Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

बैंक राष्ट्रीयकरण से बदली थी तस्वीर

हमें फॉलो करें बैंक राष्ट्रीयकरण से बदली थी तस्वीर
-प्रो. मधुमास चंद्र
मध्यप्रदेश ही नहीं, पूरे देश में आर्थिक विकास या आर्थिक आजादी का दौर वास्तव में 1969 से प्रारंभ हुआ, जब संसद ने राजाओं-नवाबों के प्रिवीयर्स एवं विशेषाधिकार की समाप्ति और बैंकों के राष्ट्रीयकरण का विधेयक पारित किया। बुंदेलखंड, बघेलखंड, छत्तीसगढ़, मध्य भारत, भोपाल आदि पुरानी रियासतों में अधिकांश कृषि भूमि पर राजाओं, नवाबों, ताल्लुकेदारों, जमींदारों आदि का आधिपत्य रहा है।

1969 के बाद जब भूमि सुधार कानून लागू किए गए, तब मझोले व छोटे किसानों को न केवल राहत मिली, बल्कि उन्हें कृषि कार्य कर अपना जीवन स्तर सुधारने की आजादी मिली। हदबंदी कानूनों के लागू होने पर सामान्य किसानों और सीमांत किसानों को काफी लाभ हुआ।

प्रत्येक श्रेणी के किसानों को न केवल कृषि योग्य भूमि प्राप्त हुई, बल्कि उन्होंने 'हरित क्रांति' का कतिपय लाभ उठाकर अपनी आमदनी में इजाफा भी किया। सामान्य किसान अब सवर्ण सामंतों की गिरफ्त से बाहर निकल रहा था। यह भी एक सुखद संयोग है कि प्रारंभ के वर्षों में अफसरशाही आज की तरह भ्रष्ट एवं निकम्मी नहीं थी, जिस कारण हर क्षेत्र में प्रगति व विकास दृष्टव्य था।

दक्षिणी एवं दक्षिण-पूर्वी मध्यप्रदेश (आज का छत्तीसगढ़) में शैल व खनिज संपदा के विपुल भंडार होने के कारण भिलाई, बैलाडीला, भरवेली-उकवा, मलाँजखंड आदि नए-नए संयंत्र भी स्थापित किए गए। बिलासपुर, सीधी, छिंदवाड़ा, चिरमिरी आदि क्षेत्रों में कोयले की खदानों ने न केवल आर्थिक मुनाफे दिए, बल्कि कोयला आधारित ताप-विद्युत संयंत्रों की स्थापना के भी अवसर दिए। यह भी गर्व की बात है कि एक समय ऐसा भी था जब मध्यप्रदेश अपनी अतिरिक्त उत्पादित बिजली को हरियाणा जैसे राज्यों को सप्लाई करता था। रायपुर, दुर्ग, रायगढ़ क्षेत्रों में नहरें निकालकर सिंचाई के सुगम साधन उपलब्ध कराए गए, जिस कारण प्रदेश में चावल के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई। मालवा, विदिशा, रायसेन आदि क्षेत्रों में गेहूँ का उत्पादन भी बढ़ा।

1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के फलस्वरूप देश में आर्थिक आजादी का नया दौर शुरू हुआ। पूर्व में जहाँ बैंकों की पूँजी का पूरा लाभ पूँजीपति व इजारेदार उठाते थे, अब समाज के प्रत्येक वर्ग को अपना काम-धंधा शुरू करने के लिए बैंकों से ऋण मिलना सुगम हो गया। परिणामस्वरूप पानवाले, रिक्शे, ताँगेवाले, रेढ़ी चलाकर धंधा करने वाले, हस्तशिल्प कारीगर तथा विभिन्ना प्रकार के निम्न वर्गों को राष्ट्रीयकृत बैंकों से अपना रोजगार शुरू करने के लिए रियायती दरों पर ऋण मिलना प्रारंभ हो गया। बैंकों की इस नई जनप्रिय भागीदारी ने प्रदेश की साधारण जनता को आर्थिक प्रगति के अवसर प्रदान किए। वास्तव में भारत की विकास यात्रा में 1969 का 'बैंकों का राष्ट्रीयकरण' विधेयक सबसे बड़ा मील का पत्थर सिद्ध हुआ।

शिक्षा के क्षेत्र में भी मध्यप्रदेश ने गत साठ वर्षों में अपना प्रगति अभियान त्वरित गति से चलाया। जहाँ पहले मात्र सागर में एक विश्वविद्यालय था, अब प्रत्येक संभाग में (रीवा, भोपाल, रायपुर, इंदौर, ग्वालियर आदि) एक-एक विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। पूरे राज्य में उच्च शिक्षा के विकास के अंतर्गत प्रत्येक जिला मुख्यालय पर शासकीय महाविद्यालय एवं तहसील मुख्यालय पर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की स्थापना की गई तथा प्रत्येक गाँव में प्राथमिक पाठशालाएँ खोली गईं। इसी प्रकार बड़े शहरों में मेडिकल कॉलेज, अभियांत्रिकी महाविद्यालय एवं कृषि महाविद्यालय खोले गए। इस प्रकार शिक्षा के प्रसार के फलस्वरूप प्रदेश की आर्थिक स्थिति में अनुकूल प्रगति हुई।

61वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रदेश की आर्थिक आजादी की बैलेंस शीट (लेखा-जोखा) पर पूरी ईमानदारी एवं न्यायिक ढंग से परिचर्चा करने पर समझ में आता है कि हमने काफी हद तक विकास का मार्ग पार किया है, हम आर्थिक रूप से कुछ हद तक आत्मनिर्भर हुए हैं, लेकिन यह भी याद रखना है कि अभी हमें लंबा रास्ता तय करना है, मंजिल अभी दूर है। आज थमकर यह भी चिंतन करना होगा कि आर्थिक आजादी प्राप्त करने के आज अवसर उपलब्ध हैं क्या? हमारी आर्थिक समस्याएँ जैसे कि गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, अंधविश्वास, महँगाई, कालाबाजारी, भ्रष्टाचार आदि के निवारण के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति बची है क्या? हम सबकी सबसे बड़ी चुनौती है आर्थिक आजादी का लक्ष्य।
(लेखक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में प्राचार्य हैं)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi