महर्षि दयानन्द सरस्वती के 5 विशेष कार्य जिनके कारण रखा जाता है उन्हें याद

WD Feature Desk
शनिवार, 22 फ़रवरी 2025 (19:13 IST)
Dayananda Saraswati Jyanati 2025: स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को हुआ था। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती तिथि के अनुसार वर्ष 2025 में 23 फरवरी दिन रविवार को मनाई जा रही है। उनका जन्म मूल नक्षत्र में होने के कारण उनका नाम 'मूलशंकर' रखा गया था। उन्हें संस्कृत भाषा में गहरा ज्ञान था, अत: वे संस्कृत को धारावाहिक रूप में बोलते थे। आओ जानते हैं उनके 5 खास कार्य।
 
1. आर्य समाज की स्थापना: दयानंद सरस्वती ने सन् 1875 में गिरगांव, मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की थी तथा धर्म सुधार हेतु एक मुखिया के रूप में कार्य करते हुए पाखंड खंडिनी पताका फहराकर कई उल्लेखनीय कार्य किए। यही दयानंद आगे चलकर महर्षि दयानंद बने और वैदिक धर्म की स्थापना हेतु 'आर्य समाज' के संस्थापक के रूप में विश्वविख्यात हुए। आर्य समाज की स्थापना के साथ ही भारत में डूब चुकी वैदिक परंपराओं को पुनर्स्थापित करके विश्व में हिन्दू धर्म की पहचान करवाई। वेदों का प्रचार करने के लिए उन्होंने पूरे देश का दौरा करके पंडित और विद्वानों को वेदों की महत्ता के बारे में समझाया था। आर्य समाज एक हिन्दू सुधार आंदोलन है। इस समाज का उद्देश्य वैदिक धर्म को पुन: स्थापित कर जातिबंधन को तोड़कर संपूर्ण हिन्दू समाज को एकसूत्र में बांधना है। 
 
2. सत्यार्थ प्रकाश: उन्होंने ईसाई और मुस्लिम धर्म ग्रंथों में लिखी बातों का खंडन किया। उन्होंने उक्त धर्मों में लिखी बातों के खंडन पर एक किताब लिखी जिसे सत्यार्थ प्रकाश कहते हैं। इस किताब को सबसे ज्यादा पढ़ा जाता है। उन्होंने दोनों धर्मग्रंथों पर काफी मंथन करने के बाद अकेले ही अपना संघर्ष आरंभ किया, जिसमें उन्हें अपमान, कलंक और अनेक कष्टों को झेलना पड़ा। लेकिन उनके ज्ञान का कोई जवाब नहीं था और वे जो कुछ कह रहे थे, उसका उत्तर किसी भी धर्मगुरुओं के पास नहीं था। स्वामी जी के विचारों का संकलन इनकी कृति ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में मिलता है, जिसकी रचना स्वामी जी ने हिन्दी में की थी।
 
3. वेदों का अनुवाद: दयानंद सरस्वती ने हिन्दी में ग्रंथ रचना तथा पहले के संस्कृत में लिखित ग्रंथों जैसे वेद, स्मृति आदि ग्रंथों का हिन्दी में अनुवाद करने का भी उल्लेखनीय कार्य किया। दयानंद जी ने वेदों को ईश्वरीय ज्ञान मानते हुए ‘पुनः वेदों की ओर चलो का नारा दिया।’
 
4. जातिप्रथा के खिलाफ आंदोलन: आर्य समाज के लोग जातिप्रथा, छुआछूत, अंधभक्ति, मूर्तिपूजा, बहुदेववाद, अवतारवाद, पशुबलि, श्राद्ध, जंत्र, तंत्र-मंत्र, झूठे कर्मकाण्ड आदि के सख्त खिलाफ है आर्य समाज। आर्य समाज के लोग पुराणों की धारणा को नहीं मानते हैं और एकेश्‍वरवाद में विश्वास करते हैं।
 
5. शुद्धि आंदोलन: स्वामी जी ने धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को पुन: हिन्दू बनने की प्रेरणा देकर शुद्धि आंदोलन चलाया। दयानंद सरस्वती द्वारा चलाए गए 'शुद्धि आन्दोलन' के अंतर्गत उन लोगों को पुनः हिन्दू धर्म में आने का मौका मिला जिन्होंने किसी कारणवश इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। आज भी यदि कोई ईसाई या मुस्लिम पुन: अपने पूर्वजों के धर्म में आना चाहता है तो उसके लिए आर्य समाज के दरवाजे खुले हैं जहां किसी भी प्रकार का जातिवाद, बहुदेववाद, मूर्तिपूजा आदि नहीं है। शायद इसीलिए एनी बेसेंट ने कहा था कि स्वामी दयानन्द ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि 'भारत भारतीयों के लिए हैं।'
 
दुनिया के लिए दार्शनिक और महान स्वतंत्रता सेनानी तथा समाज सुधारक रहे स्वामी दयानंद सरस्वती का निधन 30 अक्टूबर सन् 1883 में दीपावली के दिन संध्या के समय हुआ था।
 

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