Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

17 अक्टूबर : मदर टेरेसा को इस दिन मिला था नोबेल शांति पुरस्कार

हमें फॉलो करें 17 अक्टूबर : मदर टेरेसा को इस दिन मिला था नोबेल शांति पुरस्कार
भारत और विश्व इतिहास में 17 अक्टूबर का अपना ही एक खास महत्व है, क्योंकि इसी दिन कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटी जो इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज होकर रह गईं, जिसमें एक महत्वपूर्ण घटना हैं मदर टेरेसा को आज ही के दिन शांति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था। 
 
मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं जिनके पास भारतीय नागरिकता थी। मेसिडोनिया की राजधानी स्कोप्जे शहर में 26 अगस्त 1910 को जन्मीं एग्नेस गोंझा बोयाजिजू ही 'मदर टेरेसा' बनीं। मात्र 18 वर्ष की उम्र में लोरेटो सिस्टर्स में दीक्षा लेकर वे सिस्टर टेरेसा बनीं थी। फिर वे भारत आकर ईसाई ननों की तरह अध्यापन से जुड़ गईं। कोलकाता के सेंट मैरीज हाईस्कूल में पढ़ाने के दौरान एक दिन कॉन्वेंट की दीवारों के बाहर फैली दरिद्रता देख वे विचलित हो गईं। वह पीड़ा उनसे बर्दाश्त नहीं हुई और कच्ची बस्तियों में जाकर सेवा कार्य करने लगीं। 
 
इस दौरान 1948 में उन्होंने वहां के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल खोला और तत्पश्चात 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' की स्थापना की। 'सच्ची लगन और मेहनत से किया गया काम कभी निष्फल नहीं होता', यह कहावत मदर टेरेसा के साथ सच साबित हुई। काम इतना बढ़ता गया कि सन् 1996 तक उनकी संस्था ने करीब 125 देशों में 755 निराश्रित गृह खोले जिससे करीबन 5 लाख लोगों की भूख मिटने लगी। हमेशा नीली किनारी की सफेद धोती पहनने वाली मदर टेरेसा का कहना था कि दुखी मानवता की सेवा ही जीवन का व्रत होना चाहिए। हर कोई किसी न किसी रूप में भगवान है या फिर प्रेम का सबसे महान रूप है सेवा। यह उनके द्वारा कहे गए सिर्फ अनमोल वचन नहीं हैं बल्कि यह उस महान आत्मा के विचार हैं जिसने कुष्ठ और तपेदिक जैसे रोगियों की सेवा कर संपूर्ण विश्व में शांति और मानवता का संदेश दिया।
 
वे स्वयं लाखों लोगों के इलाज में जुट गईं और शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाजी गईं। मदर टेरेसा आज हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन उनके विचारों को मिशनरीज ऑफ चैरिटी की सिस्टर्स आज भी जीवित रखे हुए हैं। उन्हीं में से कुछ सिस्टर्स आज भी सेवा कार्य में जुटी हुई हैं। मिशनरीज ऑफ चैरिटी में रह रहीं सिस्टर्स तन-मन-धन से अनाथों की सेवा में लगी हुई हैं। सभी धर्मों के लोग यहांआते हैं और एकसाथ रहते हैं। उनका कार्य बस उनकी सेवा करना है। अगर किसी की मृत्यु होती है, तो उसका अंतिम संस्कार भी उसी के धर्मानुसार ही किया जाता है। कहा जाता है कि मदर टेरेसा द्वारा स्थापित मिशनरीज ऑफ चैरिटी की शाखाएं असहाय और अनाथों का घर है। उन्होंने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोलें, जिनमें वे असाध्य बीमारी से पीड़ित रोगियों व गरीबों की स्वयं सेवा करती थीं। 
 
संपूर्ण विश्व में शांति और मानवता का संदेश देने वाली एक महान हस्ती मदर टेरेसा को विश्वभर में फैले उनके मिशनरी के कार्यों की वजह से व गरीबों और असहायों की सहायता करने के लिए 17 अक्टूबर 1979 को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था। उन्हें सन 1962 में भारत सरकार द्वारा 'पद्मश्री' और साल 1980 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से अलंकृत किया गया। पोप जॉन पाल द्वितीय ने 19 अक्टूबर 2003 को रोम में मदर टेरेसा को 'धन्य' घोषित किया था। ऐसी मानवता की महान मिसाल मदर टेरेसा का निधन 5 सितंबर 1997 को हुआ था।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

देश की राजनीति का य‍ह रूप चिंतित करता है