Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

देवी अहिल्या की इंदौर यात्रा

हमें फॉलो करें देवी अहिल्या की इंदौर यात्रा
webdunia

अपना इंदौर

जब अहिल्याबाई ने 26 मई 1784 को नगर में प्रवेश किया तो नगर भीषण गर्मी की चपेट में था। यहां के कमाविसदार खण्डो बाबूराव ने अहिल्याबाई के स्वागत व उनकी खातिरदारी की भारी व्यवस्था की थी। किंतु अहिल्याबाई ने किसी आलीशान भवन में ठहरने की बजाए होलकर राजघराने के स्वर्गीय सदस्यों की छत्रियों के मध्य छतरीबाग में ठहरने का निर्णय लिया। तपती दोपहर में वहां अस्थायी बने डेरे-तम्बुओं में देवी ने अपना निवास स्थान चुना। उनका तम्बू स्व. गौतमाबाई होलकर (अहिल्याबाई की सास) तथा स्व. मालेराव (अहिल्याबाई के पुत्र) की छ‍तरियों के मध्य लगाया गया।

पुत्र की छतरी देखकर आखिर कौन मां द्रवित न हो उठेगी? अहिल्याबाई का मातृत्व भी नेत्रों से टपक पड़ा व बड़ी देर तक वे पुत्र की छतरी को निहारती रहीं। इंदौर के जमींदार कमाविसदार और प्रजा उनके दर्शनों के लिए आई हुई थी किंतु वे इतनी व्यथित हो गई थीं कि कमाविसदार के अलावा वे किसी से नहीं मिलीं। अगले दिन नगर के सेठ-साहूकारों व प्रजा से वे मिलीं।

देवी अहिल्याबाई होलकर ने अपनी राजधानी महेश्वर में ही रखी थी किंतु तब तक इंदौर सैनिक गतिविधियों का महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका था और कुछ राजकीय कार्यालय भी यहां स्थापित हो गए थे। तुकोजीराव होलकर (प्रथम) होलकर सेना के सेनापति थे किंतु उनके व अहिल्याबाई के मध्य किन्हीं मामलों को लेकर मतभेद हो गए थे। तुकोजीराव, सिंधिया के साथ दूतों का आदान-प्रदान कर रहे थे। उधर उनकी पत्नी शासकीय मामलों में अनधिकृत रूप से हस्तक्षेप किया करती थी। इन सारी परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में अहिल्याबाई ने महेश्वर से इंदौर आकर वस्तुस्‍थिति का जायजा लेने का निर्णय किया। पेशवा नाना फड़नवीस का वकील केसो भीखाजी दातार महेश्वर में नियुक्त था, जो दैनिक घटनाओं की जानकारी पूना भेजा करता था। प्राय: उसकी करती थीं। अहिल्याबाई 26 मई 1784 को महेश्वर से इंदौर पधारीं और 21 जून 1784 तक नगर में रही। इस संपूर्ण अवधि में पेशवा का वकील भीखाजी उनके साथ रहा और इंदौर की रिपोर्ट पूना भेजता रहा, जो इतिहासकारों के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुई।
 
अपने इंदौर प्रवास के दौरान वे गरुड़तीर्थ (देवगुराड़िया शिव मंदिर) गई और भगवान शंकर के मंदिर में पूजा-अर्चना कर उसी दिन शाम को वापस छतरीबाग लौट आई।
 
अहिल्याबाई ने इंदौर प्रवास के दौरान ही अपने ससुर स्व. मल्हारराव होलकर और अपने पति स्व. खण्डेराव की स्मृति में दो संगमरमर की मूर्तियां स्थापित करवाईं, जो आज भी छतरीबाग में विराजमान हैं। मूर्तियों की स्थापना के अवसर पर नगर के 10-12 हजार व्यक्तियों को भोजन करवाया गया। जमींदार, कमाविसदार एवं साहूकारों को शॉल, पगड़ियां व फर्दे उपहार में बांटी गईं।
 
अहिल्याबाई होलकर ने नगर प्रवास की अवधि में नगर के प्रतिष्ठित व्यक्तियों की सद्भावना यात्राएं भी कीं। 14 जून को वे जूनी इंदौर स्थित इंदौर के जमींदार (मण्डलोई) के घर पधारी थीं। जमींदार ने उनका उचित स्वागत-सत्कार किया और 2 घोड़े तथा 2 सालें नजराने के रूप में भेंट किए। उसी दिन अहिल्याबाई विश्वेश्वर मोकासी के घर भी गईं, जहां 1 घोड़ा व वस्त्र भेंटस्वरूप देकर सम्मानित किया गया।
 
पेशवा के वकील भीखासी दातार ने इस यात्रा के दौरान स्‍थानीय कमाविसदार के कार्यों पर प्रतिकूल टिप्पणी करने के लिए लिखा कि इंदौर का कमाविसदार खण्डो बाबूराव पिछले 11 वर्षोंसे प्रशासन को चौपट किए हुए था। नगर की जनता और साहूकार उसे इंदौर से हटाना चाहते थे। इस फरियाद को लेकर वे जामगांव तक अहिल्याबाई के पीछे-पीछे गए और बार-बार खण्डो बाबूराव को हटाने की मांग की। बाई ने उनकी इस मांग को स्वीकार नहीं किया और महेश्वर लौट गईं। इंदौर की तत्कालीन उलझी हुई परिस्थितियों में अनुभवी प्रशासक को हटाना संभव: उचित भी न था।

इस्लाम के प्रति भी समान स्नेहभाव था : खान और चन्द्रभागा नदियों के तट पर ऊंचे टीले पर जूनी इंदौर बसा है, जो निश्चित रूप से परमारकालीन बस्ती है। यहीं पर कम्पेल से आकर जमींदारों ने अपना रावला कायम किया। इन्हीं जमींदारों ने 1741 में क्षेत्रपाल देवता के रूप में इन्द्रेश्वर नामक मंदिर का निर्माण करवाया।
 
इन्हीं नदियों के समीप 1754 में होलकर राजपरिवार के सदस्यों की स्मृति को स्थायी बनाने के लिए छतरीबाग का निर्माण हुआ। संयोग ही है कि उसी वर्ष इंदौर राज्य के संस्‍थापक सूबेदार मल्हारराव होलकर के एकमात्र पुत्र व अहिल्याबाई के पति खण्डेराव का कुम्भेर के दुर्ग को फतह करते समय प्राणांत हो गया। संभवत: उसी योद्धा की पहली छतरी यहां बनाई गई थी। मल्हारराव होलकर के समय ही जूनी इंदौर स्थित खेड़ापति हनुमान की पूजा को लेकर एक विवाद उठ खड़ा हुआ था। इस मंदिर की पूजा श्रद्धावश एक मुस्लिम व्यक्ति किया करता था। इस पर अन्य हिन्दुओं ने आपत्ति उठाई। मल्हारराव ने उस मुस्लिम की श्रद्धा के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए इंदौर के समीप 'खजराना' में उसे जागीर प्रदान कर दी और खेड़ापति के मंदिर में पूजा का कार्य ब्राह्मण परिवार को सौंप दिया गया।
 
जूनी इंदौर का गणपति मंदिर भी काफी महत्वपूर्ण था। इस मंदिर से संबंधित कुछ सनदें लेखक को प्राप्त हुई हैं, जो अहिल्याबाई के शासनकाल की हैं। मंगलवार, जनवरी 25, 1790 ई. को इंदौर के तत्कालीन कमाविसदार खण्डो बाबूराव को एक पत्र द्वारा हिदायत दी गई थी कि वह इस मंदिर में भाद माह की शुक्ल पक्ष चतुर्थी के दिन मनाए जाने वाले उत्सव के लिए 40 रु. की सहायता व 25 ब्राह्मणों के भोज के लिए आवश्यक सामग्री प्रदान करता रहे। प्रति ब्राह्मण जो सामग्री का अनुपात बतलाया गया है, उसके अनुसार प्रति व्यक्ति 1 किलो से अधिक औसत आता है।
 
दूसरा पत्र 27 जून 1797 को लिखा गया है जिसमें इंदौर नगर में निवास करने वाली विभिन्न जातियों के मुखियाओं को अहिल्याबाई ने निर्देश दिया था कि वे इस मंदिर की पूजा आदि के लिए प्रतिमाह सामग्री देते रहें। इस पत्र से यह रोचक तथ्य सामने आया है कि इंदौरवासी मुस्लिम पिंजारे लोग भी इस मंदिर को सहायता देते थे। उल्लेखनीय है कि अहिल्याबाई ने इस्लाम के प्रति भी पर्याप्त आदर भाव प्रकट किया था। इंदौर के समीप 'खजराना' ग्राम में तख्शन फकीर उन दिनों निवास करते थे। वे नाहर सैयद पीर के पुजारी थे। उनके प्रति सम्मान प्रकट करते हुए इंदौर नगर के कमाविसदार के माध्यम से 1780 ई. में 15 बीघे जमीन की सनद अहिल्याबाई के प्रदान की थी।
 
जूनी इंदौर के प्राचीन मंदिर नगरवासियों की श्रद्धा के प्रमुख केंद्र थे। जूनी इंदौर के खेडापति मंदिर तक आने-जाने के लिए श्रद्धालु नावों में बैठकर पहले नदी पार करते थे तब उन्हें मंदिर के दर्शन मिलते थे। इस कठिनाई को दूर करने के लिए जूनी इंदौर और नई बस्ती को जोड़ने वाली एक रपट नदी पर बनाई गई जिस पर बाद में ऊंचा पुल बन गया।
webdunia

दो कारकून जांच के लिए चक्कर लगाते थे : आज से लगभग 2 सदी पूर्व (1791 ई.) इंदौर नगर का काफी विस्तार हो चुका था। यद्यपि तत्कालीन होलकर शासिका देवी अहिल्याबाई होलकर ने महेश्वर को ही अपनी राजधानी बनाए रखा था तथापि वे समय-समय पर इंदौर आया करती थीं। अपने देहावसान के 4 वर्ष पूर्व वे इंदौर में पधारी थीं। उनकी उपस्‍थिति में इंदौर नगर में चोरी व डकैती की घटनाएं घटित हुईं। उनके दल में महेश्वर से जो लोग इंदौर आए थे, उनमें 5 व्यक्तियों के वहां चोरियां हुईं और पुलिस उनका पता न लगा सकी।
 
संवेदनशील अहिल्याबाई ने इन घटनाओं को बड़ी गंभीरता से लिया। उन्हें इस बात से विशेष आघात लगा कि नगर में उनकी उपस्थिति में यह सब घटित हुआ और अपराधी पकड़े न सके।
 
महेश्वर पहुंचकर उन्होंने इंदौर नगर की सुरक्षा व पुलिस व्यवस्था के संबंध में एक कड़ा पत्र तत्कालीन कमाविसदार श्री खण्डो बाबूराव को लिखा। इस पत्र का उत्तर कमाविसदार ने 12 मार्च 1791 को भेजा, जो तत्कालीन इंदौर शहर के विस्तार व इसकी सुरक्षा व्यवस्था पर रोचक प्रकाश डालता है। वह लिखता है- 'इंदौर नगर का काफी विकास हो गया है। यह इतना बढ़ गया है कि एक नजर में सारा का सारा नहीं देखा जा सकता। मैंने स्वयं शहर की गलियों का निरीक्षण कर लिया है। कस्बे के चारों ओर वृक्षों व बगीचों की हरीतिमा छाई हुई है। बहुत से ऊंचे-नीचे स्थान हैं। मैंने बड़ी सावधानी के साथ निगरानी चौकियों के लिए स्थान चुने हैं। 20 स्वस्थ रक्षकों की नियुक्ति की प्रार्थना है।'
 
कमाविसदार ने नगर की सुरक्षा व्यवस्था को दर्शाते हुए आगे लिखा- 'रात्रि ने नगर के प्रत्येक कोने की निगरानी रखी जाती है। दो कारकून जांच के लिए लिए चक्कर लगाते हैं। हुजूर पागा के मुखिया मानाजी होलकर और मेरा पुत्र मेरे घुड़सवार सैनिकों के साथ नगर से 10 मील की दूरी तक गिरासिया लोगों पर निगरानी रखने के लिए जाते हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कैसे हआ तेजपुर का नाम तेजपुर गड़बड़ी