Israel Rocket Attack: हाल ही में फिलिस्तीन के आतंकवादी संगठन हमास ने इसराइल पर रॉकेट से हमला करके पूरे इजराइल को दहला दिया है। कई लोगों के मारे जाने की खबर है। फिलिस्तीन और इसराइल के बीच तब से जंग चल रही है जबसे इसराइल देश की पुन: स्थापना हुई थी। फिलिस्तीन एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है और इसराइल यहुदी बहुल देश है। यह जंग इसराइल स्थापना के पहले से ही चली आ रही है। फिलिस्तीन और इसराइल दोनों ही जेरूसलम को अपनी राजधानी मानते हैं और दोनों ही इस पर अपना हक जाते हैं।
फिलिस्तीन इसराइल विवाद की वजह?
इसराइल और फिलिस्तीन के बीच सदियों से गाजा और यरुशलम पर कब्जे को लेकर लड़ाई जारी है। इसकी शुरुआत यूं तो इस्लामिक उदय के काल से जारी है परंतु वर्तमान विवाद आटोनम साम्राज्य के पतन के बाद शुरू हुआ। वर्ष 1517 तक बायज़िद के बेटे सेलिम प्रथम ने आक्रमण किया और अरब, सीरिया, फ़िलिस्तीन और मिस्र को ओटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में ले आया। ऑटोमन साम्राज्य 1566 तक अपने चरम पर पहुंच गया था। जिनका शासक सुल्तान सुलेमान खान था। इस्राइल और फिलिस्तीन के बीच के मतभेद की शुरुआत ओटोमन साम्राज्य के खत्म होने के साथ होती है। 19वीं शताब्दी में यहूदियों की यह पवित्र भूमि फिलिस्तीन के नाम से जानी जाती थी। इस दौरान पूरे यूरोप में यहूदी बिखरे हुए थे। प्रथम विश्व युद्ध खत्म होने के बाद ओटोमन साम्राज्य की हार हो चुकी थी। फिलिस्तीन में ब्रिटिश शासनादेश की शुरुआत हुई तब इस दौर में सभी बिखरे हुए यहूदी फिलिस्तीन क्षेत्र में एकजुट होने लगे थे।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद फिलिस्तीन-इसराइल से खदेड़े गए यहूदियों को पुन: इसराइल में बसाया गया और यह मुल्क उनके सुपुर्द कर दिया गया। इसके बाद आज तक यहूदियों की इस्लाम से जंग जारी है। 1948 में जब विभाजन हुआ तब इसराइल और फिलिस्तीन दो देश बने थे। गाजापट्टी, जो इजिप्ट के कब्जे में था और वेस्ट बैंक ये दोनों अलग-अलग हिस्से हैं, फिलिस्तीन का तब से ही संघर्ष चल रहा है।
यहूदी पश्चिम एशिया के उस इलाके में अपना हक जताते थे, जहां सदियों पहले यहूदी धर्म का जन्म हुआ था और जहां वे संख्या में बहुल थे। यही वो जमीन थी, जहां ईसाइयत का जन्म हुआ। इस्लाम का उदय होने के बाद इस क्षेत्र पर उनका कब्जा हो गया। आज जिसे गाजा कहते हैं, यहूदियों के दावे वाले इसी इलाके में मध्यकाल में अरब फिलिस्तीनियों की आबादी बस चुकी थी। इस गाजा पट्टी पर अपने अधिकार को लेकर जंग के लिए हमास नामक आतंकवादी संगठन का उदय हुआ।
क्या है हमास?
'हमास' का मतलब है 'हरकत उल मुकवामा अल इस्लामियास।' यह फिलिस्तीन का सामाजिक-राजनीतिक आतंकवादी संगठन है, जो मुस्लिम ब्रदरहुड की एक शाखा के रूप में 1987 में स्थापित किया गया था। इस संगठन का जिहाद इसराइल के खिलाफ है और इसका मकसद इसराइल से फिलिस्तीन की आजादी को सुरक्षित रखना है। इसे आत्मघाती हमलों के लिए जाना जाता है। इस आतंकवादी संगठन को इसराइली सरकार और नागरिकों के खिलाफ अपने अभियान में हिजबुल्लाह का समर्थन भी हासिल है। हिजबुल्लाह ईरान और सीरिया समर्थित लेबनानी आतंकवादी संगठन है, जो 1982 के लेबनानी गृहयुद्ध से उभरा था। हालांकि इस संगठन को इसराइल और सुन्नी अरब देशों का सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है। कहते हैं कि इस संगठन को लेबनान की 41 फीसदी जनसंख्या का समर्थन हासिल है।
यहूदी और इसराइल के बीच जंग का पुराना इतिहास:
- करीब 3 हजार वर्ष पूर्व हजरत मूसा के नेतृत्व में मिस्र से पलायन के बाद सभी यहूदी इसराइल की राजधानी येरुशलम में एकत्रित हुए और एक यहूदी राज्य की स्थापना की। यहां पर उन्होंने महान राजा सोलेमन के जमाने में एक विशालकाय यहूदी मंदिर बनाया। वर्तमान में इस मंदिर के एक हिस्से पर मुस्लिमों की पवित्र मस्जिद अल अक्सा है।
- करीब 2 हजार वर्ष पूर्व यहां पर ईसाई धर्म का उदय हुआ। ईसा मसीह ने येरूशलम में उपदेश देकर यहूदी और रोमनों को भड़का दिया जिसके चलते उन्हें यहां पर सूली पर लटका दिया गया। यहां पर जेरूसलम में अब ईसाईयों के कई चर्च हो चले हैं।
- ईस्वी सन् 613 में हजरत मुहम्मद ने उपदेश देना शुरू किया था तब मक्का, मदिना सहित पूरे अरब में यहूदी धर्म, पेगन, मुशरिक, सबायन, ईसाई आदि धर्म थे। लोगों ने इस उपदेश का विरोध किया। विरोध करने वालों में यहूदी सबसे आगे थे। यहूदी नहीं चाहते थे कि हमारे धर्म को बिगाड़ा जाए, जबकि मोमिनों के अनुसार ह. सल. मुहम्मद धर्म को सुधार रहे थे। बस यही से फसाद और युद्ध की शुरुआत हुई।
- सन् 622 में हजरत अपने अनुयायियों के साथ मक्का से मदीना के लिए कूच कर गए। इसे 'हिजरत' कहा जाता है। मदीना में हजरत ने लोगों को इक्ट्ठा करके एक इस्लामिक फौज तैयार की और फिर शुरू हुआ जंग का सफर। खंदक, खैबर, बदर और फिर मक्का को फतह कर लिया गया। सन् 630 में पैगंबर साहब ने अपने अनुयायियों के साथ कुफ्फार-ए-मक्का के साथ जंग की, जिसमें अल्लाह ने गैब (चमत्कार) से अल्लाह और उसके रसूल की मदद फरमाई। इस जंग में इस्लाम के मानने वालों की फतह हुई। इस जंग को जंग-ए-बदर कहते हैं।
- 632 ईसवी में हजरत मुहम्मद सल्ल. ने दुनिया से पर्दा कर लिया। उनकी वफात के बाद तक लगभग पूरा अरब इस्लाम के सूत्र में बंध चुका था। इसके बाद इस्लाम ने यहूदियों को अरब से बाहर खदेड़ दिया। वह इसराइल और मिस्र में सिमट कर रह गए।
- हजरत मुहम्मद सल्ल. की वफात के मात्र सौ साल में इस्लाम समूचे अरब जगत का धर्म बन चुका था। 7वीं सदी की शुरुआत में इसने भारत, रशिया और अफ्रीका का रुख किया और मात्र 15 से 25 वर्ष की जंग के बाद आधे भारत, अफ्रीका और रूस पर कब्जा कर लिया।
पहला क्रूसेड : अगर 1096-99 में ईसाई फौज यरुशलम को तबाह कर ईसाई साम्राज्य की स्थापना नहीं करती तो शायद इसे प्रथम धर्मयुद्ध (क्रूसेड) नहीं कहा जाता। जबकि यरुशलम में मुसलमान और यहूदी अपने-अपने इलाकों में रहते थे। इस कत्लेआम ने मुसलमानों को सोचने पर मजबूर कर दिया। जैंगी के नेतृत्व में मुसलमान दमिश्क में एकजुट हुए और पहली दफा अरबी भाषा के शब्द 'जिहाद' का इस्तेमाल किया गया। जबकि उस दौर में इसका अर्थ संघर्ष हुआ करता था। इस्लाम के लिए संघर्ष नहीं, लेकिन इस शब्द को इस्लाम के लिए संघर्ष बना दिया गया।
दूसरा क्रूसेड : 1144 में दूसरा धर्मयुद्ध फ्रांस के राजा लुई और जैंगी के गुलाम नूरुद्दीन के बीच हुआ। इसमें ईसाइयों को पराजय का सामना करना पड़ा। 1191 में तीसरे धर्मयुद्ध की कमान उस काल के पोप ने इंग्लैड के राजा रिचर्ड प्रथम को सौंप दी जबकि यरुशलम पर सलाउद्दीन ने कब्जा कर रखा था। इस युद्ध में भी ईसाइयों को बुरे दिन देखना पड़े। इन युद्धों ने जहां यहूदियों को दर-बदर कर दिया, वहीं ईसाइयों के लिए भी कोई जगह नहीं छोड़ी। लेकिन इस जंग में एक बात की समानता हमेशा बनी रही कि यहूदियों को अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए अपने देश को छोड़कर लगातार दरबदर रहना पड़ा जबकि उनका साथ देने के लिए कोई दूसरा नहीं था। वह या तो मुस्लिम शासन के अंतर्गत रहते या ईसाइयों के शासन में रह रहे थे।
सैंकड़ों साल से जारी है जंग:-
इसके बाद 11वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुई यरुशलम सहित अन्य इलाकों पर कब्जे के लिए लड़ाई 200 साल तक चलती रही, जबकि इसराइल और अरब के तमाम मुल्कों में ईसाई, यहूदी और मुसलमान अपने-अपने इलाकों और धार्मिक वर्चस्व के लिए जंग करते रहे। इस दौर में इस्लाम ने अपनी पूरी ताकत भारत में झोंक दी। लगभग 600 साल के इस्लामिक शासन में इसराइल, ईरान, अफगानिस्तान, भारत, अफ्रीका आदि मुल्कों में इस्लाम स्थापित हो चुका था। लगातार जंग और दमन के चलते विश्व में इस्लाम एक बड़ी ताकत बन गया था। इस जंग में कई संस्कृतियों और दूसरे धर्म का अस्तित्व मिट चुका था।
अंग्रेजों के काल में एक नई जंग की हुई शुरुआत:-
17वीं सदी की शुरुआत में विश्व के उन बड़े मुल्कों से इस्लामिक शासन का अंत शुरू हुआ जहां इस्लाम थोपा जा रहा था। यह था अंग्रेजों का वह काल जब मुसलमानों से सत्ता छीनी जा रही थी। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं हुआ। उसी दौरान अरब राष्ट्रों में पश्चिम के खिलाफ असंतोष पनपा और वह ईरान तथा सऊदी अरब के नेतृत्व में एक जुट होने लगे।
बहुत काल तक दुनिया चार भागों में बंटी रही, इस्लामिक शासन, चीनी शासन, ब्रिटेनी शासन और अन्य। फिर 19वीं सदी कई मुल्कों के लिए नए सवेरे की तरह शुरू हुई। कम्यूनिस्ट आंदोलन, आजादी के आंदोलन चले और सांस्कृतिक संघर्ष बढ़ा। इसके चलते ही 1939 द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ जिसके अंत ने दुनिया के कई मुल्कों को तोड़ दिया तो कई नए मुल्कों का जन्म हुआ।
यहूदियों को पुन: मिली उनकी भूमि:-
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द्वितीय विश्व युद्ध (1945) में यहूदियों को अपनी खोई हुई भूमि इसराइल वापस मिली। यहां दुनिया भर से यहूदी फिर से इकट्ठे होने लगे।
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इसके बाद उन्होंने मुसलमानों को वहां से खदेड़ना शुरू किया जिसके विरोध में फिलिस्तीन इलाके में यासेर अराफात का उदय हुआ।
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फिर से एक नई जंग की शुरुआत हुई।
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इस जंग का स्वरूप बदलता रहा और आज इसने मक्का, मदीना और यरुशलम से निकलकर व्यापक रूप धारण कर लिया है।
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इसके बाद शीतयुद्ध और उसके बाद सोवियत संघ के विघटन से इस्लाम की एक नई कहानी लिखी गई।
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इस दौर में मुस्लिम युवाओं ने ओसामा के नेतृत्व में आतंक का पाठ पढ़ा।
यरुशलम :-
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यरुशलम में लगभग 1204 सिनेगॉग, 158 गिरजें, 73 मस्जिदें, बहुत सी प्राचीन कब्रें, 2 म्यूजियम और एक अभयारण्य है।
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दरअसल यह पवित्र शहर यहूदियों, मुसलमानों और ईसाइयों के लिए बहुत महत्व रखता है।
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यहीं पर तीनों धर्मों के पवित्र टेंपल हैं और तीनों ही धर्म के लोग इस पर अपना अधिकार चाहते हैं।
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यरुशलम के मुस्लिम इलाके में स्थित 35 एकड़ क्षेत्रफल में फैले नोबेल अभयारण्य में ही अल अक्सा मस्जिद है जो मुसलमानों के लिए मदीना, काबा के बाद तीसरा पवित्र स्थान है, क्योंकि इसी स्थान से हजरत मुहम्मद स्वर्ग गए थे।