Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
Saturday, 17 May 2025
webdunia

क्या यही आजादी है?

Advertiesment
हमें फॉलो करें इंडिपेंडेंस डे

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

ND

इन 62 वर्षों में देश के लगभग हर हिस्से में अलोकतांत्रिक व्यवहार और हिंसा के चलते मनमानी तंत्र ही नजर आया। इस मनमानी के चलते ‍देश में अलगाववादी प्रवृत्तियाँ पनपती रहीं और देश को विखंडित किए जाने का दुष्चक्र चल रहा है। क्या आजादी का यही मतलब है कि हम नए तरीके से गुलाम होने के रास्ते खोजें? कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और खम्बात से लेकर सिक्किम तक भारतवासी भय, भुखमरी और असुरक्षा की भावना में जी रहे हैं। हमने तरक्की तो बहुत की और विश्व में हर क्षेत्र में अपना रुतबा भी कायम किया, लेकिन अपना सुख-चैन, आपसी प्रेम और विश्वास खोकर।

टूटता सामाजिक ताना-बाना : स्वतंत्रता के बाद पहले इमरजेंसी ने आजादी पर ग्रहण लगाया, फिर मंडल आयोग ने देश के सामाजिक ताने-बाने में सेंध लगाई। बाबरी ढाँचे के विध्वंस का तमाशा सबने देखा। फिर गोधरा कांड के कारण गुजरात दंगों के दंश को झेला। आरक्षण के नाम पर छात्र आंदोलन की आग बुझी ही नहीं थी कि गुर्जर और मीणाओं की तनातनी भी देखी।

राजनीतिज्ञों के कारण देश में बढ़ते असंतोष का खेल चल ही रहा था कि घाटी में अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन देने और फिर वापस लेने को लेकर समूचे देश में कोहराम मचा और घाटी को दो भागों में बाँट दिया। एक तरफ राम के नाम पर राजनीति की गई तो दूसरी तरफ राम का अपमान किया गया। हमने इन 63 सालों में कई तमाशे देखे, लेकिन कभी इन तमाशों का पुरजोर विरोध नहीं किया।

इंडिपेंडेंस डे
ND
धर्म और भाषा के नाम पर : केंद्र से खिसककर भारतीय राजनीति का क्षेत्रीयकरण बढ़ने के कारण क्षेत्रवाद ने राज ठाकरे जैसे अनेक नेताओं को जन्म दिया। आजादी के बाद तथाकथित राजनीतिज्ञों ने यह ध्यान क्यों नहीं दिया कि भाषा के आधार पर राज्यों का गठन किया जाएगा तो भाषाई झगड़े राज्यों के बीच अशांति और हिंसा का कारण बनेंगे। इसके चलते आज भारत में ही भारतवासी अपनों की चोट के कारण दरबदर हैं।

दूसरी ओर साम्प्रदायिक और जातिवादी राजनीति के चलते समूचे देश को राजनीतिज्ञों ने बाँटकर रख दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि आज जहाँ लाखों कश्मीरी पंडितों को खुद के ही देश में शरणार्थी बनकर रहना पड़ रहा है, वहीं उत्तरप्रदेश, उड़ीसा और असम के सामाजिक ताने-बाने को तोड़कर भय का वातावरण निर्मित कर दिया गया है। दूसरी ओर सेवा के नाम पर गरीब दलितों का धर्मांतरण जारी है तो आजादी के 62 वर्ष बाद भी मुसलमानों की बहुत बड़ी आबादी अशिक्षित बनी हुई है।

जम्मू और कश्मीर :
1990 के दशक में कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा धर्म के नाम पर प्रायोजित छद्म युद्ध के चलते कश्मीरी पंडितों को विस्थापन के लिए विवश होना पड़ा। एक अनुमान के मुताबिक घाटी से करीब 350,000 कश्मीरी पंडितों ने अन्य सुरक्षित इलाकों की ओर पलायन किया था। 1990 में शुरू हुए पलायन के बाद कश्मीरी पंडित समुदाय जम्मू और दिल्ली सहित देश के कई अन्य शहरों में शरणार्थियों-सा जीवन जी रहा है। इस पलायन के बाद आज भी वहाँ आतंकवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। राज्य और केंद्र सरकारों के लिए अब यह राजनीति का खेल मात्र रह गया है।

पूर्वोत्तर में अलगाव : असम, मणिपुर, नगालैंड, त्रिपुरा, अरुणाचल, मेघालय, मिजोरम व सिक्किम इन आठ राज्यों में उग्रवाद व अलगाववादी ताकतों ने अपना वजूद कायम कर लिया है। पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में अलग स्वाधीनता और स्वायत्तता का जुनून छा रहा है। इन राज्यों में सीमा विवाद भी चरम पर है।

बांग्लादेशी घुसपैठ : दूसरी ओर बांग्लादेशी घुसपैठ खत्म होने का नाम नहीं ले रही है, तो चीन की अरुणाचल और सिक्किम पर गिद्धदृष्टि है। पूर्वोत्तर में सिक्किम ही इकलौता ऐसा राज्य है, जो तीन तरफा विदेशी सीमाओं से घिरा हुआ है। वोट की राजनीति के चलते उग्रवादी तत्वों को हवा मिल रही है। राज्य सरकारें केंद्र से आतंकवाद से जूझने के लिए मिलने वाली राशि के लालच में उग्रवादी तत्वों के साथ नूराकुश्ती खेल रही हैं। बांग्लादेशी घुसपैठ से पश्चिम बंगाल भी अछूता नहीं है। कामरेडों ने इस भूमि को बांग्लादेशियों से पाट दिया है। अब परिस्थितियाँ और विषम हो चली हैं। ‍इस विषमता के बावजूद राज्य और केंद्र सरकार शुतुरमुर्ग बनी हुई है।

देश में फैलता नक्सलवाद : लोकतंत्र का दुरुपयोग करने वाले नेता, नौकरशाह, पूँजीपति और पुलिस तंत्र की मिलीजुली मनमानी और भ्रष्टाचार के मजबूत होते ऑक्टोपस का फैलाव, जमाखोरों, सूदखोरों, दलालों, भू-माफियाओं और जनसंख्या वृद्धि के कारण महँगाई, गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और सामाजिक असमानता के चलते नक्सलवादी सोच का जन्म और विकास हुआ। आज पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश और अन्य राज्यों के आदिवासी इलाकों में नक्सलवादियों का जाल फैल गया है। राज्य पुलिस इसके आगे बेबस नजर आती है। केंद्र भी कोई ठोस कार्रवाई के लिए कदम बढ़ाता नहीं दिखता।

इतिहास के प्रति उपेक्षा : गुलाम बनने के मुख्‍य कारणों में से एक यह है कि लोग अपने इतिहास और भूगोल के प्रति सजग नहीं रहते हैं। राजनीति और समाज की समझ का आधार इतिहास होता है। ज्यादादतर ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जिन्हें भारत के इति‍हास और भूगोल की कोई खास जानकारी नहीं है। कहते हैं कि जिस देश के लोगों को अपने इतिहास की जानकारी नहीं होती वह देश धीरे-धीरे स्वयं की संस्कृति, धर्म, देश की सीमा और देशीपन को खो देता है।

इस देश के ज्यादातर लोगों को सिर्फ इतना भर मालूम है कि हम कभी गुलाम थे, इसीलिए आज आजादी का पर्व मनाया जाता है। हमें गुलामी से मुक्त कराने वाले कुछ खास नाम वे हैं जिनके पोस्टर हम शहरों या अखबारों में छपे हुए देख लेते हैं किंतु यह कतई नहीं मालूम कि यह आजादी किस तरह हासिल की गई और क्या था अंग्रेजों का काल।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi