यदा-कदा देश में जहां विलग-विलग सम्प्रदायों के मध्य छोटी-छोटी बातों पर साम्प्रदायिक तनाव होते रहते हैं वहीं कुछ स्थान ऐसे भी हैं जहां हमें साम्प्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल देखने को मिलती हैं। ऐसा ही एक स्थान है सन्त श्री रामजी बाबा समाधि स्थल, जो देश के ह्रदय स्थल मध्यप्रदेश के नर्मदापुरम् (होशंगाबाद) में स्थित है। यहां सन्त श्री रामजी बाबा ने जीवित समाधि ली थी। सन्त श्री रामजी बाबा का पूरा नाम स्वामी रामदास था।
आपका अवतरण ग्वालियर रियासत के मौजा रिखी घूघरी में सोलहवीं शताब्दी में सम्वत् 1601 के आसपास हुआ था। स्वामी रामदास के बाल्यकाल से उनके संतत्व की झलक परिलक्षित होने लगी थी। आपने आज से लभगभ 400 वर्ष पूर्व नर्मदापुरम् से लगभग 7 किमी. दूर नर्मदा व तवा संगम स्थल बान्द्राभान के समीप घानाबड़ को अपनी तपस्थली बनाया था। स्वामी रामदास घानाबड़ में निवास करते हुए प्रभुभक्ति एवं तपश्चर्या किया करते थे।
स्वामी जी नर्मदा तट पर गौ चारण के लिए जाते थे और साथ ही साथ वहीं भजन व ध्यान साधना भी किया करते थे। एक दिन स्वामी जी को चमत्कारिक रूप से सिद्ध संत श्री मृगन्नाथ जी के दर्शन हुए। सन्त श्री मृगन्नाथ जी ने स्वामी रामदास जी को आशीर्वाद देते हुए कहा कि "तुम सामर्थ्यवान व ज्ञानी पुरूष हो तुम्हें एक दिन परमतत्व का साक्षात्कार होगा।"
सन्त श्री मृगन्नाथ द्वारा आशीर्वाद दिए जाने के कुछ समय पश्चात् स्वामी रामदास जी को समाधि में परमात्मा का साक्षात्कार हुआ और वे रात्रि के आठ पहर तक समाधिस्थ रहे। स्वामी रामदास जी को सिद्धावस्था प्राप्त होते ही उनकी ख्याति दूर-दूर तक फ़ैलने लगी। लोग उनके प्रति अगाध श्रद्धा रखते हुए उनके दर्शन हेतु आने लगे और उन्हें स्नेह व श्रद्धा से "रामजी बाबा" कहकर संबोधित करने लगे।
संत "रामजी बाबा" के पास आते ही भक्तों व अनुयायी की समस्याओं का समाधान होने लगता था। आज भी नर्मदापुरम् स्थित "रामजी बाबा" के समाधि स्थल पर प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु अपने संकटों से मुक्ति पाने एवं अपनी मनोभिलषाओं की पूर्ती हेतु प्रार्थना करने आते हैं। प्रतिवर्ष माघ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर रामजी बाबा की समाधि पर मेला लगता है जिसमें लाखों श्रद्धालु पहुंचते है और "रामजी बाबा" की समाधि स्थल के अखण्ड दिव्यज्योति का दर्शन करते हैं।
सन्त रामजी बाबा की सूफ़ी सन्त गौरीशाह बाबा से मित्रता:-
सन्त रामजी बाबा की सूफ़ी सन्त औलिया गौरीशाह बाबा से प्रगाढ़ मित्रता थी। दोनों सन्त एक-दूसरे के यहां आते-जाते थे। रामजी बाबा व सूफ़ी सन्त गौरीशाह की मित्रता देश में साम्प्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल के तौर पर देखी जाती है। जनश्रुति के अनुसार जब रामजी बाबा की समाधि का निर्माण हो रहा था तब समाधि का गुम्बद बार-बार ढ़ह जाता था। अथक प्रयासों के पश्चात् भी समाधि के गुम्बद का निर्माण नहीं हो पा रहा था, तब रामजी बाबा ने स्वयं तत्कालीन महन्त जी को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि मेरे मित्र गौरीशाह की मज़ार से एक पत्थर लाकर गुम्बद का निर्माण करो तभी मेरी समाधि का गुम्बद पूर्ण होगा।
महन्त जी ने रामजी बाबा के स्वप्नादेश से गौरीशाह बाबा की मज़ार का पत्थर लाकर समाधि के गुम्बद पर लगवाया तब समाधि के गुम्बद का कार्य पूर्ण हो सका। गौरीशाह बाबा की मज़ार का यह पत्थर आज भी साम्प्रदायिक समरसता को परिलक्षित करता रामजी बाबा की समाधि के गुम्बद पर लगा है। प्रतिवर्ष माघी पूर्णिमा पर रामजी बाबा के मेले का प्रारम्भ भी एक स्नेहिल परम्परा से होता है जो संत श्री रामजी बाबा और सूफ़ी संत औलिया गौरी शाह बाबा की मित्रता का स्मरण कराती है।
इस परम्परा के अनुसार माघ पूर्णिमा से एक दिन पूर्व संत रामजी बाबा के समाधि स्थल से एक चादर औलिया गौरीशाह बाबा की मज़ार पर चढ़ाई जाती है और सूफ़ी संत गौरीशाह बाबा की मज़ार से निशान (ध्वज) लाकर रामजी बाबा की समाधि पर लगाया जाता है। इसके उपरान्त ही मेले का विधिवत् शुभारम्भ होता है।
मेले में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं और समाधिस्थल पर तुलादान, भण्डारा, मुण्डन आदि कार्य सम्पन्न करते हैं। ऐसी मान्यता है कि सन्त रामजी बाबा की विभूति के सेवन, अखण्ड ज्योति के दर्शन और समाधि की परिक्रमा करने से कठिन से कठिन संकट से मुक्ति प्राप्त होकर मनोवांछित मनोकामना की पूर्ति होती है।
-ज्योतिर्विद् पं हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
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