हर साल वैशाख मास की पूर्णिमा तिथि को महर्षि भृगु की जंयती मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार यह जयंती 26 मई 2021 बुधवार को मनाई जाएगी। आओ जानते हैं संक्षिप्त में महर्षि भृगु का परिचय।
पिता : ब्रह्मा
पत्नी : ख्याति
भृगु के पुत्र : धाता और विधाता
पुत्री : लक्ष्मी (भार्गवी)
रचना : भृगु संहिता, ऋग्वेद के मंत्र रचयिता
1. महर्षि भृगु की पहली पत्नी का नाम ख्याति था, जो दक्ष प्रजापति की कन्या थी। दक्ष प्रजापति की दूसरी कन्या सती से भगवान शंकर ने विवाह किया था। ख्याति से भृगु को दो पुत्र दाता और विधाता मिले और एक बेटी लक्ष्मी का जन्म हुआ। लक्ष्मी का विवाह उन्होंने भगवान विष्णु से कर दिया था।
2. भृगु ऋषि के और भी पुत्र थे जैसे उशना, च्यवन आदि। ऋग्वेद में भृगुवंशी ऋषियों द्वारा रचित अनेक मंत्रों का वर्णन मिलता है जिसमें वेन, सोमाहुति, स्यूमरश्मि, भार्गव, आर्वि आदि का नाम आता है।
3. भृगु ने ही भृगु संहिता की रचना की। उसी काल में उनके भाई स्वायंभुव मनु ने मनु स्मृति की रचना की थी। 'भृगु स्मृति' (आधुनिक मनुस्मृति), 'भृगु संहिता' (ज्योतिष), 'भृगु संहिता' (शिल्प), 'भृगु सूत्र', 'भृगु उपनिषद', 'भृगु गीता' आदि।
4. दाशराज्ञ युद्ध के समय भृगु मौजूद थे। यह युद्ध श्रीराम और रावण युद्ध के पूर्व हुआ था।
5. धरती पर पहली बार महर्षि भृगु ने ही अग्नि का उत्पादन करना सिखाया था। उन्होंने ही बताया था कि किस तरह अग्नि प्रज्वलित किया जा सकता है और किस तरह हम अग्नि का उपयोग कर सकते हैं। इसीलिए उन्हें अग्नि से उत्पन्न ऋषि मान लिया गया। जबकि वे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने पृथ्वी पर अग्नि को प्रदीप्त किया था। ऋग्वेद में वर्णन है कि उन्होंने मातरिश्वन् से अग्नि ली और उसको पृथ्वी पर लाए। इसी कारण सर्वप्रथम भृगु कुल के लोगों ने ही अग्नि की आराधना करना शुरू किया था।
6. भृगु ने संजीवनी विद्या की भी खोज की थी। उन्होंने संजीवनी-बूटी खोजी थी अर्थात मृत प्राणी को जिन्दा करने का उन्होंने ही उपाय खोजा था। परम्परागत रूप से यह विद्या उनके पुत्र शुक्राचार्य (काव्या) को प्राप्त हुई।
7. देवी भागवत के चतुर्थ स्कंध विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, श्रीमद् भागवत में खंडों में बिखरे वर्ण के अनुसार महर्षि भृगु प्रचेता-ब्रह्मा के पुत्र हैं, इनका विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री ख्याति से हुआ था जिनसे इनके दो पुत्र काव्य शुक्र और त्वष्टा तथा एक पुत्री श्रीलक्ष्मी का जन्म हुआ। इनकी पुत्री श्रीलक्ष्मी का विवाह श्रीहरि विष्णु से हुआ। दैत्यों के साथ हो रहे देवासुर संग्राम में महर्षि भृगु की पत्नी ख्याति, जो योगशक्ति संपन्न तेजस्वी महिला थीं, दैत्यों की सेना के मृतक सैनिकों को जीवित कर देती थीं जिससे नाराज होकर श्रीहरि विष्णु ने शुक्राचार्य की माता व भृगुजी की पत्नी ख्याति का सिर अपने सुदर्शन चक्र से काट दिया। अपनी पत्नी की हत्या होने की जानकारी होने पर महर्षि भृगु भगवान विष्णु को शाप देते हैं कि तुम्हें स्त्री के पेट से बार-बार जन्म लेना पड़ेगा। उसके बाद महर्षि अपनी पत्नी ख्याति को अपने योगबल से जीवित कर गंगा तट पर आ जाते हैं, तमसा नदी की सृष्टि करते हैं।
8. महर्षि भृगु का आयुर्वेद से भी घनिष्ठ संबंध था। अथर्ववेद एवं आयुर्वेद संबंधी प्राचीन ग्रंथों में स्थल-स्थल पर इनको प्रामाणिक आचार्य की भांति उल्लेखित किया गया है। आयुर्वेद में प्राकृतिक चिकित्सा का भी महत्व है। भृगु ऋषि ने सूर्य की किरणों द्वारा रोगों के उपशमन की चर्चा की है। वर्षा रूपी जल सूर्य की किरणों से प्रेरित होकर आता है। वह शल्य के समान पीड़ा देने वाले रोगों को दूर करने में समर्थ है।