यह सवाल हर भारतीय के मन में है कि जब भारत का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था तो क्यों हिन्दू बहुल सिंध को भारत से अलग कर दिया और क्यों सिख बहुल पंजाब का विभाजन किया और क्यों हिन्दू बहुत बंगाल का विभाजन हुआ? दूसरी ओर जम्मू और कश्मीर में भी हिन्दू बहुसंख्यक थे। इसका उत्तर देने वाला शायद अब कोई नहीं रहा।
15 अगस्त 1947 को भारतवर्ष हिन्दुस्तान तथा पाकिस्तान दो हिस्सों में बंटकर स्वतंत्र हो गया। लोग मानते हैं कि ब्रिटेन की छलपूर्ण नीति, मुस्लिम लीग की फूटनीति, भारतीय जनता में दृढ़ता और सामर्थ्य का अभाव, कांग्रेस की गैर- जिम्मेदारीपूर्ण भूमिका व अवसर के प्रति अचेत रहना और गांधीजी की अहिंसा के कारण देश का विभाजन सही नहीं हुआ। भारत की आजादी के साथ जुड़ी देश-विभाजन की कथा बड़ी व्यथा-भरी है। कुछ लोग भारत विभाजन के खिलाफ थे, कुछ पक्ष में थे और कुछ ऐसे लोग थे, जो भारत के धर्म आधारित विभाजन के खिलाफ थे, तो कुछ लोग ऐसे भी थे जो यह मानते थे कि जब धर्म के आधार पर विभाजन हो ही रहा है तो फिर जनता की अदल-बदली भी होनी चाहिए और ठीक-ठीक विभाजन होना चाहिए ताकि बाद में किसी प्रकार का विवाद न हों।
स्वतंत्रता के समय 'भारत' के अंतर्गत तीन तरह के क्षेत्र थे
1. 'ब्रिटिश भारत के क्षेत्र'- ये लंदन के इंडिया ऑफिस तथा भारत के गवर्नर-जनरल के सीधे नियंत्रण में थे।
2. 'देसी राज्य'
3. फ्रांस और पुर्तगाल के औपनिवेशिक क्षेत्र (चंदननगर, पाण्डिचेरी, गोवा आदि)
नोट : 1947 के भारत विभाजन के दौरान ही ब्रिटिश भारत में से सीलोन (अब श्रीलंका) और बर्मा (अब म्यांमार) को भी अलग किया गया, लेकिन इसे भारत के विभाजन में नहीं शामिल किया जाता है जबकि अखंड भारत में ये सभी शामिल थे।
इस तरह कुल मिलाकर भारतवर्ष में 662 रियासतें थीं जिसमें से 565 रजवाड़े ब्रिटिश शासन के अंतर्गत थे। 565 रजवाड़ों में से से 552 रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दी थी। जूनागढ़, हैदराबाद, त्रावणकोर और कश्मीर को छोडकर बाकी की रियासतों ने पाकिस्तान के साथ जाने की स्वीकृति दी थी।
मुगल तथा मराठा साम्राज्यों के पतन के बाद भारतवर्ष बहुत से छोटे-बड़े राज्यों में विभक्त हो गया था। इन राज्यों में सिंध, भावलपुर, दिल्ली, अवध, रुहेलखंड, बंगाल, कर्नाटक, मैसूर, हैदराबाद, भोपाल, जूनागढ़ और सूरत में मुस्लिम शासक थे। इन मुस्लिम शासकों के राज्य में हिन्दू बहुसंख्यक थे जबकि जम्मू और कश्मीर में हिन्दू शासक थे लेकिन जहां जम्मू में हिन्दू तो कश्मीर में मुस्लिम बहुसंख्यक थे। दूसरी ओर पंजाब तथा सरहिंद में अधिकांश सिक्खों के राज्य थे।
असम, मणिपुर, कछार, त्रिपुरा, जयंतिया, तंजोर, कुर्ग, त्रावनकोर (केरल), सतारा, कोल्हापुर, नागपुर, ग्वालियर, इंदौर, बड़ौदा तथा राजपुताना, बुंदेलखंड, बघेलखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, काठियावाड़, मध्यभारत और हिमाचल प्रदेश के राज्यों में हिन्दू शासक थे और हिन्दू ही बहुसंख्यक थे।
आधे से कम भाग पर मुस्लिम राजाओं का और आधे से कुछ ज्यादा भाग पर हिन्दू राजाओं का राज था। 7वीं सदी से शुरू हुई राजाओं की लंबी लड़ाई का परिणाम यह हुआ कि भारत के पश्चिम में जहां कश्मीर, बलूचिस्तान, खैबर-पख़्तूनख्वा, कबायली इलाके में मुस्लिम आबादी आबाद हो गई वहीं दूसरी ओर पूर्व में पूर्वी बंगाल मुस्लिम बहुल इलाका बन गया।
लेकिन सिंध और पंजाब में हिन्दू और सिख बहुमत में थे इसके बावजूद दोनों प्रांतों को विभाजन की त्रासदी झेलना पड़ी। दूसरी ओर समूचे बंगाल की बात करें तो हिन्दू बहुसंख्यक थे लेकिन पूर्वी बंगाल में मुस्लिम शासक थे। उन शासकों ने मुहम्मद अली जिन्नाह के इशारे पर दंगे कराकर दबाव बनाया और बंगाल विाभजन के बीज बोए। विभाजन का सबसे ज्यादा दर्द झेला कश्मीर, बंगाल, पंजाब और सिंध के हिन्दू, ईसाई, बौद्ध और शिया मुसलमानों ने।
विभाजन की त्रासदी कश्मीरी पंडितों को भी भयंकर रूप से झेलना पड़ी थी। मोहम्मद अली जिन्ना के इशारे पर कश्मीर में कबाइलियों ने आक्रमण कर दिया। कबाइलियों ने कश्मीर के आधे से ज्यादा हिस्से पर कब्जा कर लिया था और लूटपाट शुरू कर दी थी। बड़े पैमाने पर कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम किया गया जिसके चलते लाखों कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़कर जम्मू की ओर पलायन करना पड़ा।
भारत का विभाजन माउंटबेटन योजना ( '3 जून प्लान' ) के आधार पर तैयार भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया। इस अधिनियम में कहा गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए जाएंगे और उनको ब्रितानी सरकार सत्ता सौंप देगी।
माउंटबेटन ने भारत की आजादी को लेकर जवाहरलाल नेहरू के सामने एक प्रस्ताव रखा था जिसमें यह प्रावधान था कि भारत के 565 रजवाड़े भारत या पाकिस्तान में किसी एक में विलय को चुनेंगे और वे चाहें तो दोनों के साथ न जाकर अपने को स्वतंत्र भी रख सकेंगे। इन 565 रजवाड़ों जिनमें से अधिकांश प्रिंसली स्टेट (ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा) थे में से भारत के हिस्से में आए रजवाड़ों ने एक-एक करके विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। बचे रह गए थे त्रावणकोर, हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर और भोपाल। जिन्हें भारत में मिलाने के लिए सरदार पटेल ने अभियान चलाया था। हालांकि कश्मीर में वे इसीलिए सफल नहीं हो पाए थे क्योंकि कहा जाता है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसमें दखल दिया था।