Nationalism and right wing: दक्षिणपंथ का उल्टा वामपंथ है। एक कट्टर धार्मिक सोच को बढ़ावा देता है तो दूसरा धर्म को अफीम का नशा मानता है। दक्षिणपंथी ईश्वरवादी सोच है तो वामपंथ अनिश्वरवादी सोच हैं। लेकिन मजेदार बात यह है कि अपने हितों की रक्षा के लिए ये कुछ देशों में एक होकर काम करते हैं तो कुछ में एक-दूसरे के जानी-दुश्मन है। जैसे वामपंथी चीन को यदि भारत के खिलाफ काम करना है तो वह कट्टरपंथी पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ मिलकर काम करता है। दूसरी ओर पाकिस्तान को भारत में मुस्लिमों पर अत्याचार नजर आता है लेकिन चीन के शिनजियांग प्रांत पर वह आंख मूंदकर बैठा है।
यह तो समझ में आ गया है कि दक्षिणपंथ और वामपंथ मूल रूप से क्या है। हालांकि इन दोनों ही विचारधारा को एक पेज में नहीं समझा जा सकता है। दक्षिणपंथ की शुरुआत 1789-1799 के दौरान फ्रांसीसी क्रांति से हुई थी। वामपंथ समाज में आर्थिक और जातीय समानता लाना चाहता है लेकिन उसने यह काम कभी नहीं किया। वामपंथ को देश, धर्म और जाति से कोई मतलब नहीं है, हालांकि दक्षिणपंथ और वामपंथ में भी कई उपखंड हो चले हैं। जैसे वामपंथ में नक्सलवाद, माओवाद, लेनिनवाद, मार्क्सवाद आदि। दुनिया में इस वक्त कई देशों में दक्षिणपंथी सोच बढ़ रही है। लोग अब चाहते हैं कि हमारे देश में गैर-धर्मी और विदेशी लोगों का दखल नहीं होना चाहिए। यह देश हमारे पुरातन धर्म और संस्कृति के अनुसार चलेगा किसी अन्य विचारधारा के अनुसार नहीं।
जहां तक सवाल राष्ट्रवाद का है तो इसकी परिभाषा अलग अलग मिलेगी। राष्ट्रवादी विचारधारा इस आधार पर आधारित है कि राष्ट्र-राज्य के प्रति व्यक्ति की निष्ठा और समर्पण अन्य व्यक्तिगत, प्रांतवाद, जातीयता या समूह हितों से बढ़कर है। यानी राष्ट्र की भावना प्रांत, धर्म और जातिगत भावना से ऊपर उठकर है। एक मुस्लिम भी उतना ही राष्ट्रवादी हो सकता है जितना की एक हिंदू, ईसाई या बौद्ध। मराठी, गुजराती या तमिल। आदिवासी, ब्राह्मण, नागा या सुन्नी। हम जिस भी तरह से मानव समूह को विभाजित करें वे सभी हैं तो सबसे पहले भारतीय। यह भारतीय होने की भावना ही राष्ट्रवाद है।
राष्ट्रवाद एक आधुनिक आंदोलन है। पूरे इतिहास में लोग अपनी जन्मभूमि, अपने माता-पिता की परंपराओं और स्थापित अधिकारियों से जुड़े रहे हैं और यदि वे मानते हैं कि हमारे पूर्वज एक ही हैं और हमारा इतिहास गर्व भरा रहा है तो वे राष्ट्रवादी हैं। एक भारतीय किसी चीनी, अफ्रीकी, अमेरिकी या यूरोपीय नस्ल से एकदम भिन्न है। वह अपनी भौगोलिक स्थिति, संस्कृति, परंपरा, खानपान, वेशभूषा के साथ ही अपने इतिहास से जुड़ाव को महसूस करता है। वह किसी विदेशी संस्कृति, परंपरा या धरती से खुद के जुड़ाव को नहीं मानता है। राष्ट्रवाद में दक्षिणपंथ की सांप्रदायिकता या जातीयता के लिए कोई जगह नहीं है। यही मूल भावना लोगों को राष्ट्रवादी बनाती है।
जब अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया तो उन्होंने भारत की इस मूल विचारधारा को विभाजित, भ्रमित और खंडित करने के लिए ही शिक्षा में बदलाव करके मतभिन्नता, जातीवाद, प्रांतवाद, सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया। इसी के साथ उन्होंने भारत की भाषा, भूषा और भोजन को बदलकर लोगों को अपने इतिहास से काट दिया क्योंकि वे जानते थे कि यदि लोगों में राष्ट्रवादी भावना का विकास हुआ तो वे ज्यादा समय तक इन्हें गुलाम बनाकर नहीं रख सकते हैं। इसीलिए फूट डालो और राज करो की नीति को भी बढ़ावा दिया गया। इसका परिणाम भारत विभाजन, दंगे, जातिवाद, आरक्षण और प्रांतवादी सोच के रूप में देखने को मिला। यह नीति आज भी जारी है।