इंदौर में 1870 में नगर पालिका स्थापित तो हो गई थी किंतु उसका लिखित विधान या उसमें निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए व्यवस्था नहीं की गई थी। 1904 में इंदौर नगर पालिका को न्यायिक अधिकार दिए गए। 5 सदस्यों की एक समिति बनाई गई और उन्हें छोटे-छोटे मुकदमे सुनने और उन पर निर्णय देने के तृतीय श्रेणी समान अधिकार दिए गए। नगर की स्वच्छता का भार खान साहब इनायत उल्लाह को सौंपा गया।
नगर पालिका को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिए एक नवीन नगर पालिका अधिनियम पारित किया गया किंतु यह अक्टूबर 1912 से प्रभावशील हो सका। इस अधिनियम के द्वारा नगर पालिका को अर्द्धस्वायत्तता की श्रेणी प्राप्त हो गई।
महाराजा ने पालिका संबंधी मामलों पर विचार हेतु एक परामर्शदात्री समिति गठित की, जिसमें शासकीय व अशासकीय व्यक्तियों को सदस्य बनाया गया। 20 सदस्यों की समिति 1914 में गठित की गई, जिसमें 3 शासकीय प्रभावशाली व्यक्ति, 13 अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति तथा 4 व्यक्तियों का चयन नगर की 11 पंच, बार एसोसिएशन इंदौरके मुस्लिम काजी तथा उन जागीरदारों व जमींदारों में (एक-एक) होता था, जो इंदौर नगर में निवास करते थे या जिनकी अलच संपत्ति इंदौर नगर में स्थित थी।
महाराजा तुकोजीराव (तृतीय) के शासनकाल में नगर पालिका को एक नया स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया गया। इंडियन सिविल सर्विस के अधिकारी मिस्टर एच.जी. हेग की सेवाएं 2 वर्ष के लिए भारत सरकार से प्राप्त की गईं। श्री हेग इंदौर आए और 2 सितंबर 1912 ई. को उन्होंने नगर पालिका में अपना पदभार ग्रहण किया। उन्हें नगर पालिका आयुक्त का पद प्रदान किया गया। वे नगर पालिका में नियुक्त होने वाले प्रथम आई.सी.एस. अधिकारी थे।
2 वर्ष बाद जब उनकी सेवाएं पुन: भारत सरकार को लौटाई गईं तो उनके साथ ही नगर पालिका आयुक्त का पद भी समाप्त कर दिया गया। नगर पालिका का प्रशासन पुन: अधीक्षक के नियंत्रण में दे दिया गया। श्री एस.एन. देव, जो अभी तक सहायक आयुक्त के पद पर कार्य कर रहे थे, 1914 में नगर पालिका अधीक्षक बना दिए गए। 1909 में बने नगर पालिका अधिनियम के अंतर्गत पालिका का प्रशासन 1920 तक चलता रहा। इसी वर्ष एक समिति का निर्माण किया गया जिसका प्रमुख कार्य नगर पालिका के लिए कानून आदि का निर्माण करना था।
इंदौर ने नागरिकों ने इतिहास में पहली बार निर्वाचन के अधिकार का उपयोग अक्टूबर 1920 ई. में किया, जब उन्हें नगर पालिका में अपना निर्वाचित प्रतिनिधि भेजने का अधिकार मिला। इसी वर्ष से परामर्शदात्री समिति भंग कर दी गई और यह व्यवस्था लागू हुई कि नगर पालिका व्यवस्थापन समिति के 30 सदस्य होंगे जिनमें 15 नागरिकों द्वारा निर्वाचित होंगे तथा 15 मनोनीत सदस्य होंगे। इस समिति का अध्यक्ष शासन द्वारा नियुक्त सवैतनिक अधिकारी होता था।
4 वर्षों के अंतराल में 1924 में इंदौर नगर पालिका का दूसरा चुनाव हुआ। इस बार सत्ता पूरी तरह नागरिकों को सौंपी गई, क्योंकि 30 सदस्यों का निर्वाचन करवाया गया। इनमें पहली बार 2 महिलाओं को पार्षद बनाया गया। यद्यपि इन दोनों को मनोनीत किया गया था तथापि स्थानीय स्वशासन में महिलाओं की भागीदारी की दिशा में एक महत्वपूर्ण घटना थी।
सेंट्रल इंडिया में इंदौर पहला नगर था, जहां स्थानीय स्वशासन जनप्रतिनिधियों को सौंपा गया था। 1921 में प्रथम निर्वाचन के बाद समस्त नगर पालिका प्रतिनिधियों ने नगर की ओर से महाराजा तुकोजीराव के जन्मदिवस पर उन्हें एक अभिनंदन पत्र भेंट किया, जिसके उत्तर में उन्होंने अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा था- 'मैं प्रशासनिक उत्तरदायित्यों को अपनी जनता में बांट देने में विश्वास करता हूं, इसी उद्देश्य से प्रेरित होकर मैंने आधुनिक सिद्धांतों पर आधारित निर्वाचन प्रणाली को नगर पालिका में प्रारंभ किया है।'
अक्टूबर 1920 में हुए चुनावों में आज की तरह हर वयस्क मतदाता को वोट देने का अधिकार नहीं दिया गया था। नगर की कुल जनसंख्या के केवल 4 प्र.श. नागरिक ही मतदान करने के पात्र थे, क्योंकि वोट का अधिकार मकान मालिकों, शैक्षणिक गतिविधियों में भाग लेने वालों तथा उच्च पदों पर आसीन शासकीय अधिकारियों को ही दिया गया था।