होली 2022: होली का त्योहार हम कई कारणों से मनाते हैं जिसमें एक कारण है विष्णु भक्त प्रहलाद की कथा। कहते हैं कि जिस दिन हरिण्यकश्यप की बहन होलिका भक्त प्रहलाद को गोदी में लेकर अग्नि कुंड में बैठने वाली थी, उस दिन नगर के सभी लोगों ने अपने घर-घर में अग्नि प्रज्वलित कर भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए अग्निदेव से प्रार्थना की थी। अग्निदेव ने लोगों की प्रार्थना को स्वीकार किया और होलिका द्वारा अपने वरदान का दुरुपयोग करने के कारण उन्होंने भक्त प्रलाहद को जीवन दान दिया और होलिका उसी अग्नि में जलकर भस्म हो गई। कहते हैं कि प्रहलाद को बचाने की यही प्रार्थना और अग्नि पूजा ने कालक्रमानुसार सामुदायिक पूजा का रूप ले लिया और अब गली-गली में होलिका दहन किया जाता है।
संपदा देवी का पूजन :
कहते हैं कि इस धन-धान्य की देवी संपदाजी की पूजा होली के दूसरे दिन यानी धुलेंडी के दिन की जाती है। इस दिन महिलाएं संपदा देवी के नाम का डोरा बांधकर व्रत रखती हैं तथा कथा सुनती हैं। मिठाई युक्त भोजन से पारण करती है। इस बाद हाथ में बंधे डोरे को वैशाख माह में किसी भी शुभ दिन इस डोरे को शुभ घड़ी में खोल दिया जाता है। यह डोरा खोलते समय भी व्रत रखकर कथा पढ़ी या सुनी जाती है।
संपदा देवी की पूजन विधि:
- सर्वप्रथम पूजा की थाली में सारी पूजन सामग्री सजा लें।
- संपदा देवी का सोलह तार के सूत का डोरा लेकर इसमें सोलह गठानें लगाएं।
- गठानें लगाने के बाद डोरे को हल्दी में रंग लें।
- इसके बाद चौकी पर रोली-चावल के साथ कलश स्थापित कर उस पर डोरा बांध दें।
- इसके बाद कथा पढ़ें या सुनें।
- कथा के बाद संपदा देवी का पूजन करें।
- इसके बाद संपदा देवी का डोरा धारण करें।
- पूजन के बाद सूर्य के अर्घ्य दें।
देवी संपदाजी की कथा:
एक समय की बात है। राजा नल अपनी पत्नी दमयंती के साथ बड़े प्रेम से राज्य करता था। होली के अगले दिन एक ब्राह्मणी रानी के पास आई। उसने गले में पीला डोरा बांधा था। रानी ने उससे डोरे के बारे में पूछा तो वह बोली- 'डोरा पहनने से सुख-संपत्ति, अन्न-धन घर में आता है।' रानी ने भी उससे डोरा मांगा। उसने रानी को विधिवत डोरा देकर कथा कही।
रानी के गले में डोरा बंधा देख राजा नल ने उसके बारे में पूछा। रानी ने सारी बात बता दी। राजा बोले- 'तुम्हें किस चीज की कमी है? इस डोरे को तोड़कर फेंक दो।' रानी ने देवता का आशीर्वाद कहकर उसे तोड़ने से इंकार कर दिया। पर राजा ने डोरा तोड़कर फेंक दिया। रानी बोली- 'राजन्! यह आपने ठीक नहीं किया।'
उसी रात राजा के स्वप्न में दो स्त्रियां आईं। एक स्त्री बोली- 'राजा! मैं यहां से जा रही हूं।' दूसरी स्त्री बोली- 'राजा मैं तेरे घर आ रही हूं।' स्वप्न का यही क्रम 10-12 दिन तक चलता रहा। इससे राजा उदास रहने लगा। रानी ने उदासी का कारण पूछा तो राजा ने स्वप्न की बात बता दी। रानी ने राजा से उन दोनों स्त्रियों का नाम पूछने को कहा। तब राजा ने उनसे उनके नाम पूछे तो जाने वाली स्त्री ने अपना नाम 'लक्ष्मी' तथा आने वाली स्त्री ने 'दरिद्रता' बताया।
लक्ष्मी के जाते ही सब सोना-चांदी मिट्टी हो गया। रानी सहायता के लिए अपनी सखियों के पास गई। पर उनको फटेहाल देख कोई भी उनसे नहीं बोला। दुःखी मन से राजा-रानी पांच बरस के राजकुंवर के साथ जंगल में कंदमूल खाकर अपने दिन बिताने लगे। चलते-चलते राजकुंवर को भूख लगी तो रानी ने कहा- 'यहां पास ही एक मालन रहती है। जो मुझे फूलों को हार दे जाती थी। उससे थोड़ा छाछ-दही मांग लाओ।' राजा मालन के घर गया। वह दही बिलो रही थी। राजा के मांगने पर उसने कहा- 'हमारे पास तो छाछ-दही कुछ भी नहीं है।'
राजा खाली हाथ लौट आया। आगे चलने पर एक विषधर ने कुंवर को डस लिया और राजकुमार का प्राणांत हो गया। विलाप करती रानी को राजा ने धैर्य बंधाया। अब वे दोनों आगे चले। राजा दो तीतर मार लाया। भूने हुए तीतर भी उड़ गए। उधर राजा स्नान कर धोती सुखा रहा था कि धोती उड़ गई। रानी ने अपनी धोती फाड़कर राजा को दी। वे भूखे-प्यासे ही आगे चल दिए। मार्ग में राजा के मित्र का घर था। वहां जाकर उसने मित्र को अपने आने की सूचना दी। मित्र ने दोनों को एक कमरे में ठहरवाया। वहां मित्र ने लोहे के औजार आदि रखे हुए थे।
दैवयोग से वे सारे औजार धरती में समा गए। चोरी का दोष लगने के कारण वे दोनों रातो-रात वहां से भाग गए। आगे चलकर राजा की बहन का घर आया। बहन ने एक पुराने महल में उनके रहने की व्यवस्था की। सोने के थाल में उन्हें भोजन भेजा, पर थाली मिट्टी में बदल गई। राजा बड़ा लज्जित हुआ। थाल को वहीं गाड़कर दोनों फिर चल पड़े। आगे चलकर एक साहूकार का घर आया। वह साहूकार राजा के राज्य में व्यापार करने के लिए जाता था। साहूकार ने भी राजा को ठहरने के लिए पुरानी हवेली में सारी व्यवस्था कर दी। पुरानी हवेली में साहूकार की लड़की का हीरों का हार लटका हुआ था। पास ही दीवार पर एक मोर अंकित था। वह मोर ही हार निगलने लगा। यह देखकर राजा-रानी वहां से भी चले गए।
अब रानी बोली- 'किसी के घर जाने के बजाए जंगल में लकड़ी काट-बेचकर ही हम अपना पेट भर लेंगे।' रानी की बात से राजा सहमत हुआ। अतः वे एक सूखे बगीचे में जाकर रहने लगे। राजा-रानी के बाग में जाते ही बाग हरा-भरा हो गया। बाग का मालिक भी बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने देखा वहां एक स्त्री-पुरुष सो रहे थे। उन्हें जगाकर बाग के मालिक ने पूछा- 'तुम कौन हो?' राजा बोला- 'मुसाफिर हैं. मजदूरी की खोज में इधर आए हैं। यदि तुम रखो तो यहीं हम मेहनत-मजदूरी करके पेट पाल लेंगे।' दोनों वहीं नौकरी करने लगे।
एक दिन बाग की मालकिन संपदा देवी की कथा सुन डोरा ले रही थी। रानी के पूछने पर उसने बताया कि यह संपदा देवी का डोरा है। रानी ने भी कथा सुनी। डोरा लिया। राजा ने फिर पत्नी से पूछा कि यह डोरा कैसा बांधा है? तो रानी बोली- 'यह वही डोरा है जिसे आपने एक बार तोड़कर फेंक दिया था। उसी के कारण संपदा देवी हम पर नाराज हैं।' रानी फिर बोली- 'यदि संपदा मां सच्ची हैं तो फिर हमारे पहले के दिन लौट आएंगे।'
उसी रात राजा को पहले की तरह स्वप्न आया। एक स्त्री कह रही है- 'मैं जा रही हूं।' दूसरी कह रही है- 'राजा! मैं वापस आ रही हूं' राजा ने दोनों के नाम पूछे तो आने वाली ने अपना नाम 'लक्ष्मी' और जाने वाली ने 'दरिद्रता' बताया। राजा ने लक्ष्मी से पूछा अब जाओगी तो नहीं? लक्ष्मी बोली- यदि तुम्हारी पत्नी संपदाजी का डोरा लेकर कथा सुनती रहेगी तो मैं नहीं जाऊंगी।
यदि तुम डोरा तोड़ दोगे तो चली जाऊंगी। बाग की मालकिन जब वहां की रानी को हार देने जाती तो दमयंती हार गूंथकर देती। हार देखकर रानी बड़ी प्रसन्न हुई। उसने पूछा कि हार किसने बनाया है तो मालन ने कहा- 'कोई पति-पत्नी बाग में मजदूरी करते हैं। उन्होंने ही बनाया है।' रानी ने मालन को दोनों परदेसियों के नाम पूछने को कहा। उन्होंने अपना नाम नल-दमयंती बता दिया। मालन दोनों से क्षमायाचना करने लगी। राजा ने उससे कहा- 'इसमें तुम्हारा क्या दोष है। हमारे दिन ही खराब थे।'
अब दोनों अपने राजमहलों की तरफ चले। राह में साहूकार का घर आया। वह साहूकार के पास गया। साहूकार ने नई हवेली में उनके ठहरने का प्रबंध किया तो राजा बोला- 'मैं तो पुरानी हवेली में ही ठहरूंगा।' वहां साहूकार ने देखा दीवार पर चित्रित मोर नौलखे हार उगल रहा था। साहूकार ने राजा के पैर पकड़ लिए। राजा ने कहा- 'दोष तुम्हारा नहीं। मेरे दिन ही बुरे थे।'
राजा आगे चलकर बहन के घर पहुंचा। बहन ने नए महल में ही रहने की जिद की। पैरों के नीचे की धरती खोदी तो हीरों से जड़ित थाल वहां से निकल आया। राजा ने बहन को वह थाल भेंट स्वरूप दिया। राजा आगे चल मित्र के घर पहुंचे तो उसने नए मकान में ठहरने की व्यवस्था की, पर राजा पुराने कमरे में ही ठहरा। वहीं मित्र के लोहे के औजार मिल गए। आगे चले तो नदी किनारे जहां राजा की धोती उड़ गई थी वह एक वृक्ष से लटकी हुई थी। वहां नहा-धोकर धोती पहने राजा आगे चला तो देखा कि कुंवर खेल रहा है।
मां-बाप को देखकर उसने उनके पैर छुए। नगर में पहुंचकर राजा की मालन दूर्बा लेकर आई तो राजा बोला- 'आज दूर्बा लेकर आ रही हो उस दिन छाछ के लिए मना कर दिया था।' रानी ने राजा से कहा- 'वह तो तुम्हारे बुरे दिनों का प्रभाव था।' महलों में गए। रानी की सखियां धन-धान्य से भरे थाल लिए गीत गाती आईं। नौकर-चाकर सब पहले के समान ही आ गए। संपदाजी का डोरा बांधने के कारण ही यह सब फल प्राप्त हुआ। इसलिए सभी को श्रद्धापूर्वक मां संपदाजी की पूजा करनी चाहिए और स्त्रियों को कथा-पूजन कर डोरा धारण करना चाहिए।