मध्यकालिन भारत की शुरुआत सम्राट हर्षवर्धन (590-647) से होती है। हर्षवर्धन का दक्षिण भारत के सम्राट पुलकेशी द्वितीय (शासनकाल 609-642) से हुआ था। इसी काल में कश्मीर में बहुत ही शक्तिशाली सम्राट ललितादित्य (सन् 697 से सन् 738) का राज्य भी रहा था। इसी काल में सिंध के राजा दाहिर (663-712 ईस्वी) में रहा था। आओ जानते हैं महान सम्राट ललितादित्य के बारे में।
कश्मीर पर शासन की एक झलक : राजतरंगिणी में 1184 ईसा पूर्व के राजा गोनंद से लेकर राजा विजय सिम्हा (1129 ईसवी) तक के कश्मीर के प्राचीन राजवंशों और राजाओं का प्रमाणिक दस्तावेज है। ईसा पूर्व 3री शताब्दी में महान सम्राट अशोक ने कश्मीर में बौद्ध धर्म का प्रसार किया था। बाद में यहां कनिष्क का अधिकार रहा। कनिष्क के समय श्रीनगर के कुंडल वन विहार में प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुमित्र की अध्यक्षता में सर्वस्तिवाद परम्परा की चौथी बौद्ध महासंगीति का आयोजन किया था। 6ठी शताब्दी के आरंभ में कश्मीर पर हूणों का अधिकार हो गया। सन् 530 में कश्मीर घाटी एक स्वतंत्र राज्य रहा। इसके बाद इस पर उज्जैन साम्राज्य के राजाओं का अधिकार रहा। विक्रमादित्य राजवंश के पतन के बाद कश्मीर पर स्थानीय शासक राज करने लगे। वहां हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों का मिश्रित रूप विकसित हुआ।
कश्मीर में छठी शताब्दी में अपने तरह का शैव दर्शन विकसित हुआ। वसुगुप्त की सूक्तियों का संकलन 'स्पन्दकारिका' इसका पहला प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है। शैव राजाओं में सबसे पहला और प्रमुख नाम मिहिरकुल का है जो हूण वंश का था। हूण वंश के बाद गोनंद द्वितीय और कार्कोटा नाग वंश का शासन हुआ जिसके राजा चंद्रपीड़ और ललितादित्य मुक्तपीड को कश्मीर के सबसे महान राजाओं में शामिल किया जाता है। कार्कोट राजवंश की स्थापना दुर्लभवर्धन ने की थी। दुर्लभवर्धन गोनंद वंश के अंतिम राजा बालादित्य के राज्य में अधिकारी थे।
ललितादित्य मुक्तापीड :
1. कश्मीर के हिन्दू राजाओं में ललितादित्य मुक्तापीड (शासनकाल 724 ई से 770 ईस्वी के बीच) सबसे प्रसिद्ध राजा हुए। वे कार्कोट राजवंश के राजा था। कार्कोट राजवंश का शासनकाल 625 से 885 ईस्वी के बीच रहा।
2. ललितादित्य ने अरबों, तिब्बतियों, कम्बोजों एवं तुर्को को पराजित किया था। उनके साम्राज्य का विस्तार उन्होंने काराकोरम पर्वत श्रेणियों के पार तिब्बत के पठार से आगे चीन तक और पश्चिम में कैस्पियन सागर कर लिया था। उनका शासन उत्तर-पश्चिम में तुर्किस्तान और उत्तर-पूर्व में तिब्बत तक फैला था। यही कारण है कि उन्हें भारत का सिकंदर कहा जाता है।
3. ललितादित्य ने एक ओर जहां अरब के मुस्लिम आक्रमण को दबाया वहीं उन्होंने तिब्बत की सेना को भी पीछे धकेल दिया था। उन्होंने कश्मीर पर आक्रमण करने वाले अरब हमलावरों के खिलाफ चार युद्ध लड़े और चारों बार उन्हें खदेड़ दिया।
4. कहते हैं कि तुर्कों ने अपने दोनों हाथों को अपनी पीठ के पीछे बांधकर और सिर झुका कर ललितादित्य का स्वागत किया था। यह बात किताबों में कम ही बताई जाती है क्योंकि बाद में तुर्कों ने ही भारत पर आक्रमण करने भारत के बड़े भू भाग पर कब्जा कर लिया था।
5. भारत में उनके साम्राज्य का विस्तार पूर्व में बंगाल और उड़ीसा, दक्षिण में कोंकण तक फैला था। उन्होंने सम्राट हर्षवर्धन के उत्तराधिकारी कन्नौज के राजा यशोवर्मन को हराने के बाद उसके दरबारी संस्कृत कवियों भवभूति और वाक्पतिराज को ललितादित्य ने कश्मीर बुलाकर अपने दरबार में स्थान दिया था।
6. कहते हैं कि ललितादित्य ने जालंधर, लाहौर और अन्य छोटे प्रांतों को अपने अधीनस्थों को दे दिया था।
7. सूर्यवंशी सम्राट ललित आदित्य ने कई प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण भी करवाया था जिसमें सूर्य भगवान को समर्पित मार्तंड मंदिर प्रसिद्ध है। ललितादित्य ने कई बौद्ध विहारों की स्थापना भी की थी। जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के खेराबल गांव में मार्तंड सूर्य मंदिर के खंडहर आज भी मौजूद हैं।
8. ललितादित्य ने कई गांव, कस्बे और शहरों का निर्माण भी करवाया था। जैसे सुनिश्चितपुर, दर्जितपुर, फलपुरा, पर्णोत्सर्ग, ललितपुरा, हुशकापुरा आदि।
9. इस क्रम में अगला नाम 855 ईस्वी में सत्ता में आए उत्पल वंश के अवन्तिवर्मन का लिया जाता है जिनका शासन काल कश्मीर के सुख और समृद्धि का काल था। उसके 28 साल के शासन काल में मंदिरों आदि का निर्माण बड़े पैमाने पर हुआ।