प्रभाव है। उन्होंने लोगों में उम्मीद जगाई, देश के युवाओं के लिए  वे आशा की किरण हैं। 
 
इसका कारण यही है कि लोग ताकतवर और तुरंत फैसले लेने वाले नेता पर भरोसा करते हैं  ऐसे कद्दावर नेता की जरूरत लंबे समय से थी जिसकी पूर्ति होना और जिसे पाकर राष्ट्र  केवल व्यवस्था पक्ष से ही नहीं, सिद्धांत पक्ष भी सशक्त हुआ है। किसी भी राष्ट्र की ऊंचाई  वहां की इमारतों की ऊंचाई से नहीं मापी जाती बल्कि वहां के राष्ट्रनायक के चरित्र से मापी  जाती है। उनके काम करने के तरीके से मापी जाती है। 
 
ऑस्कर वाइल्ड ने कहा था कि मेरी बहुत साधारण रुचि है कि मैं श्रेष्ठ से संतुष्ट हो जाता  हूं। नरेन्द्र मोदी भी भारत को श्रेष्ठता के सर्वोच्च शिखर पर आरूढ़ करने के लिए प्रयासरत  हैं। हम श्रेष्ठ दिखें, हम श्रेष्ठ बोलें और श्रेष्ठ सुनें। श्रेष्ठता ही हमारा ध्येय हो। इसी  श्रेष्ठतारूपी दीये को जब हम अपने मन में जलाएंगे या इसकी रोशनी से स्वयं का  साक्षात्कार करेंगे तभी हम देश को वास्तविक उन्नति की ओर अग्रसर कर सकेंगे। 
 
उनका जन्मदिन राष्ट्र के लिए एक नई प्रेरणा लेकर उपस्थित हो रहा है। उन्हीं के शब्दों में  'माना कि अंधेरा घना है, लेकिन दीया जलाना कहां मना है।' उनका दीये जलाने की प्रेरणा  देना सवा सौ करोड़ देशवासियों में नई ऊर्जा का संचार कर रहा है अन्यथा बीते लंबे दौर में  बहुत कठिन रहा है यह रोशनी का सफर तय करना। बहुत कठिन रही है तेजस्विता और  तपस्विता की यह साधना। 
 
मगर कितने आश्चर्य की बात है कि प्रकाश बांटने की इस महत्ता पर भी उनमें न कभी  अहं जागता है और न कभी अपनी लघुता पर हीनता का अहसास होता है। वे न उत्कर्ष की  स्थिति में अहंकार को पालते हैं और न अपकर्ष पर चिंता में डूबते हैं। 
 
सचमुच! सतत संतुलित गति में सक्रिय सफर का एक नाम है मोदी, जो हमारे आस-पास  बुराइयों के घुप्प अंधेरों को नेस्तनाबूद करने को तत्पर है। मोदी उन लोगों के लिए चुनौती  है, जो अकर्मण्य, आलसी, निठल्ले, हताश, सत्वहीन बनकर सिर्फ सफलता की ऊंचाइयों के  सपने देखते हैं, पर अपनी दुर्बलताओं को मिटाकर नई जीवनशैली की शुरुआत का संकल्प  नहीं स्वीकारते।
 
तभी तो मोदी की विचारधारा हमारी एकता, संगठन, सौहार्द, भाईचारा, समन्वय और मैत्री  की बुनियाद बनने की क्षमता रखती है। उनके नए भारत का संकल्प सबके अस्तित्व को  स्वीकृति देता है बिना किसी भेदभाव के, क्योंकि विकास को बांटा जा सकता है, पर उसका  बंटवारा नहीं किया जा सकता। जो भी इस विकासरूपी मिट्टी के दीये में तेल और बाती  डालेगा, अवश्य आलोकित होगा।
 
सचमुच! दीया बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। ठीक इसी तरह मोदी भी बुराई पर  अच्छाई, असत्य पर सत्य, अंधकार पर प्रकाश एवं अवरुद्ध विकास पर विकास का प्रतीक  हैं।
 
इसीलिए मोदी का संदेश है कि- हम जीवन से कभी पलायन न करें, जीवन को परिवर्तन दें,  क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर बुजदिली का धब्बा लगता है जबकि परिवर्तन में  विकास की संभावनाएं सही दिशा और दर्शन खोज लेती है। 
 
मोदी-दर्शन कहता है- जो आदमी अभय से जुड़ता है वह अकेले में जीने का साहस करता  है। जो अहिंसा को जीता है वह विश्व के साथ मैत्री स्थापित करता है। जो अनेकांत की  भाषा में सोचता है वह वैचारिक विरोधों को विराम देता है। 
 
मोदी इस बात की परवाह नहीं करते कि लोग क्या कहेंगे, क्योंकि वे अपने कर्म में निष्ठा  से प्रयत्नशील हैं। पुरुषार्थ का परिणाम फिर चाहे कैसा भी क्यों न आए, वे कभी नहीं  सोचते। उनको अपनी कार्यजा शक्ति पर कभी संदेह नहीं रहा। उनका आत्मविश्वास उन्हें  नित नवीन रोशनी देता है। यही पुरुषार्थ और निष्ठा उनको सीख और समझ देती है कि  सिर्फ कुर्सी पर बैठने वालों का कर्तृत्व ही कामयाबी पर नहीं पहुंचता, सामान्य कागजों पर  उतरने वाले आलेख भी इतिहास की विरासत बनते देखे गए हैं। 
 
दीया छोटा भले ही हो, मगर संपूर्ण संसार प्रकाश के लिए उससे बंधा है और प्रकाश ही  जीवन है। समय से पहले समय के साथ जीने की तैयारी का दूसरा नाम है मोदी। दुनिया  का कोई सिकंदर नहीं होता, वक्त सिकंदर होता है इसलिए जरूरी है कि हम वक्त के साथ  कदम से कदम मिलाकर चलना सीखें। मोदीजी के स्वयं के शब्द हैं कि जो निरंतर चलते  रहते हैं वही बदले में मीठा फल पाते हैं। सूरज की अटलता को देखो, गतिशील और  लगातार चलने वाला, कभी ठहरता नहीं, इसलिए बढ़ते चलो।
हमारे राष्ट्रनायकों ने, शहीदों ने एक सेतु बनाया था संस्कृति का, राष्ट्रीय एकता का, त्याग  का, कुर्बानी का, जिसके सहारे हम यहां तक पहुंचे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी ऐसा ही  सेतु बना रहे हैं ताकि आने वाली पीढ़ी उसका उपयोग कर सके। मोदीजी चाहते हैं कि हर  नागरिक इस सेतु बनाने के लिए तत्पर हो। यही वह क्षण है जिसकी हमें प्रतीक्षा थी और  यही वह सोच है जिसका आह्वान है अभी और इसी क्षण शेष रहे कामों को पूर्णता देने का,  क्योंकि हमारा भविष्य हमारे हाथों में हैं।
 
जरूरत है अंधेरी गलियां बुहारने की ताकि बाद में आने वाली पीढ़ी कभी अपने लक्ष्य से  भटक न पाए। जरूरत है सत्य की तलाश शुरू करने की जहां न तर्क हो, न संदेह, न  जल्दबाजी, न ऊहापोह, न स्वार्थों का सौदा और न दिमागी बैसाखियों का सहारा। वहां हम  स्वयं सत्य खोजें। जरूरत है विकास के इस सफर में अतीत सबक बने, भविष्य प्रेरणा बने  और वर्तमान कार्यजा शक्ति के विकास का माध्यम, क्योंकि हमारे लिए अब प्रतीक्षा नहीं,  हमें अपने प्रयत्नों के परिणाम चाहिए।
 
मोदीजी के जन्मदिन को कोरा आयोजनात्मक नहीं बल्कि प्रयोजनात्मक बनाना है, क्योंकि  यह अवसर एक प्रतीक है विकास का। यह अवसर संकल्प लेने का अवसर है। संकल्प को  सिद्धि बनाने का अवसर है। विकास की उपलब्धियों से हम ताकतवर बन सकते हैं, महान  नहीं। महान उस दिन बनेंगे जिस दिन किसी निर्दोष का खून इस धरती पर नहीं बहेगा।  जिस दिन कोई भूखा नहीं सोएगा, जिस दिन कोई अशिक्षित नहीं रहेगा, जिस दिन देश  भ्रष्टाचारमुक्त होगा। जिस दिन शासन और प्रशासन में बैठे लोग अपनी कीमत नहीं, मूल्यों  का प्रदर्शन करेंगे। यह आदर्श स्थिति जिस दिन हमारे राष्ट्रीय चरित्र में आएगी, उस दिन  महानता हमारे सामने होगी। फूलों से इत्र बनाया जा सकता है, पर इत्र से फूल नहीं उगाए  जाते। उसके लिए बीज को अपनी हस्ती मिटानी पड़ती है। 
 
आज भी जन्मदिन का जश्न मनाने से ज्यादा जरूरी है जश्न की पात्रता को हासिल करने  की। एक मोदी नहीं, हर सत्ता पर बैठा व्यक्ति अपने को शासक नहीं, सेवक माने। 

 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

आपने नहीं पढ़ी होगी रवि प्रदोष व्रत की यह पौराणिक कथा....