शिक्षक रामप्रसाद के हाथों में रवि की शादी का आमंत्रण था। रवि, रामप्रसाद का होनहार छात्र था, जो अब पढ़-लिखकर एक प्रतिष्ठित डॉक्टर बन गया था। एक ओर रामप्रसाद रवि के डॉक्टर बनने पर अत्यंत गर्वानुभूति महसूस कर फूले नहीं समा रहे थे, तो दूसरे ओर वे रवि की शादी में जाने को लेकर किंकर्तव्यविमूढ़ भी हो रहे थे। रामप्रसाद को यह डर सता रहा था कि उन्हें ऐसे फटेहाल में देखकर उनके छात्र को कई शर्मिंदा न होना पड़े। आखिरकार रामप्रसाद हवाई चप्पल और पुराना कुर्ता पहने रवि की शादी समारोह में पहुंच गए।
रवि ने दूर से अपने शिक्षक रामप्रसाद को देखकर ही पहचान लिया। रवि उन्हें सीधा मंच पर ले आया और सभी मेहमानों से परिचय कराते हुए बोल पड़ा- 'मित्रों, आप इन सज्जन को देख रहे हैं न? ये मेरे शिक्षक हैं। आज मैं यदि डॉक्टर के मुकाम पर पहुंचा हूं, तो इन्हीं की बदौलत। मुझे अच्छी तरह याद है कि एक बार मेरे पास परीक्षा शुल्क जमा कराने के पैसे नहीं थे, तब इन्होंने मेरी फीस भरी थी।'
इतना कहते ही रवि, रामप्रसाद के चरणों में झुक गया और रामप्रसाद ने भीगे नयनों से निस्संकोच होकर रवि को अपनी बाहों में कस लिया। यह देखकर समारोह में शरीक हुए लोगों की तालियां रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं।
(शपथ पत्र- प्रस्तुत लघुकथा स्वरचित एवं मौलिक है।)