दो बड़े-बड़े और विभिन्न छोटे छोटे भू भागों की संप्रभुता और कब्जे को लेकर भारत और चीन के बीच विवाद है। पूरी तरह से पश्चिम में स्थित, अक्साई चिन पर भारत दावा करता है और उसका कहना है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का एक हिस्सा है लेकिन इस पर नियंत्रण और कब्जा चीन के जिनाशियांग स्वायत्तशासी क्षेत्र का है और वही इसे प्रशासित करता है। वास्तव में, यह पूरी तरह से निर्जन और बहुत उंचाई पर स्थित बंजर जमीन है जिसे जिनशियांग-तिब्बत राजमार्ग अलग करता है। धुर पूर्व में स्थित मैकमोहन लाइन के दक्षिण में एक और बड़ा विवादित क्षेत्र है और इसे प्रारंभ और पूर्व में नॉर्थ इस्टर्न फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) कहा जाता था।
इसे आज अरुणाचल प्रदेश कहा जाता है। विदित हो कि ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत को लेकर एक समझौता किया था और मैकमोहन लाइन को 1914 के शिमला समझौते के तहत तय किया गया था लेकिन चीन इस समझौते और करार को पूरी तरह से अस्वीकार करता है। चीन का दावा है कि यह पूरा का पूरा इलाका उसका है। विदित हो कि भारत और चीन के बीच लड़ा गया वर्ष 1962 का युद्ध इन दोनों ही क्षेत्रों में लड़ा गया था। वर्ष 1996 में दोनों देशों के बीच 'विश्वास बढ़ाने के उपाय के तहत' विवाद का निपटारा किया था और दोनों देशों के बीच पारस्परिक सहमति से वास्तविक नियंत्रण रेखा का निर्धारण किया गया था। लेकिन 2006 में भारत में चीन के राजदूत ने दावा किया था कि समूचा अरुणाचल प्रदेश एक चीनी क्षेत्र हैं हालांकि इसके पास सेना का जबर्दस्त जमावड़ा मौजूद है।
फिलहाल दोनों देशों की ओर दावा किया जाता है कि दोनों देशों के सैनिक सिक्किम के धुर उत्तरी छोर में कम से कम एक किलोमीटर अंदर तक घुसपैठ करते हैं। वर्ष 2009 में भारत ने घोषणा की थी कि यह सीमा के आसपास अतिरिक्त सैनिक बलों को तैनात कर दिया जाएगा। विदित हो कि वर्ष 2014 ने भारत ने चीन के सामने प्रस्ताव रखा कि चीन को 'एक भारत' नीति को स्वीकार कर लेना चाहिए ताकि सीमा विवाद हल करने में मदद मिल सके।
सीमा सवाल को लेकर निम्नलिखित विभिन्न इलाकों के समाधान को लेकर बैठकें की गई थी। अक्साई चिन, द जॉन्सन लाइन, द मैककार्टिनी-मैकडोनाल्ड लाइन, वर्ष 1899 से लेकर 1947 तक की स्थिति, वर्ष 1947 के बाद, ट्रांस कराकोरम (कराकोरम पार) के विस्तार, द मैकमोहन लाइन, सिक्कम।
विदित हो कि वर्ष 1960 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीनी प्रधान मंत्री चाउ एन लाई के समझौते के तहत सीमा विवाद निपटाने के लिए अधिकारियों की बातचीत हुई। इस बातचीत के दौरान पश्चिमी क्षेत्र की सीमा को तय करने के लिए बड़े जल विभाजकों पर अपनी असहमित जाहिर की और इस संदर्भ में जो भी चीनी दस्तावेज हैं, उनमें बताए गए सूत्रों के अनुसार अक्सर ही सीमा संबंधी दावों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
अक्साई चिन
(विवादित सीमा का पश्चिमी हिस्सा)
इस क्षेत्र के सबसे निचले बिंदु जोकि कराकाश नदी समुद्र तल के करीब 14,000 फीट (4300 मीटर) ऊंचाई से लेकर ग्लेशियर के शिखरों (22,500फीट या 6900 मीटर तक) ऊंचा ज्यादातर क्षेत्र निर्जन और पूरी तरह से आबादी रहित है। यह करीब 37,244 वर्ग किलोमीटर (14380 वर्ग मील) तक फैला हुआ है। अक्साई चिन के पूरी तरह से मनुष्यों की उपस्थिति से विहीन यह दर्शाता है कि इसका महत्व प्राचीन कारोबारी मार्गों की क्रॉसिंग के कारण है और यह गर्मियों के मौसम में जिनशियांग और तिब्बत से आने वाले याकों के कारवांओं के लिए थोड़े समय के मार्ग के तौर पर काम आता था।
वास्तव में, पश्चिमी क्षेत्र में सीमाओं को लेकर शुरुआती समझौतों में से एक को 1842 में जारी किया गया था। तब पंजाब में सिखों के साम्राज्य क्षेत्र में 1834 में जम्मू राज्य के लद्दाख को अपने राज्य में मिला लिया था। वर्ष 1841 में सिखों की सेना ने तिब्बत पर हमला किया लेकिन चीनी सेना ने सिख सेना को पराजित किया और लद्दाम में घुसकर लेह पर कब्जा कर लिया। सिख सेनाओं के लगाम लगाए जाने के बाद सितम्बर 1842 में चीनी और सिखों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किए जिसमें कहा गया कि दोनों में से कोई देश पड़ोसी देशों की सीमाओं में अवैध घुसपैठ या हस्तक्षेप नहीं करेगा। वर्ष 1846 में ब्रिटिश की ओर सिखों ने लद्दाख पर संप्रभुता का हस्तांतरण चीनियों के हाथों में कर दिया गया और इन घटनाओं के बाद ब्रिटिश कमिश्नरों ने चीनी अधिकारियों के साथ मिलकर उस सीमा के बारे में बात की जिसे उस समय दोनों साझा करते थे। लेकिन इस मामले को लेकर दोनों पक्षों के बीच संतोष का भाव था कि उनकी परम्परागत सीमा को मान्य कर लिया गया है और इसे प्राकृतिक तत्वों ने निर्धारित किया है। साथ ही, सीमाओं का स्पष्ट विभाजन नहीं किया गया था। दोनों ही सीमाओं के छोर पैगांग झील और कराकरोरम दर्रे को पर्याप्त रूप से परिभाषित कर दिया गया लेकिन इनके बीच में अक्साई चिन का क्षेत्र अभी तक परिभाषित नहीं है।
द जॉन्सन लाइन
वर्ष 1878 के मध्य एशिया के नक्शे में कोतान को दिखाया गया है। इसके पूर्व में सीमा के दर्शाए गए नक्शों में अक्साई चिन की सीमा के भारत और चीनी दावों को दिखाया गया है। इसे फॉरेन ऑफिस लाइन या मैककार्टनी-मैकडोनाल्ड लाइन भी कहा जाता है। इनमें चीनी सेनाओं की प्रगति को भी दर्शाया गया है जिस पर चीनियों ने भारत-चीन युद्ध में हथिया लिया था।
विदित हो कि सर्वे ऑफ इंडिया से जुड़े एक प्रशासनिक अधिकारी डब्ल्यू. एच. जॉन्सन ने 1865 में एक 'जॉन्सन लाइन' बनाने का प्रस्ताव रखा था जिसके तहत अक्साई चिन को जम्मू कश्मीर में दर्शाया गया था। यह वास्तव में डनगन विद्रोह के दौरान हुआ था और उस समय चीन के विभिन्न प्रजातीय समूहों में बड़े पैमाने पर विद्रोह हुआ था और उस समय अराजकता के इस दौर में कहा जाता है कि 80 लाख से लेकर 1 करोड़ लोग तक मारे गए थे, इस कारण से जॉन्सन लाइन का निर्धारण ही नहीं किया जा सका।
जान्सन ने अपनी इस रेखा को जम्मू-कश्मीर के महाराजा को दिखाई थी और तब उन्होंने दावा किया था कि उनके राज्य की सीमा 18,000 वर्ग किमी तक फैली है उनका कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया था कि उत्तर में उनके भूभाग को पूरी तरह से नहीं दर्शाया गया है। लेकिन अपनी बहुत सारी गलतियों के कारण जॉन्सन की कड़ी आलोचना की गई थी और कहा गया कि उन्होंने जो सीमा निर्धारित की है, वह 'पूरी तरह से बेतुकी' है। लेकिन कहा जा सकता है कि इसे अधिक महत्व नहीं दिया गया।
वर्ष 1893 में काशगर में ब्रिटिश सलाहकार हुंग ता चान ने एक नक्शा बनाया था जिसे डॉट-डैश की रेखा से दर्शाया गया था। बाद में इसे मैककार्टनी-मैकडोनाल्ड लाइन भी बताया गया। विदित हो कि जॉर्ज मैकार्टनी, काशगर चीन में ब्रिटिश प्रमुख सलाहकार थे और सर क्लॉड मैक्डोनाल्ड ने एक नोट बनाकर 1899 में ब्रिटिश सरकार की ओर से चीन को भेजी गई लेकिन चीन ने इस पर कोई उत्तर नहीं दिया। इस मामले में कोई आधिकारिक सीमा निर्धारित नहीं की गई लेकिन चीन ने इसे स्वीकृत सीमा मान ली।
-वर्ष 1947 से पहले चीन सरकार ने 1917 से लेकर 1933 के बीच 'पोस्टल एटलस ऑफ चाइना' प्रकाशित किया गया था जिससे अक्साई चिन को जॉनसन लाइन के अनुसार भारत में दर्शाया गया था।
-इसी तरह से भारत की स्वतंत्रता के बाद 1 जुलाई, 1954 को जब प्रधानमंत्री नेहरू ने अक्साई चिन को भारत के नक्शे में दिखाए जाने को कहा तब चीन ने इस पर आपत्ति की जबकि नेहरूजी का कहना था कि भारत के नक्शों में जॉन्सन लाइन के मुताबिक भारत की सीमा रेखा के अंदर दर्शाया जाए।
-उनका कहना था कि सदियों तक यह इलाका भारत के लद्दाख क्षेत्र का हिस्सा रहा लेकिन 1958 में प्रकाशित चीनी नक्शों में इसे चीन के एक भाग के तौर पर दिखाया गया था।
-पचास और साठ के दशक में चाउ एन लाई का कहना था कि यह तो चीन के न्याय क्षेत्र में आता है क्योंकि चीनी सरकार ने केवल मैकार्टनी-मैकडोनाल्ड लाइन को मान्यता दी है जिसके तहत अक्साई चिन भारत का हिस्सा नहीं है और यह चीन का भाग है।
-अप्रैल 2013 में भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा का निर्धारण किया क्योंकि तब चीनी सैनिकों ने दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में अपनी वास्तविक नियंत्रण रेखा के अंदर दस किमी अंदर अपना कैम्प बना लिया था। बाद में, इसे 19 किमी बताया गया।
-इसी तरह सितम्बर 2014 में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जब भारतीय और चीनी सैनिकों ने इस दूसरे की सीमा पर कैम्प बना लिए थे। विदित हो कि चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा के तीन किमी के अंदर तक कैम्प बना लिए थे।
- बीबीसी की बेबसाइट का कहना है कि प्रत्येक घुसपैठ के साथ चीनी सेना भारत में कई किमी तक अंदर घुस आई है और उसने दोनों तरह से तय पेट्रोलिंग एरिया और लाइन को बदलते रहते हैं।
-मैकमोहन लाइन को भी चीन नहीं मानता है जबकि 1826 में जब ब्रिटिश भारत और चीन ने 1826 में उत्तरी सीमा को तय किया था। बाद में, तिब्बत की स्थिति और इसकी सीमाओं को सीमाओं के निर्धारण की रूप रेखा बनाई गई।
-वर्ष 1913-14 में ब्रिटेन, चीन और तिब्बत को लेकर शिमला एक वार्ता की गई। पूर्वी सीमा निर्धारण के लिए तिब्बत की सीमा एक ब्रिटिश वार्ताकार हेनरी मैकमोहन ने सुझाई थी। इस पर त्रिपक्षीय सहमति भी हो गई थी लेकिन इसके बाद चीन ने भारत-तिब्बत की सीमा को लेकर सवाल खड़े कर दिया और मैकमोहन लाइन को अस्वीकार कर दिया।
- विदित हो कि शिमला समझौते को लेकर भी ब्रिटिश पक्ष ने गलतियां कीं जिसका खामियाजा भारत को भुगतना पड़ा। अरुणाचल का तवांग इलाका भारत के पास ही रहा लेकिन चीन का कहना है कि पूरा अरुणाचल प्रदेश पर ही उसका अधिकार है।
-इस मामले में भारत का कहना है कि चीनी पक्ष अपनी सुविधा के अनुसार अपना रुख बदलता रहा है जिस कारण से कोई स्थायी सीमारेखा का निर्धारण नहीं हो सका है।