Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

देश में अघोषित आपातकाल है, नाममात्र का राष्ट्रपति संविधान नहीं बचाएगा : यशवंत सिन्हा

हमें फॉलो करें देश में अघोषित आपातकाल है, नाममात्र का राष्ट्रपति संविधान नहीं बचाएगा : यशवंत सिन्हा
, शुक्रवार, 8 जुलाई 2022 (23:17 IST)
गांधीनगर। राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी दलों के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने शुक्रवार को कहा कि संवैधानिक मूल्य (वैल्यू) और लोकतांत्रिक संस्थाएं देश में खतरे का सामना कर रही हैं तथा नाममात्र का (रबर स्टैम्प) राष्ट्रपति संविधान को बचाने की कभी कोशिश नहीं करेगा।

सिन्हा, 18 जुलाई को होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव से पहले गुजरात में कांग्रेस विधायकों का समर्थन मांगने के लिए यहां आए थे। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस चुनाव में उनके और भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के बीच मुकाबला सिर्फ इस बारे में नहीं है कि अगला राष्ट्रपति कौन बनेगा।

सिन्हा ने कहा, यह लड़ाई अब एक कहीं अधिक बड़ी लड़ाई में तब्दील हो गई है। यह इस बारे में है कि क्या वह व्यक्ति राष्ट्रपति बनने के बाद संविधान बचाने के लिए अपने अधिकारों का उपयोग करेगा/करेगी। और यह स्पष्ट है कि नाममात्र का राष्ट्रपति ऐसा करने की कभी कोशिश नहीं करेगा।

उन्होंने कहा, आज, संवैधानिक मूल्य और प्रेस सहित लोकतांत्रिक संस्थाएं खतरे में हैं। देश में वर्तमान में अघोषित आपातकाल है। लाल कृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी ने (1975 से 1977 के बीच) आपातकाल के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी तथा इसके लिए वे जेल भी गए थे। आज उनकी ही पार्टी (भाजपा) ने देश में आपातकाल थोप दिया है। यह विडंबना ही है।

उन्होंने भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा का समर्थन करने को लेकर हाल में दो लोगों की हत्या किए जाने की घटनाओं पर नहीं बोलने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी आलोचना की।

सिन्हा ने आरोप लगाया, दो हत्याएं हुईं। मेरे सहित हर किसी ने इसकी निंदा की। लेकिन ना तो प्रधानमंत्री और ना ही गृहमंत्री (अमित शाह) ने एक शब्द बोला। वे चुप हैं क्योंकि वे वोट पाने के लिए इस तरह के मुद्दों को ज्वलंत बनाए रखना चाहते हैं।

उन्होंने दावा किया कि एक आदिवासी (मुर्मू) के देश के शीर्ष संवैधानिक पद हासिल करने से भारत में जनजातीय समुदायों के जीवन में बदलाव नहीं आएगा।

उन्होंने कहा, यह मायने नहीं रखता है कि कौन किस जाति या धर्म से आता है। सिर्फ यह बात मायने रखती है कि कौन व्यक्ति किस विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है और यह लड़ाई विभिन्न विचारधाराओं के बीच है। हालांकि वह छह साल झारखंड की राज्यपाल रही थीं लेकिन इससे वहां आदिवासियों के जीवन में बदलाव नहीं आया।(भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

श्री श्री रविशंकर की शिंजो आबे को श्रद्धांजलि, साथ बिताए पलों को किया याद