आजादी और भारत का युवा

युवा सपनों को मिल रही है उड़ान

स्मृति आदित्य
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15 अगस्‍त को हमारा 63वाँ स्वतंत्रता दिवस है। एक राष्ट्र की स्वतंत्रता बुजुर्ग हो रही है लेकिन उसकी राजनीति, प्रशासनिक व्यवस्था और न्यायपालिका में जिस गति से परिपक्वता और गंभीरता आनी थी, अफसोस कि वह नहीं आ सकी। यह दिवस राष्ट्र का गौरव दिवस होता है नि:संदेह यह वक्त देश की कमजोरियाँ गिनाने का नहीं है। लेकिन आखिर इस दिन भी आँखें ना खोलें तो फिर कब खोलें?

साल के अन्य दिनों में आटे-दाल के भाव हमारी प्राथमिकताओं में होते हैं। फिर देश के लिए हम कब सोचें और किस तरह सोचें; भला,यह बताने तो कोई और आने से रहा।

स्वतंत्रता दिवस हर साल बड़े जोर-शोर से आता है और शाम ढलते-ढलते थक जाता है। इसलिए नहीं कि वह बीमार है, इसलिए भी नहीं कि उसकी आजादी बूढ़ी हो रही है। यह दिन थक जाता है अपने मुल्क के बाशिंदों की अकर्मण्यता देखकर। लेकिन यह भी इसी देश का सच है कि यहाँ के युवाओं ने हर क्षेत्र में, हर स्तर पर अपनी दक्षता सिद्ध की है।

भारतीय युवा का खास अंदा ज -
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पिछले 10-15 सालों में भारत के युवाओं में एक अहम परिवर्तन की बयार आई है। उनमें निर्णय लेने की क्षमता का विकास हुआ है। करियर हो या जीवनसाथी का चुनाव, पहनावा हो या भाषा, जीवन-शैली हो या अपनी बात को रखने का अंदाज। एक बेहद आकर्षक आत्मविश्वास के साथ भारतीय युवा चमका है। आश्चर्यजनक रूप से उसके व्यक्तित्व में निखार आया है।

उसे जिद्दी कहना जल्दबाजी होगी यह जुनून और जोश की दमदार अभिव्यक्ति है। उसे अगर सही दिशा में सही अवसर मिलें, या इसे यूँ कहें कि उसे स्वयं को अभिव्यक्त करने का स्पेस दिया जाए, उस पर विश्वास करने का जोखिम उठाया जाए तो कोई वजह नहीं बनती कि उसमें शिथिलता के लक्षण भी नजर आ जाएँ। यह भारतीय युवा के कुशल मस्तिष्क की ही तारीफ है कि वैश्विक स्तर पर उस पर विश्वास किया जा रहा है। बड़ी-बड़ी जिम्मेदारियाँ उसे सौंपी जा रही है।

भारतीय युवा राजनीति
यह इस देश की राजनीति के लिए निसंदेह शुभ और सुखद लक्षण है कि बुजुर्गों की भीड़ में अब युवा चेहरे चमक रहें हैं।
चाहे राहुल गाँधी हो या सचिन पायलट, मिस संगमा हो या ‍िप्रयंका गाँधी। संसद में बैठें ये सिर्फ मोम के पुतले नहीं है बल्कि समय-समय पर जनता की आवाज बनने में भी ये गुरेज नहीं करते। इनकी उम्र कम लेकिन हौसलें बुलंद है।
देश की जनता बुजुर्ग नेताओं के कोरे भाषण सुन-सुन कर थक चुकी थी और कहना होगा कि यह बदलाव उन्हें सुहाना लग रहा है।

भारतीय युवा आक्रोश और इच्छाएँ
यहाँ भारत के युवाओं को संयम की डोर थामने की आवश्यकता है। लेकिन पूर्णत: युवाओं पर दोष मढ़ना भी ठीक नहीं है। पल-पल की अव्यवस्था और भ्रष्टाचार को देखते हुए उसका खून खौल उठता है। सही जगह पर आक्रोश व्यक्त नहीं हो पाता है फलस्वरूप यह कहीं और किसी और रूप में निकलता है। जिसका शिकार कोई निर्दोष होता है। वर्तमान फिल्मों और टीवी के बेतुके शोज् ने उसे दिग्भ्रमित किया है। कम मेहनत और कम समय में करोड़पति बनने का झूठा ख्वाब उसकी आँखों में लगातार बोया जा रहा है। और यथार्थ में जब वह पूरा नहीं हो पाता तो उसकी बौखलाहट कुंठा में बदल जाती है।

आज देश के सारे मीडिया का लक्ष्य युवा है। चाहे कॉस्मेटिक्स हो या बाइक्स, मोबाइल के नित नए मॉडल हो या महँगी जिन्स आज ये सब फैशन कम और जरूरत अधिक बन गए हैं। यहाँ तक कि विज्ञापनों में पुरानी सामान्य जरूरत को भी नए रंग-रूप में ढाल कर इस तरह पेश किया जा रहा है मानों इसे बताए गए रूप में पूरा नहीं किया गया तो उसका जीवन ही बेकार है।

भारतीय युवा और आजादी
आज का भारतीय युवा दो वर्गों में बँटा दिखाई देता है। एक तरफ कुछ कर गुजरने का असीम जोश उसमें निहित है दूसरी तरफ वह स्वतंत्रता के नए और कुत्सित अर्थ को ही असली आजादी मान बैठा है। स्वच्छन्दता और उच्छ्रंखलता किसी भी रूप में आजादी की शुभ परिभाषा नहीं है। असली आजादी, गरिमा और मर्यादा की परिधि में रह कर वैचारिक रूप से परिवर्तन लाने की कोशिश को कहा जाना चाहिए ना कि सिर्फ डिस्को थैक में अपना समय गुजारने और सेक्स तथा हिंसा को अपनी जिन्दगी का लक्ष्य बना कर चलना किसी भी काल में आजादी के मायने नहीं हो सकते।

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ग्रामीण युवा ने बनाई अपनी पहचान
यह भी एक ठंडक देने वाला तथ्य सामने आया है कि गाँव का भोला-भाला गबरू जवान अब सूचना और संचार प्रौद्योगिकी पर सहज पकड़ हासिल कर रहा है। अब अपनी विलक्षण प्रतिभा के दम पर उसने बरसों की हीन भावना और संकोच पर विजय हासिल कर ली है। प्रतियोगी परीक्षा से लेकर चिकित्सा, इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी हर विधा में अपनी क्षमता का परचम लहराया है। आज शहर के युवा जहाँ उच्च उपभोक्तावादी ताकतों के शिकार हो रहे हैं वहीं अधिकांश ग्रामीण युवा ने अपने लक्ष्य पर से निगाह हटाने की गलती नहीं की है।

यह स्वतंत्रता दिवस 63 वें साल में प्रवेश कर रहा है। इस मुकाम पर हम उम्मीद करें कि भारतीय युवाओं की रचनात्मक शक्ति को सही परिप्रेक्ष्य में पहचाना जाएगा और उसकी सोच के समंदर में सकारात्मक लहरें आलो‍डि़त होगीं। तब ही तो युवा भारत के युवा सपनों को नई उड़ान मिल सकेगी।

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