Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

शीतला सप्तमी- अष्टमी का महत्व, स्वच्छता की देवी मानी जाती हैं मां शीतला, 10 अनजानी बातें

हमें फॉलो करें शीतला सप्तमी- अष्टमी का महत्व, स्वच्छता की देवी मानी जाती हैं मां शीतला, 10 अनजानी बातें
, शनिवार, 19 मार्च 2022 (16:13 IST)
Sheetala Ashtami 2022: शीतलाष्टमी शीतला सप्तमी और अष्‍टमी के दिन माता शीतला की पूजा और अर्चना करते हैं। इस पर्व को बसोरा या बसोड़ भी कहते हैं। शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। इसीलिए बाजी भोजन करने की परंपरा है। कौन है मां शीतला, आओ जानते हैं अनजानी 10 बातें।
 
 
1. स्कंद पुराण अनुसार देवी शीतला चेचक जैसे रोग की देवी हैं, यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी पर अभय मुद्रा में विराजमान हैं। 
 
2. शीतला माता के संग ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणुनाशक जल होता है।
 
3. कहते हैं यह शक्ति अवतार हैं और भगवान शिव की यह जीवनसंगिनी है। 
 
4. पौराणिक कथा के अनुसार माता शीतला की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से हुई थी। 
 
5. स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना स्तोत्र को शीतलाष्टक के नाम से व्यक्त किया गया है। मान्यता है कि शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव जी ने लोक कल्याण हेतु की थी।
 
 
6. गुड़गांव गुरुग्राम में शीतला माता का प्राचीन मंदिर स्थित है। देश के सभी प्रदेशों से श्रद्धालु यहां मन्नत मांगने आते हैं। यहां के शीतला माता मंदिर की कहानी महाभारत काल से जुड़ी हुई है। महाभारत के समय में भारतवंशियों के कुल गुरु कृपाचार्य की बहन और महर्षि शरद्वान की पुत्री शीतला देवी (गुरु मां) के नाम से गुरु द्रोण की नगरी गुड़गांव में शीतला माता की पूजा होती है।  लोगों की मान्यता है कि यहां पूजा करने से शरीर पर निकलने वाले दाने, जिन्हें स्थानीय बोलचाल में (माता) कहते हैं, नहीं निकलते।
webdunia
7. देवलोक से धरती पर माता शीतला अपने साथ भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर को अपना साथी मानकर लाईं थी। तब उनके हाथों में दाल के दाने भी थे। उस समय के राजा विराट ने माता शीतला को अपने राज्य में रहने के लिए स्थान नहीं दिया तो माता क्रोधित हो गई। उस क्रोध की ज्वाला से राजा की प्रजा को लाल लाल दाने निकल आए और लोग गर्मी के मारे मरने लगे। तब राजा विराट ने माता के क्रोध को शांत करने के लिए ठंडा दूध और कच्ची लस्सी उन पर चढ़ाई। तभी से हर साल शीला अष्‍टमी पर लोग मां का आशीर्वाद पाने के लिए ठंडा भोजन माता को चढ़ाने लगे।
 
 
8. शीतला पूजन में शुद्धता का पूर्ण ध्यान रखा जाता है। इस विशिष्ट उपासना में शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व देवी को भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग बसौड़ा उपयोग में लाया जाता है।
 
9. हिंदू व्रतों में केवल शीतलाष्टमी का व्रत ही ऐसा है जिसमें बासी भोजन किया जाता है। इसका विस्तृत उल्लेख पुराणों में मिलता है। शीतला माता का मंदिर वटवृक्ष के समीप ही होता है। शीतला माता के पूजन के बाद वट का पूजन भी किया जाता है। ऐसी प्राचीन मान्यता है कि जिस घर की महिलाएं शुद्ध मन से इस व्रत को करती है, उस परिवार को शीतला देवी धन-धान्य से पूर्णकर प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती हैं।
 
 
10. इस दिन घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता। एक दिन पहले ही भोजन बनाकर रख देते हैं। फिर दूसरे दिन प्रात:काल महिलाओं द्वारा शीतला माता का पूजन करने के बाद घर के सब व्यक्ति बासी भोजन को खाते हैं। जिस घर में चेचक से कोई बीमार हो उसे यह व्रत नहीं करना चाहिए।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Rang Panchami 2022 : इस रंग पंचमी पर जानिए आपकी राशि का कौनसा है रंग