कारगिल विजय दिवस पर पढ़िए वीरता से भरी 5 कहांनियां... इन्हें पढ़कर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे और आप भी कारगिल में 21 साल पहले शहीद हुए जवानों की वीरता पर फख्र कर सकेंगे।
भारत और पाकिस्तान की तरफ से लगातार गोलियां बरस रही थीं। रॉकेट लॉन्च हो रहे थे। ऐसे में एक मोर्चे पर घिर गए घायल भारतीय जवानों को बचाने का जिम्मा एक महिला को सौंपा गया। इस जांबाज महिला अधिकारी का नाम है फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना।
यह वो वक्त था जब भारतीय सेना में महिला अधिकारी को उतना बोलबाला नहीं था। उस समय महिला पायलट की पहली बैच की 25 पयलट में गुंजन सक्सेना भी शामिल थीं।
गुंजन ने कारगिल युद्ध में 18,000 फुट की उंचाई पर ‘चीता’ हेलिकॉप्टर उड़ाया और भारतीय सैनिकों की मदद कर हमेशा के लिए अपना नाम भारतीय शौर्य की किताब में दर्ज करवा लिया है। पढ़िए इस वीर बाला की कहानी...
जम्मू कश्मीर के द्रास सेक्टर में तोलोलिंग की पहाड़ी पर मई 1999 को पाक के हजारों सैनिकों ने घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया था। तोलोगिंग को मुक्त करवाने में भारतीय सेना की 3 यूनिट पूरी तरह से असफल हो चुकी थी। इसके बाद राजपूत रायफल को तोलोलिंग को मुक्त करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई।
टुकड़ी ने पाकिस्तानी घुसपैठियों पर हमला बोल दिया। दिगेंद्र घुसपैठियों में घुस गए और कुल 48 घुसपैठियों को ढेर कर दिया। लेकिन इस दौरान दिगेंद्र को सीने और शरीर से दूसरे हिस्सों में दुश्मन की 5 गोलियां धंस गई। लेकिन दिगेंद्र सिंह फिर भी नहीं रुके। वे पाकिस्तानी दुश्मनों के बीच घुस गए। पढ़िए दिगेंद्र सिंह की वीरता भरी कहानी...
कारगिल वॉर में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के 19 साल के एक लड़के ने ऐसा पराक्रम दिखाया कि आज भी सुनकर दुश्मनों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और भारतीय सेना का सिर गर्व से ऊंचा उठ जाता है।
यह गौरव गाथा है 19 साल के यानी सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र हासिल करने वाले नायाब सबूदार योगेंद्र सिंह यादव की।
सूबेदार योगेन्द्र सिंह यादव को कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल के बेहद अहम दुश्मन के तीन बंकरों पर कब्ज़ा जमाने का जिम्मा सौंपा गया था। वे सबसे कम 19 साल की उम्र में परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले भारतीय सैनिक हैं। उनकी वीरता भरी कहानी सुनकर आप भी गर्व किए बिना नहीं रह सकेंगे।
इंडियन आर्मी में जवानों को अपना साहस और दिलेरी साबित करने के लिए कुछ ऐसे काम करना होते हैं जिससे यह तय हो सके कि जवान किसी के ऊपर हथियार चलाने में संकोच न करे। कैप्टन मनोज पांडे के साथ भी यही किया गया। जब वे सेना में गए तो उन्हें एक बकरे पर फरसा चलाकर मारने के लिए कहा गया।
पहले तो मनोज बहुत विचलित हुए, लेकिन फिर उन्होंने फरसे का ज़बरदस्त वार करते हुए बकरे की गर्दन उड़ा दी। उनका चेहरा खून से सन गया था। बकरे को मारकर वे अपने कमरे में गए और कई बार चेहरा धोया। वो हत्या के अपराधबोध से भर गए थे।
जो कभी बकरे पर फरसा चलाने में हिचकिचाते थे वे बाद में भारतीय सेना के ऐसे जांबाज जवान हुए कि दुश्मन उन्हें देखकर कांपते थे।
1995 में डिंपल कैप्टन विक्रम बत्रा से मिलीं, 1996 में विक्रम सेना में चले गए। 1999 में विक्रम कारगिल वॉर में शहीद हो गए। इन पांच सालों में कुछ ही वक्त डिंपल और विक्रम साथ में रहे। लेकिन विक्रम ने जहां देश की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा फहराकर सिर ऊंचा किया, वहीं डिंपल ने अपने प्यार को अमर कर दिया।