Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

आज के शुभ मुहूर्त

(षष्ठी तिथि)
  • तिथि- मार्गशीर्ष कृष्ण षष्ठी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30, 12:20 से 3:30, 5:00 से 6:30 तक
  • व्रत/मुहूर्त-गुरुपुष्य योग (रात्रि 07.29 तक)
  • राहुकाल-दोप. 1:30 से 3:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

Mirabai Jayanti 2023 : कृष्ण उपासिका मीराबाई की जयंती शरद पूर्णिमा को

हमें फॉलो करें Mirabai Jayanti 2023 : कृष्ण उपासिका मीराबाई की जयंती शरद पूर्णिमा को
Mirabai Jayanti : धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक वर्ष आश्विन महीने की पूर्णिमा के दिन मीराबाई की जयंती मनाई जाती है। इसी दिन शरद पूर्णिमा और वाल्मीकि जयंती भी पड़ती है। मीराबाई के संबंध में कहा जाता है कि वे भगवान श्री कृष्ण की उपासिका थीं।

उनके बारे में यह भी कहते हैं कि मीराबाई अपने पिछले जन्म में कृष्ण की सखी थीं जो मोक्ष प्राप्त करने से चूक गई थीं। वर्ष 2023 में मीराबाई जयंती 28 अक्टूबर, दिन शनिवार को मनाई जा रही है। 
 
आइए जान‍ते हैं यहां मीराबाई के जीवन की खास बातें
 
• वैसे तो मीराबाई के जन्म समय का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता है, लेकिन कुछ मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि मीराबाई का जन्म 1448 के लगभग हुआ था। 
 
• मीराबाई का जन्म जोधपुर में हुआ था। मीराबाई बचपन से ही श्री कृष्ण भक्ति में डूबी हुई थी। वे राठौड़ रतन सिंह की इकलौती पुत्री थीं। 
 
• एक बार बचपन में मीराबाई के पड़ोस में बारात आई तो सभी सखी-सहेलियां छत पर खड़ी होकर बारात देखने लगी। जिज्ञासावश मीरा ने अपनी मां से पूछ लिया कि मेरा दुल्हा कौन है तो माता ने हंसते हुए श्री कृष्‍ण की मूर्ति की ओर इशारा करते हुए कहा कि ये है। तभी से मीराबाई के बालमन में यह बात बैठ गई और उन्होंने श्री कृष्ण को अपना पति मान लिया।
 
• विवाह की उम्र होने पर मीराबाई की इच्छा के विरुद्ध उनका विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज से कर दिया गया। विवाह के बाद भी मीराबाई नित्य कृष्‍ण भक्ति करती और मंदिरों में जाकर नृत्य भी करती थीं। यह बात उनके ससुराल वालों को पसंद नहीं थी।
 
• ऐसा कहा जाता है कि मीराबाई ने तुलसीदास जी को एक पत्र लिखा था कि उनके परिवार के सदस्य उन्हें कृष्ण की भक्ति नहीं करने देते हैं। तब गुरु तुलसीदास के कहने पर मीराबाई ने श्री कृष्ण भक्ति के भजन लिखने लगी।
 
• मीरा के इस आचरण से उसके ससुराल वाले बहुत नाराज थे। एक राजवंश की कुल-वधु साधु-संतों के साथ घूमे और मंदिरों में भजन-कीर्तन करे तथा नृत्य करे यह बात उन्हें अच्छी नहीं लगती थी। परिवार के लोग मीरा से छुटकारा पाना चाहते थे। मीरा को समाप्त करने के लिए मीरा के देवर राणा विक्रमाजीत ने विष का भरा प्याला मीरा को पीने के लिए भेजा। 
 
• मीरा से यह बताया गया कि इस प्याले में सुगंधित मधुर रस है। मीरा ने प्याले को उठाया और एक सांस में सारा विष पी गई, उसके चेहरे पर विष का तनिक भी प्रभाव न दिखाई दिया। वह विष मीरा के लिए अमृत हो गया। यह सूचना जब राणा को दी गई तो उन्हें बड़ी निराशा हुई।
 
• इसके बाद देवर राणा विक्रमाजीत ने एक नया उपाय सोचा। उन्होंने सपेरे से एक काला जहरीला सर्प मंगवाया। उस जहरीले नाग को राणा विक्रमाजीत ने अपनी दीवान महाजन वीजावर्गी द्वारा एक सजे हुए पिटारे में रखवाकर मीरा के पास भेजा। दीवान वीजावर्गी पिटारा लेकर मीरा के पास पहुंचा। पिटारा को मीरा के समक्ष रखते हुए उसने कहा- यह पिटारा भेंटस्वरूप राणा ने आपके पास भेजा है। मीरा सब कुछ समझ गई थीं। उन्होंने मुस्कुराते हुए उस पिटारे को खोला। उन्होंने क्या देखा कि पिटारे के भीतर एक सुगंधित तुलसी की माला रखी है। उन्होंने माला को उठाकर माथे से लगाया और चूमकर अपने गले में डाल लिया। राणा का यह दांव भी खाली गया। माला पहन कर मीरा गिरधर गोपाल के मंदिर में गईं और कीर्तन करने लगीं।
 
• चित्तौड़ के महाराजा संग्राम सिंह के पुत्र भोजराज की मृत्यु के पश्चात मीराबाई कृष्‍णभक्ति में पूरी तरह से लीन हो गई और एक दिन मीराभाई कृष्णभक्ति के लिए 1524 ईस्वी में वृंदावन आ गई थीं और वे वहीं पर कृष्ण भक्ति में लगी रही। 
 
• वृंदावन में 1539 तक 15 वर्ष रहने के पश्चात अपने आराध्य की खोज में द्वारिका चली गई थीं और वहीं अंत समय तक रही थीं। मान्यताओं के अनुसार, वर्ष 1547 में उनका निधन हो गया था।
 
• वृंदावन में ठा. शाहबिहारी मंदिर के निकट एक पतलीसी गली में राजस्थानी स्थापत्य में बने ठा. सालिगराम जी के मंदिर को मीराबाई का मंदिर माना जाता है। मीराबाई के निधन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जीवन भर कृष्ण भक्ति की और अंतिम समय में भगवान श्री कृष्ण भक्ति करते हुए उनकी मूर्ति में समा गई थीं।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

वाल्मीकि जयंती पर जानें उनसे जुड़ी रोचक बातें