सत्ता से बार-बार सवाल करिए, उसके भोंपू मत बनिए
स्टेट प्रेस क्लब इंदौर के कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर
Senior Journalist Sankarshan Thakur: वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने कहा कि एक अच्छे पत्रकार को सत्ता से बार-बार सवाल करना चाहिए। उस पर नजर रखनी चाहिए। कभी भी पत्रकार को सत्ता का भोंपू नहीं बनना चाहिए। दुर्भाग्य से आज के दौर में सवाल पूछना बंद हो गया है।
स्टेट प्रेस इंदौर के 'खबरों के खबरची' कार्यक्रम में पत्रकारों से मुखातिब संकर्षण ठाकुर ने कहा कि पत्रकारिता में बदलाव अच्छी बात है, लेकिन ये बदलाव सकारात्मक होने चाहिए। आज के समय में जिस तरह की पत्रकारिता हो रही है, उससे हम 'क्लासिकल जर्नलिज्म' से बहुत दूर हो गए हैं। नेताओं की अनर्गल बातों को छापना पत्रकारिता नहीं है।
एक उदाहरण के जरिए अपनी बात समझाते हुए ठाकुर कहते हैं कि किसी नेता या मंत्री ने कोई दीवार बनवाई है तो वह उसे दिखाने के लिए आपको बुलाता है। उसका काम आपको दीवार दिखाना है, लेकिन आपको सबसे पहले उस दीवार पर लात मारनी चाहिए ताकि पता चल सके वह दीवार कितनी मजबूत है। उसमें कोई घपला-घोटाला तो नहीं है। यह सब जांचना पत्रकार का काम है।
पत्रकारिता टीम गेम : ठाकुर कहते हैं कि अच्छी पत्रकारिता किसी अकेले व्यक्ति का काम नहीं है। यह टीम वर्क है। कोई खबर तैयार करता है, कोई डिजाइन करता है तो हैडिंग बनाने का काम कोई और करता है। हमें आधी-अधूरी स्टोरी नहीं छापनी चाहिए। इससे अच्छा है कि उसे छापें ही नहीं। फैक्ट चैक करना भी पत्रकार का ही दायित्व है। सच लिखें और किसी भी कार्रवाई से डरें नहीं। हालांकि गलत भी न लिखें, जिससे आपके खिलाफ कोई कार्रवाई हो।
ठाकुर कहते हैं कि जर्नलिज्म एक प्रोसेस से आती है। जर्नलिस्ट का काम फैक्ट चैकिंग, कॉन्टेस्टिंग, हिस्ट्री आदि पर काम करना है। एक पत्रकार में पढ़ने की प्रवृत्ति होनी चाहिए। उसे ज्यादा से ज्यादा पढ़ना चाहिए। पत्रकारिता बहुत ही जिम्मेदारीपूर्ण काम है।
लोगों की कहानियां लिखें : बड़े शहरों की पत्रकारिता पर सवाल उठाते हुए ठाकुर कहते हैं कि दिल्ली में पत्रकारिता नहीं चाटुकारिता हो रही है। पत्रकारिता करनी है तो बड़े शहरों से बाहर निकलकर गांवों की ओर जाना होगा। दरअसल, पत्रकार अपनी जिम्मेदारी भूल गया है। उसने गांव-गरीब की कहानियां लिखना छोड़ दिया है। नेताओं की कहानियां एक जैसी रहती हैं, उनकी कहानियां नहीं बदलतीं, लेकिन हर आदमी की अपनी एक कहानी होती है। हमें उनकी कहानियां लिखना चाहिए। कहानियां नेताओं से नहीं लोगों से ही मिलती हैं। इस तरह की कहानियां लिखने के लिए हमें सड़क पर उतरना होगा, गांवों में जाना होगा।
टीवी डिबेट पर कटाक्ष : टीवी चैनलों पर होने वाली बहस पर कटाक्ष करते हुए संकर्षण ठाकुर ने कहा वहां एक मौलवी और एक पंडित को बैठा दिया जाता है और पूरे समय तू-तू मैं-मैं चलती रहती है। यह सबकुछ मछली बाजार जैसा लगता है। दरअसल, इस तरह के कार्यक्रमों ने पत्रकारिता को अगवा कर लिया है।
सवाल-जवाब सत्र में कार्यक्रम में उपस्थित पत्रकारों के सवालों के जवाब देते हुए ठाकुर ने कहा कि यदि आप ईमानदार हैं, आपकी नीयत सही है तो आप कोई दबाव नहीं बना सकता। हालांकि अखबार और मीडिया संस्थानों को चलाने के लिए पैसे की जरूरत होती है, ऐसे में विज्ञापन आदि के लिए सरकार का दबाव संस्थान पर जरूर होता है। उन्होंने कहा कि एक पत्रकार को सत्ता का मोह नहीं होना चाहिए। यदि किसी पत्रकार को सत्ता का मोह है तो उसे पत्रकारिता छोड़कर राजनीति ही करनी चाहिए।
कार्यक्रम के प्रारंभ में मुद्रा ग्रुप के विद्यार्थियों ने पल्लवी शर्मा के मार्गदर्शन में आकर्षक नृत्य के माध्यम से गणेण वंदना एवं सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। अतिथि स्वागत स्टेट प्रेस क्लब अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल एवं वरिष्ठ पत्रकार संजीव आचार्य ने किया।