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15th August 2024 : भारत की विविधता में एकता के सूत्र, साझा सांस्कृतिक विरासत

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WD Feature Desk

, गुरुवार, 8 अगस्त 2024 (16:27 IST)
- प्रस्तुति : ऋषि गौतम
 
78th Independence Day 2024: हमारा देश विभिन्न संस्कृतियों का देश है जो समूचे विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता है। अलग-अलग संस्कृति और भाषाएं होते हुए भी हम सभी एक सूत्र में बंधे हुए हैं तथा राष्ट्र की एकता व अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। संगठन ही सभी शक्तियों की जड़ है,एकता के बल पर ही अनेक राष्ट्रों का निर्माण हुआ है,प्रत्येक वर्ग में एकता के बिना देश कदापि उन्नति नहीं कर सकता। एकता में महान शक्ति है। एकता के बल पर बलवान शत्रु को भी पराजित किया जा सकता है।ALSO READ: स्वतंत्रता दिवस पर भ्रमण करें भारत के इन रॉयल किलों का, देश के इतिहास को जानने का ये है अद्भुत तरीका
 
राष्ट्रीय एकता का मतलब ही होता है, राष्ट्र के सब घटकों में भिन्न-भिन्न विचारों और विभिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का बना रहना। राष्ट्रीय एकता में केवल शारीरिक समीपता ही महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि उसमें मानसिक, बौद्धिक, वैचारिक और भावात्मक निकटता की समानता आवश्यक है।
 
एकता का अर्थ यह नहीं होता कि किसी विषय पर मतभेद ही न हो। मतभेद होने के बावजूद भी जो सुखद और सबके हित में है उसे एक रूप में सभी स्वीकार कर लेते हैं। राष्ट्रीय एकता से अभिप्राय है सभी नागरिक राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत हों सभी नागरिक पहले भारतीय हों, फिर हिन्दू, मुसलमान या अन्य। भारत विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और सम्प्रदायों का संगम स्थल है। यहां सभी धर्मों और सम्प्रदायों को बराबर का दर्जा मिला है। हिंदु धर्म के अलावा जैन, बौद्ध और सिक्ख धर्म का उद्भव यहीं हुआ है। अनेकता के बावजूद उनमें एकता है। यही कारण है कि सदियों से उनमें एकता के भाव परिलक्षित होते रहे हैं। शुरू से हमारा दृष्टिकोण उदारवादी है। हम सत्य और अहिंसा का आदर करते हैं।ALSO READ: AI से होगी स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की निगरानी, जानिए एंटी ड्रोन सिस्टम के अलावा क्या हैं सुरक्षा के इंतज़ाम
 
हमारे मूल्य गहराई से अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं जिन पर हमारे ऋषि-मुनियों और विचारकों ने बल दिया है। हमारे इन मूल्यों को सभी धर्मग्रंथों में स्थान मिला है। चाहे कुरान हो या बाइबिल,गुरुग्रंथ साहिब हो या गीता, हजरत मोहम्मद, ईसा मसीह, गुरुनानक, बुद्ध और महावीर, सभी ने मानव मात्र की एकता, सार्वभौमिकता और शांति की महायात्रा पर जोर दिया है। भारत के लोग चाहे किसी भी मजहब के हों,अन्य धर्मों का आदर करना जानते हैं। क्योंकि सभी धर्मों का सार एक ही है। इसीलिए हमारा राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष है।
 
जब देश आजाद हुआ था तो उस वक्त प्रबुद्ध समझे जाने वाले कई लोगों ने यह घोषणा की थी कि विविधताओं के इस देश का बिखरना तय है। सीधे तौर पर देखें तो आज उनकी बात असत्य मालूम पड़ती है। पर अगर गहराई में जाकर समझा जाए तो यह समझने में देर नहीं लगती है कि भले ही देश ना टूटा हो लेकिन धर्म,जाति आदि के नाम पर समाज बंटा जरूर है। सियासतदान समय-समय पर धर्म,जाति के नाम पर लोगों को बांटकर राजनीति की रोटी सेंकते रहे हैं। फिरकापरस्ती के लिए अब भाषा और क्षेत्र को भी हथियार बनाया जा रहा है।ALSO READ: स्वतंत्रता दिवस 2024: जानें भारत के 125 स्वतंत्रता सेनानियों की सूची (1857 से 1947 तक)
 
भाषा और क्षेत्र के नाम पर बढ़ने वाली हिंसा से सामाजिक संतुलन का बिगड़ना भी स्वाभाविक है। इससे क्षेत्रवाद और जातिवाद फैलेगा। समाज खांचों में बंटने लगेगा। माइक्रो लेवल की चीजों को बढ़ावा देने से क्षेत्रीय असंतुलन भी बढेग़ा। इससे एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि जिनकी भलाई के नाम पर हिंसा की जा रही है,उनकी हालत पर भी नकारात्मक असर ही पड़ने वाला है।
 
किसी भी सभ्य और लोकतान्त्रिक राष्ट्र की आधारशिला यह है कि वह अपने नागरिकों में लिंग,धर्म,जाति,आर्थिक स्थिति आदि के आधार पर बिना किसी भेदभाव के सबके साथ समान व्यवहार करें। वास्तव में राज्य द्वारा नागरिकों से समान व्यवहार की यह प्रक्रिया समाज में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उन तार्किक सामाजिक मूल्यों की स्थापना करती है,जो किसी भी राष्ट्र के जीवन और विकास की आधारभूत आवश्यकता होती है।ALSO READ: 15 August Essay : 15 अगस्त /स्वतंत्रता दिवस पर रोचक हिन्दी निबंध
 
परंतु जब समान व्यवहार की यह प्रक्रिया समाज के रूढ़िवादी विचारों, धार्मिक कट्टरता, व्यक्तिगत और राजनीतिक स्वार्थों से बाधित होती है तो इसकी परिणति एक शोषणकारी व्यवस्था के सृजन के रूप में होती है। तब इस शोषण के लिए जिम्मेदार न सिर्फ स्वार्थपूर्ण धार्मिक एवं सामाजिक मूल्य होते हैं बल्कि राज्य भी इस शोषण का संरक्षक बन जाता है।
 
दरअसल,किसी भी चीज को मुद्दा बनाकर अगर समाज में हिंसा फैलाई जाती है तो इसका राष्ट्रीय एकता पर बुरा असर पड़ना तय है। एक तो हमारे समाज में काफी विविधताएं पहले से ही मौजूद हैं। ऐसे में अगर एक खास वर्ग अपनी चीजों को सर्वोत्तम कहने लगे और उसे दूसरे लोगों को अपनाने के लिए मजबूर करने के लिए हिंसा का सहारा लें तो राष्ट्र की एकता और अखंडता को चोट पहुंचना तय है।
 
आज एक बड़ा प्रश्न यह है कि धर्म,जाति,भाषा,क्षेत्र आदि के नाम पर समाज को बंटने से कैसे रोका जाए? इसके लिए सबसे पहले तो हमें एक-दूसरे की संस्कृति का सम्मान करना सीखना होगा। परिवार में अलग राय रखने वाले को घर से निकाल नहीं दिया जाता है। यह सही है कि लोग अपनी क्षेत्रीय संस्कृति को बढ़ावा दें। इससे सांस्कृतिक समृद्धि बढ़ेगी। लेकिन यह राष्ट्रीयता की कीमत पर नहीं होना चाहिए।’
 
हमारे देश में सभी धर्मों के लोग जानते हैं कि उनकी संस्कृति एक है। बौद्ध हों या जैन हों,वैष्णव हों या सिक्ख या फिर ब्रह्यसमाजी, सभी मानते हैं कि उनके पूर्वज एक थे। भले ही बाद में उनके पूर्वजों के जीवन कथा को अलग-अलग मजहब का रंग दे दिया गया?ALSO READ: 15 अगस्त: स्वतंत्रता दिवस पर पढ़ें देशभक्ति से भरे 23 दमदार फिल्मी डायलॉग्स, सुनकर होगा गर्व
 
सबको जोड़ने के लिए ही तीन रंगों के कपड़े को जोड़कर 'तिरंगा' बनाया गया है। वह कोई साधारण कपड़ा नहीं है बल्कि उसे हमने 'राष्ट्रीय एकता' का प्रतीक माना है। इसकी प्रतिष्ठा राष्ट्र की प्रतिष्ठा और इसका अपमान राष्ट्र का अपमान है। इसीलिए इस तिरंगे की शान के लिए आज तक हजारों-लाखों भारतीय अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं। इसी बलिदान का परिणाम है कि आज हमारी राष्ट्रीय एकता के प्रतीक तिरंगा झंडा अपने सर्वोच्च स्थान पर गर्व के साथ फहरा रहा है। हमें अपने देश की एकता व अखंडता पर गर्व है।
 

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