मेरे ख्याल से साहस का कोई काम केवल शारीरिक क्षमता से ही ताल्लुक नहीं रखता, बल्कि मानसिक शक्ति से किसी को उज्जवल भविष्य का रास्ता दिखाना, मानसिक संबल देना, बिना किसी नतीजे की चिंता किए भी साहस का काम हैं।
बात काफी पुरानी है। हमारे पड़ोस में एक परिवार रहता था जिनके तीन बच्चे थे। तीनों ही जहीन। बड़े बेटे और बेटी की शादी से वे फारिग हो चुके थे। छोटे बेटे ने दिल्ली के एक प्रसिद्ध कॉलेज में दाखिला लिया था। पढ़ाई में तेज होना एक अलग बात है पर वो एक अलग किस्म का लड़का था। एकदम जीनियस। सारी प्रतियोगी परीक्षा में उसका चुनाव बिना किसी कोचिंग के हुई थी। पर उसने दिल्ली के उस प्रसिद्ध कॉलेज का ही चुनाव किया।
आंटी-अंकल खुश थे और डरे हुए भी। डरे हुए इसलिए, कि बेटे को हॉस्टल में रहना पड़ता और उन्होनें हॉस्टल के बारे में अनेक भ्रम पाल रखे थे। बेटे के भविष्य का सवाल था, सो भैया दिल्ली चले गए। थोड़े दिन सब ठीक भी चला पर फिर भैया अचानक घर वापस आ गए। सवाल अनेक थे पर जवाब देने वाले भैया ने तो अपने को एक कमरे में कैद कर लिया।
परेशानी की हद तक जाने पर अंकल ने मेरे पापा से सारी बात कह दी। चुंकि भैया पापा को बहुत मानते थे, अतः पापा ने ही पहल करते रोज उनके यहां जाना शुरु कर दिया। शुरु में तो नतीजा सिफर रहा, पर फिर पापा के लिए भैया के कमरे का दरवाजा खुलना शुरु हुआ। जब पापा ने सहनशीलता और स्नेह दिखाते हुए बात की तो कई बातें खुली। भैया नशे के मकड़जाल में फंस गए थे, जिससे उनकी पढ़ाई तो चौपट हुई साथ ही स्वास्थ्य भी गिरता गया।
बात करते अचानक वो सो जाते या भरी बरसात में भीगते हमारे घर चले आते। पापा के प्रयासों ने असर दिखाया। डॉ. की सलाह ली गई और एक लंबा और खर्चीला इलाज शुरु हुआ। पापा बराबर उन्हें हिम्मत देते। पापा के ही प्रयासों से वो फिर जिदंगी में जीवन ढुंढने लगे।
पापा ने नशे के खिलाफ मुहिम भी शुरु की। इसके खतरों के बारे में लोगो को जागरुक किया। अंकल ने पूरा साथ दिया। इस अभियान में खतरे भी कई आए। पर पापा और अंकल डटे रहे। उनके प्रयासों ने रंग दिखाया और नशे के खिलाफ कई लोग उठ खड़े हुए। पापा का ही प्रयास था कि आज भैया एक अच्छे संस्थान में शिक्षक के पद पर कार्य कर रहे हैं। मेरे पापा ने जो अदम्य साहस दिखाया उसके बुते आज कोई एक नई जिदंगी नए सिरे से जी रहा है।