LoC : शासक हैं तोप के गोले और उनकी रानियां हैं बंदूकों की गोलियां, बस यहां है मौत का साम्राज्य

अभी आप खड़े हैं और अभी आप कटे हुए वृक्ष की तरह ढह भी सकते हैं। आपको ढहाने के लिए सीमा के उस पार से मौत बरसाई जाती है। मोर्टार के इस्तेमाल के उपरांत बंकर में ही कहीं दफन न हो जाएं इसी डर से रात कहीं तथा

सुरेश एस डुग्गर
गुरुवार, 15 मई 2025 (07:28 IST)
जम्मू फ्रंटियर के सीमांत गांवों से 
 
यहां जिन्दगी और मौत के बीच कोई अंतर नहीं है। अगर मौत पाक गोलीबारी देती है तो पलायन भी जिन्दगी नहीं देता। बस, मौत का साम्राज्य है। ऐसा साम्राज्य जिसके प्रति अब यह कहा जाए कि वह अमर और अजय है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस साम्राज्य पर शासन करने वाले हैं तोप के गोले और उनकी रानियां हैं बंदूकों की नलियों से निकलने वाली गोलियां।
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कोई फासला भी नहीं है यहां जिन्दगी और मौत के बीच। अभी आप खड़े हैं और अभी आप कटे हुए वृक्ष की तरह ढह भी सकते हैं। आपको ढहाने के लिए सीमा के उस पार से मौत बरसाई जाती है। खेतों में जाना या फिर नित्यकर्म के लिए खेतों का इस्तेमाल तो भूल ही जाइए। घरों के भीतर भी बाथरूम का इस्तेमाल डर के कारण लोग नहीं करते। ऐसा इसलिए कि कहीं गोली दीवार को चीरकर आपके शरीर में घुस गई तो आपकी क्या स्थिति होगी।
 यह सच है प्रतिदिन लोग मौत का सामना कर रहे हैं।

रात को जमीन पर सोने की बजाय बंकर में सोने पर मजबूर हैं सीमावासी। हालांकि अब वहां भी खतरा बढ़ा है। मोर्टार के इस्तेमाल के उपरांत बंकर में ही कहीं दफन न हो जाएं इसी डर से रात कहीं तथा दिन कहीं ओर काटने का प्रयास कर रहे हैं उन गांवों के लोग। यहां पाक गोलाबारी ने जिन्दगी और मौत के बीच के फासले को कम कर दिया है।
 
एलओसी पर तो 1947 के पाकिस्तानी हमले के उपरांत ही जिन्दगी और मौत के बीच फासला कम होने लगा था और आज 78 सालों के उपरांत वहां के निवासी आदी हो गए हैं। लेकिन जम्मू फ्रंटियर की जनता के लिए भी यह नया नहीं है। वे भी अब इसके अभ्यस्त होने लगे हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय सीमा होने के कारण वे अभी भी इसी धोखे में हैं कि पाकिस्तान यह सब करना छोड़ देगा। 
परंतु सैनिकों को विश्वास नहीं है। ‘पाकिस्तान इसे वर्किंग बाउंडरी कहने लगा है 1995 के बाद, से तो वह कैसे ऐसा करेगा,’एक सीमा चौकी पर हथियारों की सफाई में जुटे सूबेदार ने कहा था। उसकी पलाटून को सीमा सुरक्षा बल के जवानों की सहायता के लिए तैनात किया गया था। वैसे एक अन्य अधिकारी के शब्दों में :‘अब तो एलओसी और आईबी में कोई खास अंतर नहीं रह गया है सिवाय नाम के। गोली वहां भी चलती है यहां भी। मोर्टार यहां भी चलते हैं वहां भी।’
 
अंतरराष्ट्रीय सीमा पर मौत का खेल वर्ष 1995 में आरंभ हुआ था। जब भारत सरकार ने आतंकियों की घुसपैठ तथा हथियारों की तस्करी को रोकने की खातिर इस 264 किमी लंबी सीमा पर तारबंदी करने की घोषणा की तो पाकिस्तान चिल्ला उठा। उसकी चिल्लाहट में सिर्फ स्वर ही नहीं था बल्कि बंदूक की गोलियों की आवाज भी थी। नतीजतन, मौत बांटने का जो खेल जुलाई’95 में आरंभ हुआ वह अब जिन्दगी और मौत के बीच के फासले को और कम कर गया है।
 
मौत तथा जिन्दगी के बीच का फसला दिनोंदिन कम होता गया। अब तो स्थिति यह है कि दोनों के बीच मात्र कुछ इंच का फासला रह गया है अर्थात दोनों सेनाएं आमने-सामने आ खड़ी हुई हैं। सिर्फ रणभेरी बजने की देर है कि एक दूसरे पर टूट पड़ना चाहती हैं। इसके लिए लिए मौत का सामान दोनों ओर से एकत्र किया जा चुका है।
 हालांकि इस मौत से बचने की खातिर नागरिक पलायन का रास्ता तो अख्तियार कर रहे हैं लेकिन वे वापस लौट कर भी आते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर सीमा पर पाक गोलीबारी उनके लिए मौत का सामान तैयार करती है तो पलायन करने पर सरकारी अनदेखी उन्हें भूखा रहने पर मजबूर करती है। अर्थात सीमावासियों के लिए सरकार और पाक गोलीबारी में कोई खास अंतर नहीं है।  
आतंकी हमले ने सूना कर दिया पहलगाम का पर्यटन
पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने क्षेत्र के पर्यटन उद्योग को गहरा झटका दिया है। इससे हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैं। कभी चहल-पहल से भरा यह शहर अब वीरान पड़ा है, क्योंकि 5,000 घोड़ा संचालक और करीब 600 वाहन मालिक-अपने परिवारों के साथ-जो अपनी आजीविका के लिए पर्यटन पर निर्भर थे-बेकार हो गए हैं।
 
अनंतनाग में कभी पर्यटन गतिविधियों का जीवंत केंद्र रहा पहलगाम का सुंदर शहर अब वीरान नजर आता है। कश्मीर की बैसरन घाटी-जिसे अक्सर पोस्टकार्ड-परफेक्ट दृश्यों के लिए ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ कहा जाता है-की शांति 22 अप्रैल को तब बिखर गई, जब पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की जान चली गई।
 यह हमला पर्यटन सीजन की शुरुआत में हुआ, जो अप्रैल से अक्टूबर तक चलता है - होटल, परिवहन, हस्तशिल्प और स्थानीय बाजारों से जुड़े व्यवसायों के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवधि है। हजारों निवासी, जिनकी आजीविका पर्यटकों की आमद पर निर्भर करती है, अब बहुत कम या बिना आय और घटती उम्मीद के साथ अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं।
 
पत्रकारों से बात करते हुए पोनी वाला एसोसिएशन के अध्यक्ष अब्दुल वहीद वानी ने उन हजारों घोड़ा संचालकों के लिए गहरी चिंता व्यक्त की, जो अब अपने परिवारों का भरण-पोषण करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वे कहते थे कि पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले से 5,000 घोड़ा संचालकों के परिवार प्रभावित हुए हैं।
उन्होंने कहा कि पहलगाम की पूरी अर्थव्यवस्था पर्यटन पर निर्भर करती है, क्योंकि क्षेत्र के सभी 13 गांव इसकी प्राकृतिक सुंदरता पर निर्भर हैं।
 
वे कहते थे कि हमला करने वालों ने बहुत बड़ी गलती की है। हम इस देश के नागरिक हैं और अगर पर्यटक यहां आना बंद कर देंगे तो हमलावरों का उद्देश्य पूरा हो जाएगा। बैसरन में निर्दोष नागरिकों पर हमले के लिए जिम्मेदार लोग शांति को भंग करना चाहते थे। देशभर से पर्यटकों को यहां आना चाहिए और ऐसे तत्वों के एजेंडे को विफल करना चाहिए। फोटोग्राफर, होटल व्यवसायी, ड्राइवर और टट्टू वालों की आजीविका प्रभावित हुई है।
 
पहलगाम के सूमो स्टैंड के अध्यक्ष गुलजार अहमद के बकौल, पर्यटकों को परिवहन सेवाएं प्रदान करने वाले 600 से अधिक वाहन मालिकों ने भी अपनी आय का स्रोत खो दिया है। वे कहते थे कि मेरे संघ में करीब 600 वाहन हैं जो करीब 60,000 परिवार के सदस्यों की आजीविका का सहारा हैं। पहलगाम की पूरी अर्थव्यवस्था पर्यटन के इर्द-गिर्द घूमती है। पर्यटकों के बिना हमारे पास न तो कोई काम है और न ही कोई आय। लोग संकट में हैं।
 
उनका कहना था कि पहलगाम हमेशा से शांतिपूर्ण रहा है, जिससे शांति के दुश्मन नाराज हो सकते हैं। गुलजार अहमद कहते थे कि पहलगाम एक सितारे की तरह चमक रहा था और अब पूरा इलाका अंधेरे में डूब गया है। सरकार को कश्मीर घाटी में पर्यटन को पुनर्जीवित करने के लिए कदम उठाने चाहिए। Edited by: Sudhir Sharma

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