इंदौर रेसीडेंसी में बालकों के लिए मदरसा 1841 में ही प्रारंभ हो गया था किंतु कन्याओं की शिक्षा व्यवस्था नहीं थी। यह एक रोचक तथ्य है कि इंदौर में स्त्री शिक्षा की प्रेरणा मंडलेश्वर के कन्या विद्यालय से मिली। हुआ यूं कि 1867 में होलकर महाराजा व ब्रिटिश सरकार के मध्य एक प्रादेशिक आदान-प्रदान समझौता हुआ। जिसके अंतर्गत मंडलेश्वर, ब्रिटिश आधिपत्य से मुक्त होकर होलकर राज्य में मिला दिया गया। इस क्षेत्र में पहले से ही एक कन्या विद्यालय स्थापित था जिसके संचालन का आश्वासन होलकर दरबार द्वारा दिया गया था।
इस कन्या विद्यालय ने इंदौर के बुद्धिजीवियों को नगर में ऐसा ही विद्यालय स्थापित करने के लिए प्रेरित किया। निजी क्षेत्र में कोई भी संस्था या समूह ऐसा विद्यालय खोलने के लिए तैयार न था, क्योंकि अधिकांश लोगों की मान्यता थी कि लड़कियों को पढ़ा-लिखाकर क्या किया जाएगा। उन्हें तो घर में रहकर अपनी गृहस्थी ही संभालनी है। कन्या को अच्छा भोजन बनाना आ जाए और थोड़ा-बहुत सिलाई कर ले, बस इतना पर्याप्त था। इस मामले में भी होलकर दरबार को ही आगे आना पड़ा। राज्य की ओर से 1867 में ही इंदौर में प्रथम कन्या विद्यालय स्थापित किया गया। विद्यालय में प्रारंभिक वर्षों में छात्राओं की संख्या बहुत कम थी।
निजी क्षेत्र में कन्या विद्यालय स्थापित करने वाली पहली संस्था केनेडियन मिशन थी, जिसने 1884 में 'केनेडियन मिशन गर्ल्स हाईस्कूल' स्थापित किया।
इस स्कूल ने नगर में छात्राओं में शिक्षा के प्रति विशेष अनुराग उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। यद्यपि यह सत्य है कि इस स्कूल में केवल शिक्षित परिवार की लड़कियां ही अध्ययन के लिए पहुंची थीं, क्योंकि साधारण परिवार के लोग अपनी कन्याओं को स्कूल भेजने में संकोच करते थे।
विद्यालयों में पढ़ने वाली छात्राओं से कोई शिक्षण शुल्क नहीं लिया जाता था। प्रतिभाशाली छात्राओं को राज्य की ओर से प्रोत्साहन स्वरूप छात्रवृत्तियां दी जाती थीं।
छात्रों की तुलना में छात्राओं को अधिक छात्रवृत्ति दी जाती थी ताकि वे आगे अध्ययन के लिए प्रेरित हों। इंदौर में अध्ययन करने वाली छात्राओं को तो ये छात्रवृत्ति दी ही जाती थी, नगर की छात्राएं जो उच्च अध्ययन हेतु मुंबई, पूना या बनारस जाती थीं, उन्हें भी छात्रवृत्ति की जाती थी। 1905 में इंदौर केनेडियन मिशन महाविद्यालय (वर्तमान क्रिश्चियन कॉलेज) में अध्ययन करने वाली एक छात्रा को तथा पूना में अध्ययनरन दो छात्राओं को छात्रवृत्तियां प्रदान की गई थीं। 1916 में छात्राओं को दी जाने वाली छात्रवृत्ति राशि में वृद्धि करके 600 रुपए प्रतिवर्ष कर दी गई, जो उन दिनों काफी मायने रखती थी।
गरीबखाने के पास था अहिल्याश्रम
होलकर राज्य की यशस्वी प्रशासिका देवी अहिल्याबाई की स्मृति को स्थायी बनाए रखने व उनके नाम को सार्थक बनाने के उद्देश्य से इंदौर नगर में 16 जून 1913 ई. के दिन 'अहिल्याश्रम' की स्थापना की गई। यह बात उल्लेखनीय है कि होलकर राजपरिवार की ज्येष्ठतम जीवित महारानी 'खासगी' की प्रशासिका होती थी। 'खासगी' जागीरों से प्राप्त आय महारानी द्वारा दान, धर्म या लोकोपकारी कार्यों पर व्यय की जाती थी। अहिल्याश्रम की स्थापना में खासगी भवन का भी योगदान था, इसीलिए तत्कालीन खासगी नायब दीवान ने इसका विधिवत उद्घाटन किया था।
महाराजा तुकोजीराव (तृतीय) ने गरीबखाने के अस्पताल (वर्तमान एम.टी.एच. कंपाउंड) के समीप इस आश्रम को संचालित करने के लिए भूमि दी व भवन निर्माण भी करवाया। 20,498 रु. की लागत से आश्रम भवन बनवाया गया। 29 मई 1913 को ही भवन आश्रम को उपयोग हेतु दे दिया गया।
प्रारंभ में राजकीय व्यय पर इस आश्रम में 20 विधवाओं को रखने की व्यवस्था थी। एक महिला निरीक्षिका व उसकी 3 सहायकों को भी यहीं रहने की सुविधा उपलब्ध कराई गई थी।
इन महिलाओं के भोजन, वस्त्र, औषधि व प्रशिक्षण आदि पर होने वाले संपूर्ण व्यय का वहन राज्य द्वारा किया जाता था। इस आश्रम में पहले केवल स्थानीय विधवाओं को ही प्रवेश दिया जाता था। विधवाओं को पालना इस आश्रम का ध्येय नहीं था। उनके जीवन में नया परिवर्तन लाने व उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास इस आश्रम द्वारा सतत किए जाते रहे।
युवा विधवाओं को हाईस्कूल तक शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा दी जाती थी किंतु शेष विधवाओं को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने के बाद शिक्षिका का प्रशिक्षण दिया जाता था। इस प्रशिक्षण के बाद उन्हें राज्य के विद्यालयों में शिक्षिका का पद प्रदान किया जाता था। इस प्रकार वे स्वावलंबी बन जाया करती थीं। विशेष परिस्थितियों में कुछ अविवाहित कन्याओं को भी इस आश्रम में प्रवेश देकर शिक्षिका का प्रशिक्षण दिया जाता था।