'जय जवान जय किसान' के नारे का महत्व आज भी उतना ही है जितना 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय हुआ करता था। यह नारा स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा दिया गया था। जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद 1962 में उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया। इस बीच शास्त्री जी ने गरीबों की मदद की और भारत स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण आंदलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही। चलिए जानते हैं इस नारे को कब और क्यों इस्तेमाल किया गया था...
देश में अकाल की नौबत आ गुई
1962 में भारत और चीन के युद्ध के बाद देश की आर्थिक व्यवस्था बहुत कमज़ोर हो चुकी थी। लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री बनने के समय देश की बहुत खराब स्थिति थी और खाने का संकट था। साथ ही साल 1965 में बारिश कम होने के कारण देश में अकाल की नौबत आ गुई। इसी दुआरण 5 अगस्त 1965 को 30 हज़ार पाकिस्तानी सैनिक सएलओसी पार करके कश्मीर में घुस आए तब भारतीय सेना ने उन्हें जोरदार जवाब दिया। 6 सितंबर 1965 को भारतीय सेना ने लाहौर पर कब्ज़ा कर लिया और पाकिस्तान के 90 टैंक ध्वस्त कर दिए।
अमेरिका की पीएल-480 स्कीम के तहत हासिल लाल गेहूं खाने को बाध्य
आपको बता दें कि इस समय भारतीय अमेरिका की पीएल-480 स्कीम के तहत हासिल लाल गेहूं खाने को बाध्य थे। अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने शास्त्री जी दी कि अगर युद्ध नहीं रोका गया तो गेहूं का निर्यात बंद कर दिया जाएगा। इस बात पर शास्त्री जी ने मुंह तोड़ जवाब देते हुए कहा कि 'बंद कर दीजिए गेहूं देना।' इतना ही नहीं, उन्होंने अमेरिका से गेहूं लेने से भी साफ इनकार कर दिया था।
जनता से सप्ताह में एक दिन व्रत रखने की अपील
1965 में दशहरे के दिन दिल्ली में रामलीला मैदान पर आयोजन हुआ जिसमें शास्त्री जी ने पहली बार 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया था। साथ ही शास्त्री जी ने जनता से सप्ताह में एक दिन व्रत रखने की अपील की और यही नहीं उन्होंने खुद भी व्रत रखना शुरू कर दिया था। इसके बाद 1967 में 520 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को 283 सीटें मिली थी और कांग्रेस की सरकार बनी।