Sant Ramanujacharya: रामानुजाचार्य जयंती 26 अप्रैल बुधवार को, रामानुजाचार्य की जन्म कथा और उपदेश

Webdunia
Sri Ramanujacharya  
 
भारत वह पवित्र भूमि है, जहां कई संत-महात्माओं ने जन्म लिया है। उन्हीं में से एक श्री रामानुजाचार्य, जिनकी पूजा पूरे देश में की जाती है। इस वर्ष 26 अप्रैल 2023, दिन बुधवार को श्री रामानुजाचार्य की जयंती (Ramanujacharya Jayanti 2023) मनाई जा रही है। भारत के दक्षिणी, उत्तरी हिस्सों में उनके भक्त यह दिन विशेष उत्सव के रूप में मनाते हैं। 
 
श्री रामानुजाचार्य का जन्म 1017 ई. में दक्षिण भारत के तिरुकुदूर क्षेत्र में हुआ था। बचपन में उन्होंने कांची में यादव प्रकाश गुरु से वेदों की शिक्षा ली। रामानुजाचार्य आलवंदार यामुनाचार्य के प्रधान शिष्य थे। गुरु की इच्छानुसार रामानुज ने उनसे तीन काम करने का संकल्प लिया था- ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम और दिव्य प्रबंधनम की टीका लिखना। उन्होंने गृहस्थ आश्रम त्यागकर श्रीरंगम के यदिराज संन्यासी से संन्यास की दीक्षा ली।
 
मैसूर के श्रीरंगम से चलकर रामानुज शालग्राम नामक स्थान पर रहने लगे। रामानुज ने उस क्षेत्र में 12 वर्ष तक वैष्णव धर्म का प्रचार किया। फिर उन्होंने वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए पूरे देश का भ्रमण किया। वैष्णव आचार्यों में प्रमुख रामानुजाचार्य की शिष्य परंपरा में ही रामानंद हुए थे जिनके शिष्य कबीर और सूरदास थे। रामानुज ने वेदांत दर्शन पर आधारित अपना नया दर्शन विशिष्ट द्वैत वेदांत गढ़ा था।
 
रामानुजाचार्य ने वेदांत के अलावा सातवीं-दसवीं शताब्दी के रहस्यवादी एवं भक्तिमार्गी अलवार संतों से भक्ति के दर्शन को तथा दक्षिण के पंचरात्र परंपरा को अपने विचार का आधार बनाया। रामनुजाचार्य के दर्शन में सत्ता या परमसत् के संबंध में तीन स्तर माने गए हैं- ब्रह्म अर्थात ईश्वर, चित् अर्थात आत्म, तथा अचित अर्थात प्रकृति। वस्तुतः ये चित् अर्थात् आत्म तत्व तथा अचित् अर्थात् प्रकृति तत्त्व ब्रह्म या ईश्वर से पृथक नहीं है बल्कि ये विशिष्ट रूप से ब्रह्म का ही स्वरूप है एवं ब्रह्म या ईश्वर पर ही आधारित हैं यही रामनुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत का सिद्धांत है।
 
जैसे शरीर एवं आत्मा पृथक नहीं हैं तथा आत्म के उद्देश्य की पूर्ति के लिए शरीर कार्य करता है उसी प्रकार ब्रह्म या ईश्वर से पृथक चित् एवं अचित् तत्त्व का कोई अस्तित्व नहीं हैं वे ब्रह्म या ईश्वर का शरीर हैं तथा ब्रह्म या ईश्वर उनकी आत्मा सदृश्य हैं। रामनुजाचार्य के अनुसार भक्ति का अर्थ पूजा-पाठ या कीर्तन-भजन नहीं बल्कि ध्यान करना या ईश्वर की प्रार्थना करना है। सामाजिक परिप्रेक्ष्य से रामानुजाचार्य ने भक्ति को जाति एवं वर्ग से पृथक तथा सभी के लिए संभव माना है। रामनुजाचार्य के ब्रह्मसूत्र पर भाष्य 'श्रीभाष्य' एवं 'वेदार्थ संग्रह' मूल ग्रंथ है। 
 
श्री रामानुजाचार्य जयंती पर पूरे देश के मंदिरो को सुंदर तरीके सजाया जाता है तथा भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक उत्सव भी आयोजित किए जाते हैं। इस दिन उपनिषदों के अभिलेख को सुनना शुभ माना जाता है तथा उनकी मूर्ति पर पुष्प अर्पित करके सुखपूर्ण जीवन की प्रार्थनाएं करते हैं। इस शुभ अवसर पर श्री रामानुजाचार्य की मूर्ति को पारंपरिक पवित्र स्नान कराया जाता है। इस दिन श्री रामानुजाचार्य की शिक्षाओं को ध्यान में रख विशेष प्रार्थनाएं और संगोष्ठियों के सत्र आयोजित किए जाते हैं। 
 
श्री रामानुजाचार्य 1137 ई. में ब्रह्मलीन हो गए थे।
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। वेबदुनिया इसकी पुष्टि नहीं करता है। इनसे संबंधित किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

ALSO READ: आदि शंकराचार्य किसकी पूजा करते थे?

ALSO READ: आदि शंकराचार्य कितनी आयु तक जीवित रहे?

Related News

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

पढ़ाई में सफलता के दरवाजे खोल देगा ये रत्न, पहनने से पहले जानें ये जरूरी नियम

Yearly Horoscope 2025: नए वर्ष 2025 की सबसे शक्तिशाली राशि कौन सी है?

Astrology 2025: वर्ष 2025 में इन 4 राशियों का सितारा रहेगा बुलंदी पर, जानिए अचूक उपाय

बुध वृश्चिक में वक्री: 3 राशियों के बिगड़ जाएंगे आर्थिक हालात, नुकसान से बचकर रहें

ज्योतिष की नजर में क्यों है 2025 सबसे खतरनाक वर्ष?

सभी देखें

धर्म संसार

24 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

24 नवंबर 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

Budh vakri 2024: बुध वृश्चिक में वक्री, 3 राशियों को रहना होगा सतर्क

Makar Rashi Varshik rashifal 2025 in hindi: मकर राशि 2025 राशिफल: कैसा रहेगा नया साल, जानिए भविष्‍यफल और अचूक उपाय

lunar eclipse 2025: वर्ष 2025 में कब लगेगा चंद्र ग्रहण, जानिए कहां नजर आएगा

अगला लेख
More