छत्रपपति शिवाजी महाराज की जयंती (Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti): भारत के वीर सपूतों में से एक श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को हुआ था और 3 अप्रैल 1680 को उन्होंने देह छोड़ दी थी। वे भारतीय गणराज्य के महानायक थे। उनका पूरा नाम छत्रपति शिवाजी भोंसले था।
जन्म : 19 फरवरी 1630
मृत्यु : 3 अप्रैल 1680
छत्रपपति शिवाजी महाराज की जयंती (Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti)
1. बचपन में खेल खेल मे सीखा किला जीतना : बचपन में शिवाजी अपनी आयु के बालक इकट्ठे कर उनके नेता बनकर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे। युवावस्था में आते ही उनका खेल वास्तविक कर्म शत्रु बनकर शत्रुओं पर आक्रमण कर उनके किले आदि भी जीतने लगे। जैसे ही शिवाजी ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर अपना अधिकार जमाया, वैसे ही उनके नाम और कर्म की सारे दक्षिण में धूम मच गई, यह खबर आग की तरह आगरा और दिल्ली तक जा पहुंची। अत्याचारी किस्म के तुर्क, यवन और उनके सहायक सभी शासक उनका नाम सुनकर ही मारे डर के चिंतित होने लगे थे।
2. अफजल खां आया था मारने : शिवाजी के बढ़ते प्रताप से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह जब शिवाजी को बंदी न बना सके तो उन्होंने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार किया। पता चलने पर शिवाजी आग-बबूला हो गए। उन्होंने नीति और साहस का सहारा लेकर छापामारी कर जल्द ही अपने पिता को इस कैद से आजाद कराया। तब बीजापुर के शासक ने शिवाजी को जीवित अथवा मुर्दा पकड़ लाने का आदेश देकर अपने मक्कार सेनापति अफजल खां को भेजा। उसने भाईचारे व सुलह का झूठा नाटक रचकर शिवाजी को अपनी बांहों के घेरे में लेकर मारना चाहा, पर समझदार शिवाजी के हाथ में छिपे बघनखे का शिकार होकर वह स्वयं मारा गया। इससे उसकी सेनाएं अपने सेनापति को मरा पाकर वहां से दुम दबाकर भाग गईं।
3. औरंगजेब से सामना : शिवाजी महाराज की बढ़ती हुई शक्ति से चिंतित होकर मुगल बादशाह औरंगजेब ने दक्षिण में नियुक्त अपने सूबेदार को उन पर चढ़ाई करने का आदेश दिया, लेकिन सूबेदार को मुंह की खानी पड़ी। शिवाजी से लड़ाई के दौरान उसने अपना पुत्र खो दिया और खुद उसकी अंगुलियां कट गईं। उसे मैदान छोड़कर भागना पड़ा। इस घटना के बाद औरंगजेब ने अपने सबसे प्रभावशाली सेनापति मिर्जा राजा जयसिंह के नेतृत्व में लगभग 1,00,000 सैनिकों की फौज भेजी। शिवाजी को कुचलने के लिए राजा जयसिंह ने बीजापुर के सुल्तान से संधि कर पुरंदर के किले को अधिकार में करने की अपने योजना के प्रथम चरण में 24 अप्रैल 1665 ई. को 'व्रजगढ़' के किले पर अधिकार कर लिया। पुरंदर के किले की रक्षा करते हुए शिवाजी का अत्यंत वीर सेनानायक 'मुरारजी बाजी' मारा गया। पुरंदर के किले को बचा पाने में अपने को असमर्थ जानकर शिवाजी ने महाराजा जयसिंह से संधि की पेशकश की। दोनों नेता संधि की शर्तों पर सहमत हो गए और 22 जून 1665 ई. को 'पुरंदर की संधि' संपन्न हुई।
4. गुरिल्ला युद्ध के आविष्कारक : कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी ने ही भारत में पहली बार गुरिल्ला युद्ध का आरंभ किया था। उनकी इस युद्ध नीति से प्रेरित होकर ही वियतनामियों ने अमेरिका से जंग जीत ली थी। इस युद्ध का उल्लेख उस काल में रचित 'शिव सूत्र' में मिलता है। गुरिल्ला युद्ध एक प्रकार का छापामार युद्ध है। मोटे तौर पर छापामार युद्ध अर्द्धसैनिकों की टुकड़ियों अथवा अनियमित सैनिकों द्वारा शत्रु सेना के पीछे या पार्श्व में आक्रमण करके लड़े जाते हैं।
5. कैद से ऐसे मुक्त हुई शिवाजी : अपनी सुरक्षा का पूर्ण आश्वासन प्राप्त कर छत्रपति शिवाजी आगरा के दरबार में औरंगजेब से मिलने के लिए तैयार हो गए। वह 9 मई, 1666 ई को अपने पुत्र शम्भाजी एवं 4000 मराठा सैनिकों के साथ मुगल दरबार में उपस्थित हुए, परन्तु औरंगजेब द्वारा उचित सम्मान न प्राप्त करने पर शिवाजी ने भरे हुए दरबार में औरंगजेब को 'विश्वासघाती' कहा, जिसके परिणमस्वरूप औरंगजेब ने शिवाजी एवं उनके पुत्र को 'जयपुर भवन' में कैद कर दिया। वहां से शिवाजी 13 अगस्त, 1666 ई को फलों की टोकरी में छिपकर फरार हो गए और 22 सितम्बर, 1666 ई. को रायगढ़ पहुंचे।
शिवाजी के राज्य की सीमा : शिवाजी की पूर्वी सीमा उत्तर में बागलना को छूती थी और फिर दक्षिण की ओर नासिक एवं पूना जिलों के बीच से होती हुई एक अनिश्चित सीमा रेखा के साथ समस्त सतारा और कोल्हापुर के जिले के अधिकांश भाग को अपने में समेट लेती थी। पश्चिमी कर्नाटक के क्षेत्र बाद में सम्मिलित हुए। स्वराज का यह क्षेत्र तीन मुख्य भागों में विभाजित था:-
1.पूना से लेकर सल्हर तक का क्षेत्र कोंकण का क्षेत्र, जिसमें उत्तरी कोंकण भी सम्मिलित था, पेशवा मोरोपंत पिंगले के नियंत्रण में था।
2. उत्तरी कनारा तक दक्षिणी कोंकण का क्षेत्र अन्नाजी दत्तों के अधीन था।
3.दक्षिणी देश के जिले, जिनमें सतारा से लेकर धारवाड़ और कोफाल का क्षेत्र था, दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र के अंतर्गत आते थे और दत्ताजी पंत के नियंत्रण में थे। इन तीन सूबों को पुनः परगनों और तालुकों में विभाजित किया गया था। परगनों के अंतर्गत तरफ और मौजे आते थे।
घरेलु झगड़ों और अपने मंत्रियों के आपसी वैमनस्य के बीच साम्राज्य की शत्रुओं से रक्षा की चिंता ने शीघ्र ही शिवाजी को मृत्यु के कगार पर पहुंचा दिया। शिवाजी की 1680 में कुछ समय बीमार रहने के बाद अपनी राजधानी पहाड़ी दुर्ग राजगढ़ में 3 अप्रैल को मृत्यु हो गई। इसके बाद उनके पुत्र संभाजी ने राज्य संभाल लिया।