60 वर्ष स्त्रियों की आजादी के

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यूँ तो सामंती जकड़नों और स्त्रियों के प्रति पितृसत्‍तात्‍मक रूढिवादी मूल्‍यों की जड़ें आजादी के पहले ही दरकने लगी थीं, लेकिन आजाद भारत के साठ सालों में यह और तेजी के साथ टूटी हैं। स्त्रियों ने उन सभी मोर्चों पर अपनी उपस्थिति दर्ज की है, दो दशक पहले जिसकी कल्‍पना भी असंभव थी। हालाँकि ये परिवर्तन आँखें मूँदकर सिर्फ गर्व किए जाने के योग्‍य हों, ऐसा नहीं है। उपलब्धियों का दूसरा चेहरा स्‍त्री के वस्‍तुकरण, उसे उत्‍पाद और भोग की वस्‍तु बना दिए जाने की शक्‍ल में भी सामने आया है, लेकिन इससे उपलब्धियों का वजन कम नहीं हो जाता।

एक नजर आजाद भारत में सूरज की ओर बढते स्त्रियों के कदमों की ओर और उन महिलाओं पर, जिन्‍हें अपने मुल्‍क पर और मुल्‍क को जिन पर नाज है।

अरुँधती रॉय : सामाजिक आंदोलन में सक्रिय प्रख्‍यात लेखिका, जिन्‍हें अपनी अविस्‍मरणीय कृति ‘द गॉड ऑफ स्‍मॉल थिंग्‍ स ’ के लिए बुक र
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पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया। इस पुरस्‍कार की सारी राशि अरूँधति ने ‘नर्मदा बचाओ आंदोल न ’ को दान कर दी ।

कुर्रतुल ऐन हैदर : उर्दू की प्रख्‍यात लेखिका कुर्तुलऐन हैदर ने साहित्‍य को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया और ‘आग का दरिय ा ’ और ‘निशांत के सहयात्र ी ’ जैसी कालजयी रचनाओं के रूप में साहित्‍य को ऐसी विरासत दी, जिसके समकक्ष खड़ा करने लायक दूसरी चीज हम अभी तक नहीं रच पाएँ हैं. कुर्तुल ऐन हैदर नि:संदेह विगत सदी की सबसे महान महिला लेखिका हैं।

सोनल मानसिंह : सोनल मानसिंह ने नृत्‍य को अपनी साधना बनाया और स्‍वतंत्र भारत में एक महान नर्तकी के रूप में अपार ख्‍याति अर्जित
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की। उन्‍होंने पूरी दुनिया में एक नृत्‍यांगना के रूप में अपना स्‍थान बनाया और अन्‍य स्त्रियों के लिए ललित कलाओं का क्षेत्र और उन्‍नत किया ।

कुंजू रानी देवी : कुंजू रानी देवी ने 18वें कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत की ओर से 48 किलोग्राम वजन की श्रेणी में पहला स्वर्ण पदक जीता। मार्च 2006 में यह प्रतियोगिता मेलबर्न में अयोजित हुई थी।

लता मंगेशकर : लता मँगेशकर पिछले पाँच दशकों से हिंदुस्‍तान की आवाज हैं। उन्‍हें स्‍वर साम्राज्ञी भी कहते हैं। भारत रत्‍न और पद्म विभूष ण
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आदि सम्‍मानों से अलंकृत लता जी ने हिंदी, मराठी, बांग्‍ला समेत कई भाषाओं में हजारों गीत गाए और कई बार राष्‍ट्रीय पुरस्‍कारों से सम्‍मानित हुईं।

कोनेरू हम्पी : महिलाओं की शतरंज खिलाडि़यों की श्रेणी में कोनेरू हम्पी का स्थान विश्‍व में दूसरा है। इन्होंने मात्र 15 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर का खिताब जीता था।

रीता फारिया : भारतीय स्त्रियों की कला और प्रतिभा के साथ-साथ उनके सौंदर्य की चमक ने भी हिंदुस्‍तान को पूरी दुनिया में रौशन किया।
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1966 में रीता फारिया को पहली भारतीय विश्‍व सुंदरी होने का गौरव हासिल हुआ। रीता फारिया की राह चलकर आगे बहुत-सी महिलाओं ने अपने सौंदर्य का परचम लहराया।

अंजलि वेद पाठक : भारत की निशानेबाज अंजलि पाठक ने 2002 में मेनचेस्टर में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में चार स्वर्ण पदक जीते थे, जिसमें दो व्यक्तिगत और दो समूह में थे।। 2000 में इन्हें अर्जुन पुरस्कार और 2002-03 का राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार बीना मॉल के साथ सम्मिलित रूप से दिया गया था।

मदर टेरेसा: त्‍याग, दया और सेवा की साक्षात प्रतिमूर्ति मदर टेरेसा का पूरा जीवन गरीबों और पीडि़तों की सेवा को स‍मर्पित रहा। इन महा न
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सेवा कार्यों के लिए उन्‍हें 1979 में नोबल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया ।

सुष्मिता सेन: 1994 में मिस इंडिया सुष्मिता सेन दुनिया की पहली ब्रम्‍हांड सुंदरी बनी। उसके बाद तो सौंदर्य प्रतियोगिताओं में जैसे भारतीय स्त्रियों की बाढ़-सी आ गई। सुष्मिता ने अभिनय में भी नाम कमाया और अनूठे, आकर्षक व्‍यक्तित्‍व के लिए जानी जाती हैं।

मल्लिका साराभाई: मल्लिका साराभाई कुचीपुड़ी और भरतनाट्यम की जानी-मानी नृत्यांगना हैं। साथ ही वह प्रख्‍यात नृ्त्य-नि‍र्देशिका भी हैं
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और कई सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं। इन्होंने पीटर ब्रुक्स की फिल्म ‘महाभार त’ में द्रौपदी का किरदार निभाया था। दो नृत्यों में पारंगत साराभाई को अनेक भारतीय एवं विदेशी पुरस्कारों से सम्‍मानित किया जा चुका है ।

कल्‍पना चावला: भारतीय मूल की कल्‍पना चावला को अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला होने का गौरव हासिल हैं। 1 फरवरी, 2003 को अंतरिक्ष से लौटते हुए किसी तकनीकी खराबी के कारण विमान क्षतिग्रस्‍त हो जाने की वजह से कल्‍पना की मृत्‍यु हो गई। कल्‍पना चावला करोड़ों भारतीय स्त्रियों के लिए प्रेरणा और उस राह का प्रकाश-स्‍तंभ हैं, जिस पर चलकर स्त्रियाँ अंतरिक्ष तक पहुँचने के स्‍वप्‍न देख रही हैं ।

यामिनी कृष्‍णमूर्ति : सन 1940 में जन्मी यामिनी कृष्‍णमूर्ति ने अपना पहला नृत्य 1957 में प्रस्तुत किया था। वह कुचीपुड़ी और भरतनाट्‍यम नृत्यों पर समान अधिकार रखती हैं। इन्हें 1968 में पद्‍मश्री और 2001 में पद्‍मभूषण से सम्मानित किया गया।


कर्णम मल्‍लेश्‍वरी: भारत की ओर से कर्णम मल्‍लेश्‍वरी को सन् 2000 सिडनी में आयोजित ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारोत्तोलन में शानदा र
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प्रदर्शन के लिए कांस्य पदक मिला। इसके पहले भारोत्‍तोलन जैसे क्षेत्र पर सिर्फ पुरुषों का विशेषाधिकार था। कर्णम मल्‍लेश्‍वरी ने इस विशेषाधिकार को तोड़ा और अपनी जगह बनाई। 1995-96 में कर्णम मल्‍लेश्‍वरी को राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार और 1999 में पद्‍मश्री पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया।

सानिया मिर्जा: भारतीय महिला टेनिस को विश्‍व में एक नई पहचान दिलाने वाली सानिया मिर्जा 2000 के यूएस ओपन में पहुँचने वाली
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पहली भारतीय खिलाड़ी हैं। एकल रैंकिग में विश्व में सानिया का स्थान 29वाँ है और ‍‍मिश्रित में 24वाँ। वर्ष 2003 में सानिया ने विम्बलडन टूर्नामेंट का युगल खिताब और वर्ष 2006 के दोहा एशियन गेम्स में सिल्वर मेडल जीता था।

अपर्णा सेन: जानी-मानी अभिनेत्री और फिल्‍म निर्देशिका अपर्णा सेन अपनी पहली ही फिल्‍म ’39 चौरंगी ले न ’ से चर्चा में आईं, जब इस
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फिल्‍म के लिए उन्‍हें सर्वश्रेष्‍ठ निर्देशक का राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार मिला। इस फिल्‍म की पटकथा भी अपर्णा ने खुद लिखी थी। इसके बाद उन्‍होंने ‘परम ा ’, ‘मि. एंड मिसेज अय्य र ’ और ’15 पार्क एवेन्‍य ू ’ जैसी लीक से हटकर फिल्‍मों का निर्माण किया। कई देशी और विदेशी पुरस्‍कारों ने सम्‍मानित अपर्णा सेन ने फिल्‍म निर्माण और निर्देशन की एक नई धारा का सूत्रपात किया ।

किरन देसाई: 3 सितंबर, 1971 को जन्‍मीं भारतीय मूल की प्रख्‍यात लेखिका किरन देसाई को वर्ष 2006 में उनकी कृति ‘इनहेरिटेंस ऑफ लॉ स ’ के लिए प्रति‍ष्ठित मैन बुकर पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया। इस किताब को नैश्‍नल बु‍क क्रिटिक सर्कल अवॉर्ड भी मिला। भारतीय साहित्‍य की समृद्धि में किरन देसाई का महत्‍वपूर्ण योगदान है ।

झुंपा लाहिड़ी: भारतीय मूल की ही एक और अँग्रेजी लेखिका झुंपा लाहिड़ी को वर्ष 2000 में ‘इंटरप्रेटर ऑफ मैलोडी ज ’ के लिए पुलित्‍जर पुरस्‍कार से सम्‍मान किया गया। यह सम्‍मान पाने वाली वह पहली भारतीय लेखिका थीं। अभी हाल ही में उनकी पुस्‍तक ‘द नेमसे क ’ पर मीरा नायर ने फिल्‍म बनाई, जिसने देश-विदेश में काफी सराहना और पुरस्‍कार बटोरे ।

मीरा नायर: भारतीय मूल की फिल्‍म निर्देशक मीरा नायर ‘सलाम बॉम्‍ब े ’ से चर्चा में आईं, जब इस फिल्‍म को विदेशी भाषा की फिल्‍मों क ी
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श्रेणी में ऑस्‍कर के लिए नामांकित किया गया। उनकी फिल्‍म ‘मॉनसून वेडिं ग ’ को वेनिस फिल्‍म फेस्टिवल में प्रतिष्ठित गोल्‍डन लॉयन अवॉर्ड से सम्‍मानित किया गया। अभी हाल ही में आई उनकी फिल्‍म ‘नेमसे क ’ को भी दुनिया भर में जबर्दस्‍त प्रशंसा मिली।

मेधा पाटकर: उत्‍पीडितों और विस्‍थापितों के लिए समर्पित मेधा पाटकर का जीवन शक्ति, ऊर्जा और वैचारिक उदात्‍तता की जीती-जागती मिसाल है। नर्मदा बाँध की ऊँचाई बढ़ाने के निर्णय के खिलाफ मेधा ने 20 दिनों तक अनशन किया। नर्मदा बचाओ आंदोलन का नेतृत्‍व करते हुए वह कई बार जेल भी गईं। अरूँधती रॉय भी मेधा पाटकर के साथ इस आंदोलन में सक्रिय हैं।

एम.एस. सुब्‍बुलक्ष्‍मी: कर्नाटक संगीत की प्रख्‍यात गायिका एम.एस. सुब्‍बुलक्ष्‍मी के बगैर संगीत वैसे ही अधूरा है, जैसे पीले फूलों के बगैर
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वसंत। अपनी जादुई आवाज से करोड़ों के हृदय पर राज करने वाली सुब्‍बुलक्ष्‍मी पहली ऐसी महिला थीं, जिन्‍हें संगीत के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान के लिए भारत रत्‍न से सम्‍मानित किया गया। इसके अलावा पद्म भूषण, पद्म विभूषण और कालिदास सम्‍मान सहित भारत और विदेशों में अनेकों पुरस्‍कारों से उन्‍हें अलंकृत किया गया। एम.एस. सुब्‍बुलक्ष्‍मी हमारे देश और स्त्रियों का गौरव हैं ।

शुभा मुद्‍गल: कुमार गंधर्व के बाद भारत में उनकी गायन परंपरा को जीवित रखने का काम किया है शुभा मुद्‍गल ने। गुरु रामाश्रय झा से संगीत की विधिवत शिक्षा लेने के बाद उन्‍होंने शास्‍त्रीय संगीत को एक वर्ग विशेष की सीमाओं से बाहर निकालकर व्‍यापक पैमाने पर लोकप्रिय बनाने का काम किया ।

अनुष्‍का शंकर: प्रख्‍यात सितारवादक पंडित रविशंकर की पुत्री अनुष्‍का शंकर ने बहुत कम उम्र में ही सितार और संगीत को अपना जीव न
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समर्पित किया और आज बहुत कम आयु में ही वह भारत और पूरे विश्‍व सबसे कम उम्र की सितारवादक के रूप में प्रतिष्‍ठा अर्जित कर चुकी हैं। अनुष्‍का ने भी सितार के शास्‍त्रीय स्‍वरूप को कुछ आधुनिक रूप में प्रस्‍तुत करने का प्रयास किया है ।

बछेंद्री पाल: स्‍वतंत्र भारत में आकाश-पर्वत, सब जगह स्त्रियाँ अपनी उपस्थि‍ति दर्ज करवा रही थीं। इसी क्रम में बछेंद्री पाल को एवरेस्‍ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला का गौरव प्राप्‍त हुआ। उनके पहले यह क्षेत्र पुरुषों का का ही माना जाता था, लेकिन बछेंद्री पाल ने इस एकाधिकार को तोड़ा और पर्वत तक स्त्रियों की विजय का परचम लहराया ।

अंजू बॉबी जॉर्ज: इन्होंने 2003 में पेरिस में आयोजित विश्व एथलीट प्रतियोगिता में लंबी कूद की श्रेणी में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा।
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वर्ष 2002-03 में अर्जुन अवार् ड, 2003-04 में राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्‍कार औ र 2004 में पद्मश्री से सम्‍मानित किया गया। वर्तमान में अंजू आईएएएफ की विश्व रैंकिंग में 28वें नंबर की खिलाड़ी हैं ।

पीटी ऊषा: 1982 में इन्होंने दिल्ली में अयोजित एशियाड की 100 मी. और 200 मी. की दौड़ प्रतियोगिता में रजत पदक जीता। कुवैत मे ं एशियन ट्रैक एण्ड फील्ड चैंपियनशिप की 400 मीटर की दौड़ में स्‍पर्ण पदक हासिल किया। 1984 में लॉस एंजेल्स में आयोजित ओलंपिक के फाइनल में पहुँचने वाली वह पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं। 1985 के जकार्ता एशियन मीट में उन्‍होंने पाँच स्वर्ण पदक जीते ।

किरण बेदी: हिंदुस्‍तान की पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनने का गौरव किरण बेदी को प्राप्‍त है। तिहाड़ जेल में किए गए सुधार कार्यो ं और जेल को वास्‍तव में एक सुधार गृह का रूप देने में किरण बेदी ने महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाईं। किरण भारतीय समाज में असंख्‍य स्त्रियों के लिए साहस, शक्ति और सफलता की बुलंदियों तक पहुँचने की प्रेरणा स्रोत रहीं। अपने महत्‍वपूर्ण कार्यों के लिए किरण बेदी को एशिया के सबसे प्रतिष्ठित रेमन मेग्‍सेसे अवॉर्ड से सम्‍मानित किया गया ।

बेगम अख्‍तर: गजल की दुनिया का अमिट हस्‍ताक्षर बेगम अख्‍तर की आवाज की क‍शिश और गहराई आ भी गजलप्रेमियों के दिलों में ठहरी हुई है। बेगम अख्‍तर ने गजल गायिकी के क्षेत्र में महिलाओं को नया मुकाम दिलवाया। वह नए भारत की उन दुर्लभ स्त्रियों में से हैं, जिन्‍होंने अपनी विशिष्‍ट प्रतिभा और अदायगी से विश्‍व में भारत का मस्‍तक ऊँचा उठाया ।

शबाना आजमी: हिंदुस्‍तान में समानांतर सिनेमा की जानी-मानी अभिनेत्री और समाज सेविका शबाना आजमी ने अपने पिता के समाजवादी मूल्‍यों के लिए लड़ते हुए अपना जीवन समर्पित किया। अंकुर, मंडी, अर्थ, स्‍पर्श और शतरंज के खिलाड़ी जैसे कला सिनेमा के जरिए शबाना ने हिंदी फिल्‍मों और कला सिनेमा में स्त्रियों के अवदान को रेखांकित करने में महती भूमिका निभाई। 5 बार राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कारों के अतिरिक्‍त उन्‍हें पद्मश्री से भी सम्‍मानित किया जा चुका है।

प्रस्‍तुति : मनीषा पांडेय
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