- मनीषा जैन
भारतीय सिनेमा ने सांप्रदायिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देने में हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दशकों से राष्ट्रप्रेम की भावना से ओतप्रोत उद्देश्यपूर्ण फिल्में बनाई जा रही हैं। सन् 1940 की फिल्म 'बंधन' से लेकर 'द लीजेंड ऑफ भगतसिंह' तक ऐसी कई फिल्में बनी हैं, जिन्होंने आम जनता की सुप्त देशभक्ति को जागृत करने में अपना योगदान किया है। यहाँ तक कि हमारे श्रेष्ठ देशभक्तिपूर्ण गीत भी फिल्मों से आए हैं। ये गीत आज हमारे राष्ट्रीय लोकाचार के अंग बन गए हैं।
स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान प्रदर्शित फिल्म 'बंधन' (1940) का गीत 'चल-चल रे नौजवान/ रुकना तेरा काम नहीं चलना तेरी शान', पहला लोकप्रिय देशभक्तिपूर्ण गीत माना जाता है। इस गीत में विदेशी शासन से मुक्ति हेतु देश के युवाओं से सहयोग का अप्रत्यक्ष आह्वान किया गया था। कवि प्रदीप के इस गीत को अशोक कुमार और लीला चिटणीस ने गाया था।
वर्ष 1943 में राष्ट्रीयता की भावना अपने चरम पर थी। उस वर्ष आई फिल्म 'किस्मत' के प्रदीप लिखित एक गीत ने देश को झकझोर कर रख दिया था। वह गीत था, 'आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है/ दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है।' इसके संगीतकार थे अनिल बिस्वास।
स्वतंत्रता के एक वर्ष पश्चात आई फिल्म 'शहीद' के गीत 'वतन की राह में वतन के नौजवाँ शहीद हो' ने खलबली मचा दी थी। इसे लिखा था राजा मेहँदी अली खाँ ने। मोहम्मद रफी और खान मस्ताना ने इसे गाया था। धुन बनाई थी गुलाम हैदर ने।
1954 में 'जागृति' नामक बच्चों की फिल्म आई। इस फिल्म के तीन गीत आज भी सुने जाते हैं। वे हैं- 'दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल', 'हम लाए हैं तूफान से किश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के' और 'आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झाँकी हिन्दुस्तान की, इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की'। सभी गीत प्रदीप ने लिखे थे और संगीतकार थे हेमंत कुमार।
राजकपूर की बाल फिल्म 'अब दिल्ली दूर नहीं' (1956) का गीत- 'ये चमन हमारा अपना है, इस देश पे अपना राज है' आज भी लोकप्रिय है। इसे गाया था आशा भोंसले ने और संगीतकार थे दत्ताराम।
1957 में बनी फिल्म 'नया दौर' जिसे अब रंगीन कर फिर प्रदर्शित किया गया है में मस्ती भरा गीत 'ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का' काफी लोकप्रिय है। इसे रफी और बलबीर ने गाया था। इसके गीतकार थे साहिर लुधियानवी।
संगीत निर्देशक नौशाद और गीतकार शकील बदायूँनी के तीन गीत आज भी हम भूले नहीं हैं। वे हैं- 'इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चल के' (गंगा-जमुना)/ 'नन्हा-मुन्ना राही हूँ, देश का सिपाही हूँ'(सन ऑफ इंडिया) और 'अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं' (लीडर)।
देशभक्ति की फिल्मों का जिक्र हो तो मनोज कुमार का नाम भूलना असंभव है। उनकी फिल्म 'उपकार' (1967) का गीत 'मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती' भारत की सोने की चिड़िया वाली पुरानी छबि का सटीक चित्रण है। इसे लिखा था गुलशन बावरा ने और गाया था महेंद्र कपूर ने। फिल्म 'पूरब और पश्चिम' के इंदीवर लिखित गीत 'भारत का रहने वाला हूँ' और 'दुल्हन चली, हाँ पहन चली तीन रंग की चोली' सबको याद है।
भारतीय सिनेमा में युद्ध की पृष्ठभूमि पर अनेक फिल्में बनी हैं। फिल्म 'हकीकत' (1964) भारत-चीन युद्ध पर आधारित थी। इसका गीत 'कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों' देशभक्ति के जज्बे को बखूबी उभारता है। इसके गीतकार थे कैफी आजमी।
बीते जमाने के कुछ और यादगार गीत हैं- 'जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा, वो भारत देश है मेरा' (सिकंदर-ए-आजम)/ 'ऐ वतन-ऐ वतन तुझको मेरी कसम' (प्रेम पुजारी)/ 'ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन, तुझपे दिल कुरबान' (काबुलीवाला) और 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा' (हिन्दुस्तान हमारा)।
पिछले कुछ दशकों से आतंकवाद, सांप्रदायिक दंगे, भ्रष्टाचार और ओछी राजनीति देश के विकास की राह में रोड़ा बने हुए हैं। इन्हें केंद्र में रखकर कई सार्थक फिल्में बनी हैं। लेकिन इन फिल्मों का कोई भी गीत पुराने गीतों जैसी लोकप्रियता हासिल नहीं कर पाया।
फिर भी इन फिल्मों के लोकप्रिय गीत हैं- 'दिल दिया है जाँ भी देंगे, ऐ वतन तेरे लिए (कर्मा), 'भारत हमको जान से प्यारा है' (रोजा), 'वतन वालों वतन ना बेच देना' (इंडियन) और 'जिंदगी मौत ना बन जाए संभालो यारो' (सरफरोश)। युद्ध आधारित फिल्म 'बॉर्डर' का गीत 'हिन्दुस्तान-हिन्दुस्तान... मेरी आन, मेरी शान, मेरी जान हिन्दुस्तान' भी उल्लेखनीय हैं।
'मेरा रंग दे बसंती चोला', 'सरफरोशी की तमन्ना' और 'पगड़ी संभाल जट्टा' ऐसे गीत हैं, जो तीन फिल्मों में थोड़े फेरबदल के साथ लिए गए हैं। वे फिल्में हैं- शहीद (1965)/ द लीजेंड ऑफ भगतसिंह (2002) और 23 मार्च 1931 शहीद (2002)। द लीजेंड ऑफ भगतसिंह का गीत 'देश मेरे, देश मेरे मेरी जान है तू' बेहतर बन पड़ा है।
पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के साथ भारतीय सिनेमा में देशभक्तिपूर्ण हल्के-फुल्के गीतों को जगह मिली है। 'ईस्ट या वेस्ट इंडिया इज द बेस्ट' (जुड़वाँ), 'ये दुनिया इक दुल्हन.... आय लव माय इंडिया' (परदेस) और 'जहाँ पाँव में पायल... इट हैपन्स ओनली इन इंडिया'(परदेसी बाबू) कुछ ऐसे ही गीत हैं।
एक ऐसा गीत है, जो किसी फिल्म में नहीं फिल्माया गया, लेकिन लोकप्रियता की पायदान पर शीर्ष पर है। वह गीत है, 'ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी'। इसे लता मंगेशकर ने अपनी दर्दभरी आवाज में हजारों दर्शकों के बीच पंडित नेहरू के समक्ष गाया था। इसे लिखा था प्रदीप ने और संगीतकार थे सी. रामचंद्र।
आज गैर फिल्मी अलबमों के गीत भी अपनी विशेष पहचान रखते हैं। आलिशा चिनॉय का 'मेड इन इंडिया' और ए.आर. रहमान का 'वंदे मातरम्' एवं 'माँ तुझे सलाम' ऐसे ही कुछ गीत हैं। उम्मीद है कि भारतीय सिनेमा इसी तरह अपनी फिल्मों और गीतों के माध्यम से देशभक्ति की अलख जगाए रखेगा।