अथर्व पंवार
स्वतंत्रता आन्दोलन और आधुनिक भारत के इतिहास में लाल-बाल-पाल की तिकड़ी प्रख्यात है। भारत में पुनः क्रांति की ज्योत जलाने का श्रेय इसी तिकड़ी को जाता है। इसी में एक नाम था बिपिन चंद्र पाल। वह एक कर्मठ और निडर व्यक्तित्व थे। वह एक पत्रकार, लेखक, शिक्षक और अद्भुत वक्ता थे। उन्हें राष्ट्रवादी नेता के रूप में जाने जाते थे। वे गरम दल के नेता थे। 20 मई को उन्हें नमन करते हुए जानते हैं उनकी कुछ ख़ास बातें -
1.बिपिन चंद्र पाल समाज की कुंठित मानसिकता के खिलाफ थे। उन्होंने एक विधवा से विवाह किया था। इस कारण उन्हें काफी आलोचनाएं सहनी पड़ी और अपने परिवार का भी त्याग करना पड़ा।
2 जब भारत को एक और क्रांति की आवश्यकता थी तब उन्होंने लाला लाजपतराय और बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर उग्र रूप से आंदोलन का समर्थन किया। इसके लिए उन्होंने कई स्थानों पर महात्मा गांधी की भी आलोचना की जिसमें 1921 का कांग्रेस अधिवेशन भी शामिल है।
3.यह उन क्रांतिकारियों में शामिल थे जिन्होंने अंग्रेजों को उन्ही की धरती से ललकारा था। वे शिक्षा लेने इंग्लैंड गए थे और भारतीय क्रांतिकारियों के ठिकाना माने जाने वाले 'इंडियन हाउस' से जुड़ गए थे।
4.अपनी बात अंग्रेजों तक पहुंचाने के लिए बिपिन चंद्र पल ने ऐसे तरीके खोजे थे जो एकदम नए थे। इनमें औद्योगिक और व्यावसायिक संस्थानों में हड़ताल, मेनचेस्टर मिल में बने कपड़ों का बहिष्कार, ब्रिटेन में निर्मित उत्पादों का बहिष्कार, स्वदेशी का प्रयोग और इत्यादि उग्र आंदोलन के तरीके शामिल थे।
5.वे एक कर्मठ पत्रकार थे। अपने जीवनकाल में उन्होंने इस क्षेत्र में निरंतर कार्य किया। उन्होंने 1880 में बंगाली साप्ताहिक 'परिदर्शक' , 1900 में इंग्लैंड से 'स्वराज्य' नाम से मासिक,1905 में कोलकाता आकर 'न्यू इंडिया' साप्ताहिक के साथ क्रांतिकारी पत्रिका 'वन्दे मातरम' भी आरम्भ की थी और 'हिन्दू रिव्यू पत्र' भी निकाला था। इसी के साथ उन्होंने ट्रिब्यून, इंडिपेंडेंट, द डेमोक्रैट और अनेक पत्र-पत्रिकाओं में भी कार्य किया।
6.1905 में जब बंगाल का विभाजन हुआ था, तब इन्होने बंग भंग आंदोलन में तीव्रता से अंग्रेजों का विरोध किया,उन्होंने अंग्रेजी सामान के बहिष्कार के साथ ही कई लेख भी लिखे। उन्हें इस कारण राजद्रोह के प्रकरण में जेल में डाल दिया गया था। उस समय बंगाल की युवा पीढ़ी को क्रांति और स्वाधीनता का विचार बिपिन चंद्र पाल के माध्यम से ही मिला था।
7.वे एक ऐसे समाज की कल्पना करते थे जो जाति, समाज, संप्रदाय, ऊंच-नीच से विहीन हो और प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार और सुविधाएं प्राप्त हो सके। वे कहते थे "दासता मानवीय आत्मा के विरुद्ध है और ईश्वर ने सभी प्राणियों को स्वतन्त्र बनाया है।"