Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

कही-अनकही 2 : मेरा घर

हमें फॉलो करें कही-अनकही 2 : मेरा घर
webdunia

अनन्या मिश्रा

'हमें लगता है समय बदल गया, लोग बदल गए, समाज परिपक्व हो चुका। हालाँकि आज भी कई महिलाएं हैं जो किसी न किसी प्रकार की यंत्रणा सह रही हैं, और चुप हैं। किसी न किसी प्रकार से उनपर कोई न कोई अत्याचार हो रहा है चाहे मानसिक हो, शारीरिक हो या आर्थिक, जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता, क्योंकि शायद वह इतना 'आम' है कि उसके दर्द की कोई 'ख़ास' बात ही नहीं। प्रस्तुत है एक ऐसी ही 'कही-अनकही' सत्य घटनाओं की एक श्रृंखला। मेरा एक छोटा सा प्रयास, उन्हीं महिलाओं की आवाज़ बनने का, जो कभी स्वयं अपनी आवाज़ न उठा पाईं।'
मेरा घर
फ्लैशबैक...
‘हां एना, माना मैंने कि तुमको अभी अपने घर का कमरा बहुत ही प्यारा है... लेकिन सोचो एना, एक घर होगा तुम्हारा जिसे तुम अपनी पसंद से सजाओगी । कौनसे परदे लगाने हैं, कौनसे रंग की दीवारें होंगी, कौनसे पौधे बालकनी में और कौनसे घर के अन्दर... और एक जगह तुम्हारी सारी ट्रॉफी, सारे स्केच, सारी पेंटिंग्स, सब कुछ तुम्हारा, तुम्हारी पसंद का होगा!’
 
‘हां... हम बालकनी में विंड-चाइम भी लगायेंगे...’
 
‘हां एना, जैसा तुम बोलो! जल्दी से शादी हो जाए, और तुम मेरे पास चली आओ! फिर तो हमारा अपना मकान होगा...’
 
‘मकान नहीं, घर होगा—अपना घर । हम दोनों का अपना घर!’
 
आज...
‘आदि, तुमने किचन का कुछ सामान हटाया क्या? मैंने जमाया तो था? तुमने मेरी ज़रूरत का सामान ऊपर रख दिया, मेरा हाथ नहीं पहुँच रहा है अब...’
 
‘हां, मेरे घर पर वो सामान स्टोर जैसे ऊपर ही रखते हैं । हम एक सीढ़ी या स्टूल खरीद लेंगे ताकि उस पर चढ़ कर तुम खुद उतार लो ।’
 
‘आदि, तुमने तुम्हारी अलमारी जमा ली? यहाँ शिफ्ट होने के बाद मेरा इतना सामान है, सोच रही हूँ कैसे जमाऊं...’
 
‘सुनो, तुम सारे कॉटन के कपड़े एक शेल्फ में, सिंथेटिक एक में, जीन्स दूसरे में रखना...’
 
‘मैं सोच रही थी ऑफिस में पहनने के एक में, और घर के एक में रख लेती...आसानी रहती मेरे लिए ।’
 
‘नहीं, जैसा मैंने बताया वैसे करो, मेरे घर में ऐसे ही करते हैं सब ।’
 
‘अच्छा । कपड़े धुल गए हैं, मैं बाहर बालकनी में सुखा रही हूँ, तुम वहीं से ले लेना...’
 
‘सुनो एना, तुम्हारे अंडर-गारमेंट्स बाहर डालो तो उन्हें किसी बड़े कपड़े से ढांक देना । मेरे घर में महिलाएं अपने कपड़े ऐसे खुले में नहीं सुखातीं ।’
 
‘आदि! मैंने बाथरूम में कुछ टॉयलेटरी और एक्स्ट्रा सेनेटरी पैड का पैकेट रखा थे शेल्फ में...मुझे ज़रूरत है...’
 
‘हां, मैंने बाहर की अलमारी में रखे हैं । मेरे यहाँ ऐसे बाथरूम में नहीं रखते ।’
 
‘लेकिन यहाँ तो बस हम दो लोग ही रहते हैं न, आदि? हमारे बेडरूम के पर्सनल वॉशरूम में कौन जाता है मेरे या तुम्हारे अलावा? और अचानक ज़रूरत पड़ने पर मैं क्या बाथरूम से बाहर आऊँ? और वैसे भी, ये नेचुरल है... छुपाने या शर्म वाली क्या बात है?’
 
‘नहीं । अगर कोई मेरे घर से आया यहाँ, तो यह घर वैसा ही मिलना चाहिए उन्हें जैसे उनका ही घर हो । उन्हें यहाँ रहने में कोई भी परेशानी नहीं होनी चाहिए। सब कुछ वैसा ही होना चाहिए जैसे उन्हें चाहिए । उन्हीं के बेटे का मकान है आखिर। मैं चाहता हूँ वे मेरे मकान में खुश रहें।’
 
हर बच्चा चाहता है कि उसके माता-पिता उसके घर में रहें और उन्हें किसी प्रकार की कोई असुविधा न हो। लेकिन किस कीमत पर? अपनी पत्नी की खुशियों को उजाड़ कर? जब आप एक पौधा घर लाते हैं, तो भी उसकी परवरिश के लिए उचित खाद-पानी देते हैं, न कि उस पौधे से उम्मीद करते हैं कि वह अपने आप पनप जाए। लेकिन ये सब ‘कही-अनकही’ बातें हैं और शायद आज भी बहुओं को ससुराल में ‘ट्रेनिंग’ के लिए लाया जाता है, अपनाने के लिए ‘अपने घर’में शामिल करने के लिए नहीं।
ALSO READ: कही-अनकही 1 : स्लिप ऑफ़ टंग

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कही-अनकही 1 : स्लिप ऑफ़ टंग