हर वर्ष माघ माह में हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन, नासिक आदि जगहों पर पवित्र नदी में स्नान करने का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस बार माघ माह में हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन हो रहा है। ऐसे में पवित्र नदी में स्नान का महत्व कई गुना है। पूस एवं माघ माह की पूर्णिमा को नदी किनारे कल्पवास करने का विधान भी है। कल्पवास का अर्थ होता है संगम के तट पर निवास कर वेदाध्ययन, व्रत, संत्संग और ध्यान करना। कल्पवास पौष माह के 11वें दिन से माघ माह के 12वें दिन तक रहता है। कुछ लोग माघ पूर्णिमा तक कल्पवास करते हैं।
महाभारत के एक दृष्टांत में उल्लेख है कि माघ माह के दिनों में अनेक तीर्थों का समागम होता है। वहीं पद्मपुराण में बताया गया है कि अन्य मास में जप, तप और दान से भगवान विष्णु उतने प्रसन्न नहीं होते जितने कि माघ मास में नदी तथा तीर्थस्थलों पर स्नान करने से होते हैं। यही वजह है कि प्राचीन पुराणों में भगवान नारायण को पाने का सुगम मार्ग माघ मास के पुण्य स्नान को बताया गया है। माघ मास में खिचड़ी, घृत, नमक, हल्दी, गुड़, तिल का दान करने से महाफल प्राप्त होता है।
निर्णय सिंधु में कहा गया है कि माघ मास के दौरान मनुष्य को कम से कम एक बार पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। भले पूरे माह स्नान के योग न बन सकें लेकिन एक दिन के स्नान से श्रद्धालु स्वर्ग लोक का उत्तराधिकारी बन सकता है। पुराणों के अनुसार पौष मास की पूर्णिमा से माघ मास की पूर्णिमा तक माघ मास में पवित्र नदी नर्मदा, गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी सहित अन्य जीवनदायिनी नदियों में स्नान करने से मनुष्य को समस्त पापों से छुटकारा मिलता है और मोक्ष का मार्ग खुल जाता है।
मत्स्य पुराण के एक कथन के अनुसार माघ मास की पूर्णिमा में जो व्यक्ति ब्राह्मण को ब्रह्मावैवर्तपुराण का दान करता है, उसे ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है। सदियों से माघ माह की विशेषता को लेकर भारत वर्ष में नर्मदा, गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी सहित कई पवित्र नदियों के तट पर माघ मेला भी लगता हैं। माना जाता है कि माघ मास में पवित्र नदियों में स्नान करने से एक विशेष ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
वहीं पुराणों में वर्णित है कि इस माह में पूजन-अर्चन व स्नान करने से नारायण को प्राप्त किया जा सकता है तथा स्वर्ग की प्राप्ति का मार्ग भी खुलता है। जिस प्रकार माघ मास में तीर्थ स्नान का बहुत महत्व है, उसी प्रकार दान का भी विशेष महत्व है। इन माह में दान में तिल, गुड़ और कंबल या ऊनी वस्त्र दान देने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।