Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

Holi 2023 : होलाष्टक कब से लगेगा, जानिए 8 दिन क्यों माने जाते हैं अशुभ

हमें फॉलो करें Holi 2023 : होलाष्टक कब से लगेगा, जानिए 8 दिन क्यों माने जाते हैं अशुभ
, सोमवार, 20 फ़रवरी 2023 (02:49 IST)
Holashtak : होलाष्टक के आठ दिन के समय को अशुभ माना जाता है। इस दिन किसी भी प्रकार का कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है। होलिका दहन के दिन होलाष्टक समाप्त होता है इसके बाद होली मनाई जाती है। होली मनाने का अर्थ है तब रंगोत्सव के साथ ही अच्छे अच्छे पकवान बनाकर खाए जाते हैं। आओ जानते हैं कि वर्ष 2023 में कब से प्रारंभ होगा होलाष्टक और इन 8 दिनों को क्यों माना जाता है अशुभ।
 
होलाष्टक कब से कब तक है | Holashtak kab se kab tak hai-
 
होलाष्टक का आरंभ- 27 फरवरी 2023 को सोमवार के दिन से होगा।
होलाष्टक समाप्त- 07 मार्च 2023 को मंगलवार के दिन होगा।
 
8 दिन क्यों माने जाते हैं अशुभ?
 
भक्त प्रहलाद की पीड़ा : भक्त प्रहलाद को उसके पिता ने हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र की भक्ति को भंग करने और उसका ध्यान अपनी ओर करने के लिए लगातार 8 दिनों तक तमाम तरह की यातनाएं और कष्ट दिए थे। इसलिए कहा जाता है कि, होलाष्टक के इन 8 दिनों में किसी भी तरह का कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। यह 8 दिन वहीं होलाष्टक के दिन माने जाते हैं। होलिका दहन के बाद ही जब प्रहलाद जीवित बच जाता है, तो उसकी जान बच जाने की खुशी में ही दूसरे दिन रंगों की होली या धुलेंडी मनाई जाती है।
 
मौसम परिवर्तन : ज्योतिष मान्यता के अनुसार इस दिन से मौसम परिवर्तन होता है, सूर्य का प्रकाश तेज हो जाता है और साथ ही हवाएं भी ठंडी रहती है। ऐसे में व्यक्ति रोग की चपेट में आ सकता है और मन की स्थिति भी अवसाद ग्रस्त रहती है। इसीलिए मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं। हालांकि होलाष्टक के आठ दिनों को व्रत, पूजन और हवन की दृष्टि से अच्छा समय माना गया है।
webdunia
आठ ग्रह होते हैं उग्र : ज्योतिष विद्वानों के अनुसार अष्टमी को चंद्रमा, नवमी तिथि को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र और द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव के हो जाते हैं। इन ग्रहों के निर्बल होने से मनुष्य की निर्णय क्षमता क्षीण हो जाती है। इस कारण मनुष्य अपने स्वभाव के विपरीत फैसले कर लेता है। यही कारण है कि व्यक्ति के मन को रंगों और उत्साह की ओर मोड़ दिया जाता है। इसलिए शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। होलाष्टक के आठ दिनों को व्रत, पूजन और हवन की दृष्टि से अच्छा समय माना गया है।
 
कामदेव को किया था भस्म : राजा हिमालय की पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान भोलेनाथ से हो जाए परंतु शिव जी अपनी तपस्या में लीन थे। तब कामदेव पार्वती की सहायता के लिए आए। उन्होंने प्रेम बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई। शिव जी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी। कामदेव का शरीर उनके क्रोध की ज्वाला में भस्म हो गया। जिस दिन भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था वह दिन फाल्गुन शुक्ल अष्टमी थी। तभी से होलाष्टक की प्रथा आरंभ हुई। जब कामदेव की पत्नी शिव जी से उन्हें पुनर्जीवित करने की प्रार्थना करती है। रति की भक्ति को देखकर शिव जी इस दिन कामदेव को दूसरा जन्म में उन्हें फिर से रति मिलन का वचन दे देते हैं। कामदेव बाद में श्री कृष्ण के यहां उनके पुत्र प्रद्युम्न रूप में जन्म लेते हैं।
 
फिर शिव जी ने पार्वती को देखा। पार्वती की आराधना सफल हुई और शिव जी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इसलिए पुराने समय से होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकात्मक रूप से जला कर अपने सच्चे प्रेम का विजय उत्सव मनाया जाता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

होली 2023 पर बन रहे हैं बहुत शुभ संयोग