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मुगल इमारतों में सिर्फ लाल किले पर ही क्यों फहराया जाता है तिरंगा? जानिए इतिहास

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WD Feature Desk

, मंगलवार, 5 अगस्त 2025 (16:35 IST)
independence day flag hoisting at red fort: जब भी 15 अगस्त को भारत की स्वतंत्रता का पर्व आता है, हमारे मन में सबसे पहले जो तस्वीर उभरती है, वह है दिल्ली के लाल किले की प्राचीर से फहराता हुआ हमारा गौरवशाली तिरंगा। प्रधानमंत्री द्वारा इस ऐतिहासिक इमारत से राष्ट्रध्वज फहराना और राष्ट्र को संबोधित करना एक परंपरा बन चुकी है। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि देश की राजधानी में इतनी सारी अन्य भव्य मुगल इमारतें होने के बावजूद, तिरंगा सिर्फ लाल किले पर ही क्यों फहराया जाता है? इसके पीछे एक गहरा ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक कारण है।

सत्ता के हस्तांतरण का ऐतिहासिक गवाह
15 अगस्त 1947, वह दिन था जब भारत को अंग्रेजों की 200 साल की गुलामी से आजादी मिली थी। उस दिन, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर, एक ऐतिहासिक समारोह में पहली बार तिरंगा फहराया था। यह केवल एक झंडा फहराने की घटना नहीं थी, बल्कि यह सत्ता के हस्तांतरण का एक प्रतीकात्मक कार्य था।
•   मुगल साम्राज्य का गढ़: लाल किला कई शताब्दियों तक मुगल साम्राज्य का केंद्र रहा, जो भारत पर शासन करने वाले सबसे प्रमुख शासकों में से एक थे। बाद में, जब भारत पर ब्रिटिश राज स्थापित हुआ, तो उन्होंने भी इस किले को अपनी सत्ता के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया।
•   ब्रिटिश हुकूमत का अंत: जब पंडित नेहरू ने लाल किले पर तिरंगा फहराया, तो यह सिर्फ एक झंडे का बदलना नहीं था। यह इस बात की घोषणा थी कि अब भारत पर न तो मुगलों का राज है और न ही अंग्रेजों का। अब भारत का शासन भारतीयों के हाथ में है। यह तिरंगा, जो भारतीय जनता की पहचान और स्वतंत्रता का प्रतीक था, एक ऐसी जगह पर फहराया गया, जो सदियों से विदेशी सत्ता का प्रतीक रही थी। यह अपने आप में एक शक्तिशाली संदेश था।

लाल किले का राष्ट्रीय महत्व
लाल किला सिर्फ एक पर्यटन स्थल नहीं है, बल्कि यह हमारे राष्ट्रीय गौरव, इतिहास और संघर्ष का प्रतीक है।
स्वतंत्रता संग्राम की गवाह: लाल किले ने स्वतंत्रता संग्राम के कई महत्वपूर्ण क्षणों को देखा है। 1857 के विद्रोह के बाद, बहादुर शाह ज़फ़र को यहीं से गिरफ्तार किया गया था।
भारतीयता का केंद्र: प्रधानमंत्री का लाल किले से भाषण देना देश की एकता और अखंडता को दर्शाता है। यह एक ऐसा मंच है जहां से पूरे देश को संबोधित किया जाता है, जिससे सभी नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना मजबूत होती है।

अन्य इमारतों पर क्यों नहीं?
हुमायूं का मकबरा या कुतुब मीनार जैसी अन्य मुगल इमारतें भले ही स्थापत्य कला की शानदार मिसालें हों, लेकिन उनका वह ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व नहीं है जो लाल किले का है। ये इमारतें मुख्य रूप से मकबरे या विजय स्तंभ हैं, न कि सत्ता के केंद्र। लाल किला एकमात्र ऐसी इमारत थी जो सदियों तक शासन का केंद्र रही। इसीलिए, उस पर तिरंगा फहराना, एक नई और स्वतंत्र सत्ता के आगमन की घोषणा थी।

इस प्रकार, लाल किले पर तिरंगा फहराना सिर्फ एक परंपरा नहीं है, बल्कि हमारे देश की आजादी, संघर्ष और एक नए युग की शुरुआत का एक जीवंत प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि कैसे हमने सदियों की गुलामी को पीछे छोड़ एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बनाई।
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