धनु संक्रांति 2023: संपूर्ण पूजा विधि और महत्व

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Dhanu Sankranti : अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार 16 दिसंबर 2023, दिन शनिवार को धनु संक्रांति रहेगी। ज्योतिष के हिसाब से सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को संक्रांति कहते हैं। जब भी सूर्यदेव गुरु की राशि धनु या मीन में विराजमान होते हैं तो उस समय को खरमास कहा जाता है। खरमास में किसी भी तरह का कोई मांगलिक कार्य जैसे विवाह, यज्ञोपवित, गृह प्रवेश, मकान निर्माण, नया व्यापार या किसी भी तरह का कोई भी संस्कार नहीं करते हैं।
 
आइए यहां जनाते हैं पूजन की विधि और मह‍त्व के बारे में- 
 
धनु संक्रांति पूजा विधि : Dhanu Sankranti Puja Vidhi
 
• धनु संक्रांति पर भगवान सत्यनारायण की पूजा की जाती हैं। इस दिन भगवान सत्यनारायण की षोडष पूजा करें। 
 
• पूजन में शुद्धता व सात्विकता का विशेष महत्व है, अत: इस बात का ध्यान रखें। इस दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान से निवृत्त हो भगवान का स्मरण करते हुए व्रत एवं उपवास का पालन करते हुए भगवान का भजन व पूजन करें।
 
• नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद अपने श्रीहरि विष्णु की मूर्ति या चि‍त्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें। 
 
• मूर्ति को स्नान कराएं और यदि चित्र है तो उसे अच्छे से साफ कर लें। 
 
• पूजन में देवताओं के सामने धूप, और शुद्ध घी का दीपक अवश्य जलाएं। 
 
• देवताओं के लिए जलाए गए दीपक को स्वयं कभी नहीं बुझाना चाहिए। इसका ध्यान रखें। 
 
• फिर देवताओं के मस्तक पर हल्दी कुंकू, चंदन और अक्षत लगाएं। फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं। 
 
• पूजन में अनामिका अंगुली यानी छोटी उंगली के पास वाली यानी रिंग फिंगर से गंध, चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी लगाएं।
 
• पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। 
 
• पूजा में उन्हें केले के पत्ते, फल, सुपारी, पंचामृत, तुलसी, मेवा, इत्यादि भोग के तौर पर अर्पित करें। 
 
• प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखें। 
 
• अंत में उनकी आरती करके नैवेद्य और चरणामृत का प्रसाद सभी में बांट दें।
 
• पूजन के बाद सत्यनारायण तथा श्रीहरि विष्णु की कथा पढ़ें अथवा सुनें।
 
• तत्पश्चात माता लक्ष्मी, भगवान शिव जी और ब्रह्मा जी की आरती करें।
 
• इस दिन भगवान विष्णु का स्मरण करके द्वादश मंत्र- 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जाप करें।
 
• इस दिन भगवान सूर्यदेव के पूजन का भी विशेष महत्व है। अत: सूर्य नारायण का पूजन करना ना भूलें। 
 
• ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग भगवान को नैवेद्य में नहीं किया जाता है।
 
धनु संक्रांति का महत्व : एक वर्ष में 12 संक्रांतियां होती हैं। इस संक्रांति से हेमंत ऋतु शुरू हो जाती है। यह कहा जाता है कि धनु राशि में सूर्य के आ जाने से मौसम में परिवर्तन हो जाता है और देश के कुछ हिस्सों में बारिश होने के कारण ठंड भी बढ़ सकती है। 
 
सूर्य का बृहस्पति की राशि में प्रवेश को ठीक नहीं माना जाता है, क्योंकि बृहस्पति में सूर्य कमजोर स्थिति में रहते हैं। वर्ष में दो बार सूर्य बृहस्पति की राशि में प्रवेश करता है। पहला धनु में और दूसरा मीन में। सूर्य की धनु संक्रांति के कारण मलमास होता है, जिसे खरमास भी कहते हैं। सूर्य का धनु या मीन में प्रवेश जब होता है तो इन दोनों माह में मांगलिक कार्य बंद कर दिए जाते हैं। उल्लेखनीय है कि खर का अर्थ होता है गधा अर्थात सूर्यदेव की इस समय गति धीमी हो जाती है।
 
इस संक्रांति बारे में ऐसी मान्यता है कि यह दिन बेहद ही पवित्र होता है, ऐसे में जो कोई इंसान इस दिन विधिवत पूजा करते हैं उनके जीवन के सभी कष्ट अवश्य दूर होते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन धर्म के प्रति समर्पण भाव से इष्ट की आराधना करने तथा वैष्णव तथा शिव मंदिरों में जाकर सत्संग व कीर्तन का लाभ लेना चाहिए। इस दिन वस्त्र, भोजन तथा औषधि का दान करना श्रेष्ठ होता है। 

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